History of Kaju Katli: मुगलों और मराठों से जुड़ा है काजू कतली का इतिहास, जानिए इस शाही मिठाई के बारे में

काजू कतली प्रेम, आनंद और समृद्धि का प्रतीक है. इसे अक्सर रोशनी के त्योहार दिवाली के दौरान उपहार के रूप में दिया जाता है, और यह शादियों और अन्य समारोहों के दौरान एक लोकप्रिय मिठाई भी है.

Kaju Katli
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 10 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 2:38 PM IST
  • मुगलों से जुड़ा है इतिहास 
  • मराठों से भी जुड़े हैं तार 

काजू कतली का नाम सुनते ही सबके मुंह में पानी आ जाता है. दुनियाभर में भारत की काजू कतली मशहूर है. काजू कतली कोई आम मिठाई नहीं है. इसका एक समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक महत्व है जो इसके स्वाद से कहीं ज्यादा है. पारंपरिक रूप से दिवाली के त्योहार पर इसका बहुत महत्व रहता है. 

भारतीय संस्कृति में माना जाता है कि काजू कतली खाने से घर में सौभाग्य और समृद्धि आती है. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं काजू कतली के इतिहास के बारे में. 

मुगलों से जुड़ा है इतिहास 
बात अगर काजू कतली के अस्तित्व की करें तो कहा जाता है कि मुगल बादशाह जहांगीर के समय में काजू बर्फी पहली बार बनाई गई थी. जहांगीर ने कई सिख गुरुओं और राजाओं को पकड़ पर ग्वालियर किले में बंदी बनाकर रखा था. यहां गुरु हरगोविंद ने  देखा कि बंदियों की के रहने की स्थिति दयनीय है. 

छठे सिख गुरु, गुरु हरगोविंद ने किले के अंदर कैदियों को आत्मनिर्भर बनाने में सहायता की और सभी के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाया. सम्राट जहांगीर ने जब देखा कि गुरु ने सबको आत्मनिर्भर बनाने में मदद की है तो उन्होंने गुरु को आजाद करने का फैसला किया और घोषणा की कि गुरु को मुक्त कर दिया जाएगा और जो कोई भी उनके बाहर निकलते समय उनके वस्त्र को पकड़ सकेगा, उसे भी मुक्त कर दिया जाएगा. 

यह घोषणा सुनकर, गुरु हरगोविंद ने गुप्त रूप से 52 राजाओं को इतना लंबा वस्त्र बनाने का आदेश दिया कि जेल में हर कोई इसे पहन सके. दिवाली पर, सभी कैदियों को उनके लंबे लबादे पहने हुए ही रिहा कर दिया गया. सिख गुरु के प्रति सम्मान के संकेत के रूप में, जहांगीर के शाही रसोइये ने मुक्ति के दिन पहली बार काजू बर्फी बनाई थी. 

मराठों से भी जुड़े हैं तार 
काजू कतली के बारे में एक कहानी मराठा साम्राज्य से भी जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि काजू कतली को 16वीं शताब्दी में भीमराव नाम के एक मशहूर शेफ ने बनाया था, जो मराठा साम्राज्य के शाही परिवार के लिए काम करते थे. मराठा अपने मिठाई प्रेम के लिए जाने जाते थे और भीमराव को एक नई मिठाई बनाने का काम सौंपा गया था जो शाही परिवार को खुश कर दे. मान्यता है कि भीमराव "हलवा-ए-फ़ारसी" नामक फ़ारसी मिठाई से प्रेरित थे, जो पिसे हुए बादाम और चीनी से बनाई जाती थी. उन्होंने काजू का प्रयोग करके खुद अपनी एक मिठाई बनाने का निर्णय लिया. क्योंकि यहां काजू ज्यादा मात्रा में होते हैं. 

भीमराव की रचना मराठा राजघरानों के बीच तुरंत लोकप्रिय हो गई, जिन्होंने मिठाई को "काजू कतली" नाम दिया. जिसमें "कतली" का अर्थ है पतली स्लाइस. समय के साथ, काजू कतली न केवल महाराष्ट्र में, बल्कि भारत के अन्य हिस्सों में भी एक लोकप्रिय मिठाई बन गई. अब इसे सबसे प्रतिष्ठित भारतीय मिठाइयों में से एक माना जाता है और यह शादियों से लेकर त्योहारों तक हर उत्सव का एक अनिवार्य हिस्सा है.

 

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