कहां से हुई थी चाय की शुरुआत और किसने दिया था इसे ये नाम, जानिए

एक मशहूर कहावत है कि अंग्रेज आए और अंग्रेजी छोड़ गए, वैसी ही एक कहावत गांव में दादी नानी के मुंह से सुनी जा सकती है कि अंग्रेज आए और चाय की लत लगा गए. दरअसल चाय का किस्सा ही कुछ ऐसा है. भारत में चाय के शुरुआत की कहानी बेहद दिलचस्प है.

चाय
नाज़िया नाज़
  • नई दिल्ली,
  • 31 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 4:17 PM IST
  • 2732 BC में चीन के शासक शेंग नुंग ने चाय की खोज की थी
  • 1835 में असम में चाय के बाग लगाए गए

ज्यादातर लोगों के दिन की शुरूआत चाय से ही होती है. बेड टी हो या शाम की चाय... अगर चाय ना मिले तो कुछ अधूरा सा लगता है . चाहे घर पर चाय बना कर पीना हो या टपरी पर जा कर चाय पीना हो. चाय पीने का अपना एक अलग ही आंनद है. एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में 70 प्रतिशत चाय सिर्फ भारतीय ही पीते हैं. भारतीयों का चाय से लगाव देखकर ऐसा लगता है जैसे ये भारत के इतिहास का बहुत अहम हिस्सा रहा है, लेकिन चाय की शुरूआत भारत से नहीं चीन से  5000 साल हुई थी. 

ये 19वीं शताब्दी के पहले 50 सालों में ब्रिटेन की औपनिवेशिक नीतियाँ ही थीं जिनकी बदौलत भारत 2006 तक दुनिया का सबसे बड़ा चाय उत्पादक बना रहा, जबतक कि चीन उससे आगे नहीं निकल गया. इसलिए चाय की बात करते ही ब्रिटेन की याद आ जाती है. लेकिन जो बात आपको नहीं पता वो ये कि ब्रिटेन ने चाय की दीवानगी में कई देशों से दुशमनी उधार ले ली थी. शुरूआत में किसी भी चीज का कारोबार आसान नहीं था, यही वजह थी कि चाय के कारोबार ने अंग्रेजों से कई पापड़ बिलवाए थे. तो चलिए जानते हैं कि चाय की शुरूआत चीन ब्रिटेन से होते हुए कैसे भारत तक आई. 

चीन के शासक ने गलती से की थी चाय की खोज

चाय का इतिहास चीन से जुड़ा हुआ है. प्रचलित कहानी के  मुताबिक 2732 BC में चीन के शासक शेंग नुंग ने चाय की खोज की थी. शेंग नुंग ने ऐसा गलती से कर दिया था. दरअसल हुआ ये कि एक बार कुछ जंगली पत्तियां उनके उबलते पानी में जा गिरी, पत्तियों के खौलते ही पानी में से अच्छी खुशबू आने लगी साथ ही उसका रंग भी बदलने लगा. जब शासक ने इस पानी को पिया तो उसका टेस्ट बहुत पंसद आया. उस पानी को पीते ही शरीर में ताजगी आ गई. उन्हें लगा जैसे उनके शरीर का हर हिस्सा इस लिक्विड को खोज रहा हो. 

उस दौरान शेंग नुंग ने चाय का नाम चा.आ रखा था.  ये चीनी अक्षर हैं जिनका मतलब है परखना या फिर खोजना. हालांकि, 200 BC में चीन के ही एक और शासक ने इसके लिखने के तरीके में बदलाव नहीं किया, और इसका नाम चा.आ ही रखा. 

अंग्रेजों ने भारत को चाय से मिलवाया 

एक कहावत है कि अंग्रेज आए और अंग्रेजी छोड़ गए, वैसी ही एक कहावत गांव में दादी नानी के मुंह से सुनी जा सकती है कि अंग्रेज आए और चाय की लत लगा गए. दरअसल चाय का किस्सा ही कुछ ऐसा है. भारत में चाय के शुरुआत की कहानी बेहद दिलचस्प है. दरअसल गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक 1834 में जब भारत आए तो उन्होंने असम में देखा कि वहां के लोग चाय की पत्तियों के साथ उबालकर पानी पीते हैं जिसे वो दवाई की तरह इस्तेमाल करते थे.

तब बैंटिक ने एक समिति बना कर असम के लोगों को चाय की जानकारी दी.जिसके बाद चाय की परंपरा भारत में शुरू हो गई. इसके बाद 1835 में असम में चाय के बाग लगाए गए. भारत में सन 1881 में इंडियन टी एसोसिएशन की स्थापना की गई, जिसने भारत में ही नही अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी चाय के उत्पादन को फैलाया. बाद में यही चाय अंग्रेजों के इनकम का जरिया बन गई थी. यहां चाय उगाकर वो इसे बडे़ पैमाने पर विदेशों में भेजते थे.

तो इस तरह दुनिया को चाय मिली थी, जिसे आज भी पंसद किया जा रहा है, साथ ही इसका प्रचलन भी बढ़ता जा रहा है. समय के साथ चाय के साथ नए नए एक्सपेरिमेंट भी किए जा रहे हैं.

 

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