History of Gujiya: 800 साल पुराना है होली पर बनने वाली वर्ल्ड-फेमस गुजिया का इतिहास, तुर्की से भी है रिश्ता

History of Gujiya: होली के त्योहार से हफ्ते भर पहले ही घरों में गुजिया बनने लगती हैं. खासकर कि उत्तर भारत में होली पर गुजिया बनाने-खिलाने की परंपरा है. गुजिया का होली से गहरा रिश्ता है लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर गुजिया की उत्पत्ति कैसे हुई?

History of Gujiya
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 15 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 1:01 PM IST
  • 800 साल पुराना है इतिहास 
  • गुजिया के हैं कई रूप 

भारत में हर त्योहार पर पकवान और खास व्यंजन बनाने की परंपरा है. या कहें कि हर त्योहार के साथ किसी न किसी व्यंजन को जोड़ा गया है जो त्योहार को और स्पेशल बना देता है. इस मामले में सबसे ज्यादा पॉपुलर हैं होली के मौके पर बनाई जाने वाली गुजिया. बहुत से भारतीय घरों में लोग हफ्तेभर पहले से ही गुजिया बनाना शुरू कर देते हैं. 

होली के दिन लोगों को गुजिया खिलाने और अपने आसपड़ोस में भिजवाने का चलन अभी भी है. होली के रंग और गुजिया की मिठास लड़ाई-झगड़े भूलकर रिश्तों का नया आगाज करने की प्रेरणा देती है. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं गुजिया की कहानी. 

800 साल पुराना है इतिहास 
बताते हैं कि गुजिया का जिक्र सबसे पहले 13वीं शताब्दी मिलता है. उस समय गुजिया धूप में सुखाने के बाद खाई जाती थी. कहते हैं कि यह कैलोरी कम करने का एक शानदार तरीका था. दिलचस्प बात यह है कि जब आप गुजिया को देखते हैं तो यह दिखने में अलग तरह का समोसा लग सकता है. लेकिन बहुत से इतिहासकार इसे तुर्की के बकलावा से भी जोड़ते हैं. 

उनक कहना है कि बकलवा ने इस व्यंजन को प्रेरित किया है. साथ ही, बादाम से भरी डीप-फ्राइड ईरानी पेस्ट्री, कुत्तब के साथ भी गुजिया की समानताएं देखी जाती हैं. लेकिन कोई भी इसकी सटीक उत्पत्ति के बारे में नहीं बता सकता है. लेकिन इस व्यंजन के बनने का श्रेय भारतीय राजाओं के शाही रसोइयों या खानसामों को दिया जाना चाहिए जिनके एक्सपेरिमेंट्स के चलते गुजिया का वर्तमान रूप हमें मिला है. गुजिया का उल्लेख बुन्देलखंडी राजाओं के खाद्य इतिहास में मिलता है और इसे बुन्देलखण्डी क्लासिक माना जाता है. 

बकलवा और गुजिया में है अंतर 
मान्यता यही है कि बकलावा से ही गुजिया की प्रेरमा मिली है. लेकिन बकलावा में स्वीटनर के रूप में गुड़ या चीनी की चाशनी के बजाय मसालेदार शहद का उपयोग किया जाता है. बाकलावा को मक्खन में डुबोया जाता है, वहीं गुजिया को घी में तला जाता है. बकलावा आकार में चौकोर होता है, जबकि गुजिया आमतौर पर एक अर्धचंद्राकार मिठाई होती है. बकलावा को बड़े पैमाने बेक जाता है, जबकि गुजिया को डीप फ्राई किया जाता है. 

अब सवाल है कि तुर्की का बकलावा भारत कैसे पहुंचा, जिससे प्रेरित होकर यहां के खानसामों ने गुजिया बनाई. कहते हैं कि उत्तर प्रदेश और प्राचीन तुर्की (जिसे अनातोलिया के नाम से जाना जाता है) दोनों प्रसिद्ध सिल्क रूट पर स्थित थे. ऐसे में मुमकिन है कि तुर्की या ईरान की अपनी यात्रा के दौरान, उत्तर प्रदेश के व्यापारियों ने पारंपरिक फ़ारसी पेस्ट्री का स्वाद चखा हो और थोड़े-बहुत बदलाव के साथ बकलावा की कहानी भारत पहुंची हो और यूपी के खानसामों ने इसका एक्सपेरिमेंट करते हुए गुजिया को अस्तित्व दिया हो. 

गुजिया के हैं कई रूप 
गुजिया 16वीं सदी के ब्रज में फली-फूली, जहां इसे भगवान कृष्ण को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. वृन्दावन के राधा रमण मंदिर में, मंदिर की थाली में गुजिया और चंद्रकला परोसना 500 साल पुरानी परंपरा है. उत्तर ही नहीं, दक्षिण तक गुजिया का स्वाद पहुंचा है. बताते हैं कि चेन्नई के एक निवासी ने तंजावुर केचोल मंदिरों (यूनेस्को विश्व धरोहर स्मारकों) को मीठी, खोया से भरी उत्तर भारतीय गुजिया से मिलवाया. वैसे तो गुजिया साल भर खाई जाती है लेकिन दो दिवसीय होली उत्सव के दौरान इसकी खपत बढ़ जाती है. 

गुजिया की उत्पत्ति भले ही उत्तर प्रदेश में हुई हो, लेकिन इस क्लासिक मिठाई को भारत के कई हिस्सों में अपनाया गया है. राजस्थान के कुछ हिस्सों में, लोग होली पर गुजिया के दो अलग-अलग संस्करण चंद्रकला और सूर्यकला बनाते हैं. अजमेर में गुजिया जैसे पुहे बहुत पसंद है, जो कि सौंफ़ और गुलाब के स्वाद के साथ तली हुई पेस्ट्री है. यह स्टफिंग के बिना गुजिया जैसी दिखती है. अवध क्षेत्र में, लोग दही, मेवे और इलायची से भरी गुजिया का आनंद लेते थे. 

बुन्देलखण्ड में खोया और गुड़ की गुजिया का पारंपरिक संस्करण बनाना जारी है. पंजाब में, विशेष रूप से अमृतसर के आसपास, गुजिया को पालकी के रूप में जाना जाता है और इसे गुड़ की चाशनी में डुबोया जाता है. बिहार में इसे पेड़किया के नाम से जाना जाता है. गुजरात में इसे घुघरा कहा जाता है. और महाराष्ट्र में, यह करंजी है. 

 

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