आप चावल खाओ, खिचड़ी खाओ या कहीं फेमस थाली... लेकिन एक चीज आपको जरूर मिलेगी और वह है पापड़. पापड़ ऐसी डिश है जिसका भारत के अलग-अलग क्षेत्रों के हिसाब से स्वरूप और स्वाद, दोनों बदल जाते हैं लेकिन फिर भी सबकी फेवरेट है. खिचड़ी से लेकर छप्पन भोग तक में पापड़ को जगह मिलती है. कहने को यह एक सिंपल साइड डिश है लेकिन जिस भी खाने के साथ खाया जाए उसका जायका बढ़ जाता है.
आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं पापड़ का इतिहास. भारत में पापड़ की कहानी सैकड़ों सालों पुरानी है. कई पाककला की किताबों में पापड़ का जिक्र मिलता है.
क्या है पापड़ का इतिहास
पापड़ को पापड़म, हप्पला और अप्पलम जैसे कई नामों से जाना जाता है. पापड़ का इतिहास 500 ईसा पूर्व पुराना है और बौद्ध-जैन विहित साहित्य में पापड़ का जिक्र है. खाद्य इतिहासकार और लेखक केटी आचार्य की पुस्तक 'ए हिस्टोरिकल डिक्शनरी ऑफ इंडियन फूड' में पापड़ के बारे में लिखा है. इसमें उड़द, मसूर और चना दाल से बने पापड़ का जिक्र है.
दूसरी तरफ, यह भी बताया जाता है कि ऐतिहासिक अभिलेखों से भारत उपमहाद्वीप पर पापड़ की उपस्थिति का 1500 साल पुरानेा होने का पता चलता है. यह संयोग नहीं है कि पापड़ का पहला उल्लेख जैन साहित्य में है. हिस्ट्रीवाली की फाउंडर शुभ्रा चटर्जी का कहना है कि मारवाड़ के जैन समुदाय के लोग पापड़ को अपनी यात्राओं में साथ ले जाते थे. क्योंकि इसे ले जाना आसान था और यह खाने में स्वाद था
साइड डिश से लेकर सब्जी तक
पापड़ एक जमाने में हर घर की शान होते थे. महिलाएं खुद घंटों मेहनत करके पापड़ बनाती और छतों पर सुखाती थीं. आज भारत में कई तरह के पापड़ बनते हैं और लगभग हर एक क्षेत्र के लोग पापड़ खाते हैं. पापड़ सिर्फ साइड डिश नहीं है बल्कि पापड़ से चूरी, और सब्जी भी बनती है. पापड़ के दम पर भारत में कई बड़े बिजनेस हैं. सबसे बड़ा उदाहरण है महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़.
यह 1959 में सात गुजराती महिलाओं द्वारा शुरू किया गया एक सामाजिक उद्यम जो अब एक सहकारी है. लिज्जत पापड़ की संस्थापकों में से एक, 91 वर्षीय जसवंतीबेन जमनादास पोपट को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. यह कंपनी पूरे भारत में 43,000 से अधिक महिलाओं को रोजगार देती है.