History of Sabudana: केरल में अकाल के दौरान बचाई लाखों जिंदगियां... अब बना नवरात्रि उपवास का फलाहार, जानिए साबूदाना की कहानी

उपवास में जब फलाहार की बात होती है तो ज्यादातर घरों में साबूदाने की खिचड़ी बनाई जाती है. साबूदाना सिर्फ नवरात्रि ही नहीं बल्कि और कई व्रतों में खाया जाता है. महाराष्ट्र में तो यह लोगों के दैनिक जीवन का हिस्सा है.

History of Sabudana (Photo: Unsplash)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 12 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 3:10 PM IST

नवरात्रि के नौ दिनों में बहुत से लोग उपवास रखते हैं और उपवास के दौरान सामान्य खाना नहीं बल्कि सात्विक भोजन किया जाता है. उपवास के खाने में सबसे ज्यादा पॉपुलर है साबूदाना. साबूदाना की कई तरह की रेसिपी उपवास के दौरान लोग खाते हैं. खासकर कि साबूदाने की खिचड़ी सामान्य तौर पर भी की जगह ब्रेकफास्ट के तौर पर खाई जाती है. क्योंकि साबूदाने को न्यूट्रिशन के मामले में अच्छा विकल्प माना जाता है. 

अब सवाल है कि साबूदाना है क्या और ये कहां से आया? आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं कहानी साबूदाने की, जिसे बहुत से लोग सिर्फ फास्टिंग फूड नहीं बल्कि सुपरफूड भी मानते हैं. 

क्या है साबूदाना
साबूदाना टैपिओका जड़ से स्टार्च निकालकर बनाया जाता है, जिसे कसावा भी कहते हैं. इस जड़ को आम तौर पर साफ करके मैश किया जाता है और इसका सारा "दूध" निकलकर कुछ घंटों के लिए रख दिया जाता है. फिर दूध से सभी अशुद्धियां निकाल ली जाती हैं और दूध को एक मशीन की मदद से छोटी-छोटी गोलियों का आकार दे दिया जाता है. फिर इन गोलियों को भाप में पकाया जाता है, भूना जाता है या सुखाया जाता है, और कभी-कभी इन्हें साफ, दूधिया सफेद रंग देने के लिए पॉलिश भी किया जाता है. इन सफेद मोती जैसी गोलियों को ही हम साबूदाना कहते हैं. 

क्या है साबूदाना का इतिहास  
यही कारण है कि आपको केरल की ज्यादातर ताड़ी की दुकानों पर कप्पा मिल जाएगा. यहीं पर टैपिओका को पहली बार पॉपुलैरिटी मिली थी. 1800 के दशक के अंत में, त्रावणकोर का तत्कालीन साम्राज्य एक बड़े अकाल से गुज़र रहा था. तत्कालीन राजा अयिल्यम थिरुनल राम वर्मा और उनके भाई विशाखम थिरुनल महाराजा को पता चला कि स्टार्चयुक्त कंद उनके लोगों की मदद कर सकता है. लेकिन लोग झिझक रहे थे क्योंकि उन्हें इस अजीब कंद के बारे में पूरी जानकारी नहीं थी, और कई लोग नहीं जानते थे यह खाने के लिए सुरक्षित है या नहीं. 

लोगों को नए भोजन पर भरोसा करने में मदद करने के लिए, विशाखम थिरुनल महाराजा ने आदेश दिया कि टैपिओका पकाया जाए और उन्हें खाने के लिए परोसा जाए. इसके बाद, दूसरे विश्व युद्ध में टैपिओका ने कई राज्यों को बचाया. दरअसल, कई राज्यों में युद्ध के दौरान चावल की कमी के बीच, यह एक सस्ते और पेट भरने वाले विकल्प के रूप में लोकप्रिय हो गया था.  हालांकि साबूदाना का वर्तमान रूप बनने में कुछ और साल लगे. 

बनते हैं कई व्यंजन
साबूदाना हजारों सालों से चीनी व्यंजनों का हिस्सा रहा है. यह 1940 के दशक में दक्षिण-पूर्व एशिया से आयात के रूप में भारत आया. कहा जाता है कि भारत में पहली कच्चे साबूदाना यूनिट्स 1943 में यानी 80 साल से भी कम समय पहले सेलम, तमिलनाडु में स्थापित की गई थीं. तब से, साबूदाना ने भारतीय व्यंजनों में विभिन्न रूप धारण कर लिए हैं. आमतौर पर, साबूदाना खिचड़ी और वड़ा जैसे महाराष्ट्रीयन क्लासिक व्यंजनों के लिए इसे जाना जाता है. दक्षिण भारत के विभिन्न हिस्सों में, साबूदाना का उपयोग गुड़ और सूखे मेवों के स्वाद वाले पायसम में किया जाता है. साबूदाना हवादार, कुरकुरे पापड़ों के लिए भी उपयुक्त है. 

सेहत के लिए है अच्छा 
साबूदाना वास्तव में स्वस्थ हैं या नहीं, यह बहस का विषय रहा है. कई एक्सपर्ट्स इसके कम प्रोटीन और उच्च कार्बोहाइड्रेट कंटेंट को सही नहीं बताते हैं. हालांकि, बहुत से लोग इन स्टार्चयुक्त ग्लोब्यूल्स के फायदे गिनवाते हैं. न्यूट्रिशनिस्ट रुजुता दिवेकर के मुताबिक, साबूदाना महिलाओं के लिए हार्मोनल संतुलन लाता है और हाई टेस्टोस्टेरोन सेवल में मदद करता है. स्वस्थ जीवन पर एक बातचीत में उन्होंने कहा कि साबूदाना कई मायनों में उपवास के लिए उत्तम भोजन है. अपने उच्च स्तर के कार्बोहाइड्रेट और कैलोरी के साथ, यह आपको पूरे दिन ऊर्जावान रहने में मदद करता है. 

 

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