History of Coffee: फिल्टर से लेकर डिग्री तक, कई नामों से मशहूर है भारत की कॉफी, एक सूफी संत से है कनेक्शन

History of Coffee: दक्षिण भारत के घरों में कुछ हो न हो लेकिन डोसा या दोसा और फिल्टर कॉफी जरूर मिलेगी. जी हां, फिल्टर कॉफी दक्षिण भारतीयों के दैनिक जिंदगी का अहम हिस्सा है और अब यह भारत के दूसरे राज्यों में भी खास जगह बना चुकी है.

History of Coffee
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 10 मई 2024,
  • अपडेटेड 3:04 PM IST

बात अगर भारत की कॉफी की हो तो सबसे पहले दिमाग में फिल्टर कॉफी आती है. दक्षिण भारत की फिल्टर कॉफी आज हिंदुस्तान समेत दूसरे देशों में भी अपनी जगह बना चुकी है. इस कॉफी को मद्रास फिल्टर कॉफी, मद्रास कापी, कुंभकोणम डिग्री कॉफी, मायलापुर फिल्टर कॉफी, मैसूर फिल्टर कॉफी जैसे नामों से भी जाना जाता है. इस कॉफी की सुगंध, स्वाद सबकुछ एकदम अलग होता है और इसे पीने का अलग ही अहसास है. 

लेकिन सवाल है कि आखिर कॉफी भारत पहुंची कैसे? क्योंकि आज भी कॉफी को बहुत से भारतीय एक विदेशी कॉन्सेप्ट के जैसे देखते हैं. लेकिन उन्हें यह नहीं पता है कि कॉफी का भारत से रिश्ता कई सदियों पुराना है और इसके भारत आने के किस्से भी बहुत दिलचस्प हैं. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं कहानी कॉफी की, जानिए आखिर कैसे कॉफी भारतीय घरों का हिस्सा बन गई.

बाबा बुदान हिल से है रिश्ता
भारत में "कॉफी" की उत्पत्ति को लेकर कई किस्से प्रचलित हैं. हालांकि, सबसे मशहूर है बाबा बुदान का किस्सा. बताते हैं कि 1600 ई. में बाबाबुदान नामक एक सूफ़ी संत मक्का की तीर्थयात्रा पर गये. कॉफी बीन्स के लिए प्रसिद्ध मोचा (यमन का एक बंदरगाह शहर) से वापस अपनी यात्रा के दौरान, वह चुपचाप 7 कॉफी बीन्स ले आए. आपको जानकर हैरानी होगी कि बाबा बुदान कॉफी बीन्स अपनी दाढ़ी में छिपाकर लाए थे. जी हां, छिपाकर, क्योंकि उस जमाने में हरी कॉफी बीन्स को अरब प्रायद्वीप से बाहर ले जाना अवैध माना जाता था. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि इस क्षेत्र का अपने व्यापार पर एकाधिकार बना रहे. 

बाबा बुदान ने चिकमंगलूर (भारत के दक्षिण) में अपने आंगन में 7 कॉफी बीन्स लगाए - इस जगह को भारत में कॉफी का जन्मस्थान माना जाता है. उन्हीं के नाम पर इन पहाड़ियों का नाम बाबा बुदान हिल्स रखा गया. कुछ लोग कहते हैं कि यह एक कारण हो सकता है कि भारतीय फ़िल्टर कॉफ़ी को दक्षिण भारतीय फ़िल्टर कॉफ़ी के रूप में जाना जाता है. 

...किस्से और भी हैं 
दक्षिण भारतीय फ़िल्टर कॉफ़ी की उत्पत्ति कैसे हुई, इस पर कई अन्य कहानियां हैं. कुछ किंवदंतियों का कहना है कि यह फ्रांसीसी और जर्मन थे जिन्होंने 17वीं शताब्दी में दक्षिण भारतीय फिल्टर कॉफी की शुरुआत की थी. कुछ लोग कहते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सभी समुद्री मार्ग बंद कर दिए गए थे और भारत में कॉफी आपूर्ति की भारी कमी थी. कमी के कारण कॉफ़ी को चिकोरी (एक कॉफ़ी एडिटिव) के साथ मिलाया गया था. 

चिकोरी कॉफी में एक मीठा स्वाद और स्मेल जोड़ती है, जहां से दक्षिण भारतीय फिल्टर कॉफी को अपना स्वाद मिलता है. यह वह समय था जब भारत में कॉफी की आपूर्ति को संभालने और नियंत्रित करने के लिए भारतीय कॉफी बोर्ड बनाया गया था. भारतीय फ़िल्टर कॉफ़ी को 1940 के दशक के मध्य में इंडियन कॉफ़ी हाउस ने पॉपुलर किया था. इंडियन कॉफी हाउस के चलते ही कॉफी दूसरे राज्यों में भी पॉपुलर हो गई. और आज कॉफी के सैकड़ों फ्लेवर और ब्रांड्स भारत में मशहूर हैं. 

 

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