History of Malpua: पुआ, अपुपा या मालपुआ.... सबसे पुराने मीठे व्यंजनों में से एक है यह डिश, ऋग्वेद में है जिक्र

भारत का मालपुआ से रिश्ता बहुत पुराना है. मालपुआ सदियों से भारतीय त्योहारों की शोभा बढ़ा रहे हैं. समय के साथ इस एक व्यंजन के कई वर्जन विकसित हुए हैं लेकिन इसके प्रति लोगों का प्यार कम नहीं हुआ.

History of Malpua (Photo: Pinterest)
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 22 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 3:35 PM IST
  • ऋग्वेद में है मालपुआ का जिक्र 
  • जगन्नाथ मंदिर के भोग का हिस्सा 

हम सबने अपने घर में या किसी आयोजन में कभी न कभी को पुआ या मालपुआ खाए होंगे. भारत का मालपुआ से काफी पुराना रिश्ता है. इसके की रूप अलग-अलग जगह बनाए-खाए जाते हैं. गोल, चपटे और चीनी की चाशनी में डूबे मालपुआ लगभग हर एक त्योहार की शान बढ़ाते हैं. होली, दीवाली या ईद, हर त्योहार पर लोग शौक से मालपुआ बनाते हैं.  

कहते हैं कि मालपुआ भारत देश में सदियों से बनते आ रहे हैं. कई प्राचीन किताबों में इनका जिक्र मिलता है और आज आधुनिक समय में इसके कई अलग-अलग रूप मौजूद हैं. बहुत से इतिहासकारों का दावा है कि यह भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे पुरानी मिठाई है. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं कहानी मालपुआ की.  

ऋग्वेद में है मालपुआ का जिक्र 
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि मालपुआ एक स्वादिष्ट मिठाई है, जिसकी उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप से हुई है. मालपुआ सबसे प्रिय भारतीय मिठाई की दावेदारी करता है और साथ ही, बताया जाता है कि मिठाई के मामले में यह व्यंजन बहुत पुराना है. चार वेदों में सबसे पुराना और सबसे महत्वपूर्ण, ऋग्वेद संस्कृत भजनों का एक संग्रह है. इसमें मालपुआ का पहला लिखित रिकॉर्ड भी शामिल है. 

फूड हिस्टरियन, ओम प्रकाश ने अपनी किताब, Food and Drinks of Ancient India: From Earliest Times to C.1200 A.D में उल्लेख किया है कि पुआ या अपुपा को चावल या जौ से बनाया जाता था और इन्हें धीमी आंच पर घी में पकाया जाता था. वहीं, एक और फूड हिस्टरियन, केटी आचार्य ने अपनी किताब, A Historical Dictionary of Indian Food में उल्लेख किया है कि बौद्ध लोग पकवान बनाने के लिए टूटे हुए चावल का उपयोग करते थे, और इसे 'कनापुवम' कहते थे. 

जगन्नाथ मंदिर के भोग का हिस्सा 
मालपुआ के इतिहास की एक जड़ ओडिशा से भी आती है. यहां जगन्नाथ मंदिर के रिकॉर्ड इस व्यंजन के बारे में जानकारी देते हैं. बताया जाता है कि मालपुआ को राजा गजपति प्रतापरुद्र देव के शासनकाल के दौरान पेश किया गया था, जो संत चैतन्य महाप्रभु से प्रभावित थे. ऐसा माना जाता है कि 16वीं शताब्दी की शुरुआत से, यह मंदिर में छप्पन भोग का हिस्सा था, जहां इसे अमालू कहा जाता है. मंदिर में शाम की पूजा के बाद देवताओं को तीन तरह के अमलू चढ़ाए जाते हैं. मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, नबन्ना और स्नान पूर्णिमा जैसे विशेष अवसरों के दौरान भी मालपुआ भोग का हिस्सा बनते है. इसे नवरात्रि के दौरान भगवान जगन्नाथ की पत्नी देवी बिमला को भी अर्पित किया जाता है. 

मुगलों से भी है कनेक्शन 
कुछ इतिहासकारों की माने तो मुगलों के समय में यह व्यंजन अंडा और मावा या खोया मिलाकर बनाया जाता है. यह परंपरा आज भी ईद के दौरान जारी है. मुंबई में, रमज़ान महीने के दौरान, बोहरी लोग अंडे का मालपुआ बनाते हैं, जिसे अक्सर मलाई के साथ परोसा जाता है. इसे पाकिस्तान में भी इसी तरह परोसा जाता है. 

देश में मौजूद हैं अलग-अलग रूप
समय के साथ मालपुआ भारत में अलग-अलग जगह की परंपराओं में विकसित होता रहा. जैसे राजस्थान में रबड़ी मालपुआ बनाया जाता है, जिसका घोल रबड़ी और आटे का मिश्रण होता है. पूर्व में, अतिरिक्त स्वाद के लिए बैटर में सूजी, सौंफ़ के बीज और इलायची मिलायी जाती है. तटीय ओडिशा में, नारियल को बैटर में मिलाया जाता है और कभी-कभी, ताल ताड़ के फल को भी शामिल किया जाता है. 

बंगाल में, बैटर में शकरकंद मिलाया जाता है, जिसे रंगा अलूर मालपुआ कहा जाता है. बिहार में इसे पुआ कहा जाता है, इसे चिकन या मटन करी के साथ परोसा जाता है और होली के मौके पर खासतौर पर इसे बनाया जाता है. लखनऊ में, दूध को घोल तैयार करने के लिए खोया और आटे के साथ मिलाया जाता है. भुवनेश्वर की सड़कों पर, मालपुआ को मसालेदार आलू कसा नाम की सब्जी के साथ परोसा जाता है और ऊपर से सेव डाला जाता है. 

मालपुआ भारत के अलावा बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान जैसे कई दक्षिण एशियाई देशों में भी लोकप्रिय है. जैसे बांग्लादेश में मालपुए के घोल में मसले हुए केले शामिल होते हैं. नेपाल में, इसे मार्पा कहा जाता है और इसे केले और सौंफ के बीज और कुछ काली मिर्च के साथ बनाया जाता है, जो दूध और चीनी की मिठास को संतुलित करता है. 

 

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