IIT इंजीनियर ने बनाया सौ फीसद इको फ्रेंडली बायोगैस बायो मैन्योर प्लांट, जिसे इस्तेमाल कर रहे किसान

कोशिश नाम की संस्था ने एक ऐसा बायोगैस और बायो मैन्यौर प्लांट तैयार किया है जो 100 प्रतिशत इको फ्रेंडली है. इसका इस्तेमाल खासतौर पर किसानों के द्वारा किया जा रहा है. जिनके पास ऑर्गेनिक वेज ज्यादा मात्रा में मौजूद होता है. इससे वह बायोगैस के साथ ही खाद भी बना रहे हैं.

eco friendly biogas bio manure plant
तेजश्री पुरंदरे
  • नोएडा,
  • 11 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 4:01 PM IST
  • इससे किसान बायोगैस और खाद दोनों बना रहे हैं
  • कई बड़े स्कूलों और अस्पतालों में भी लगा चुके हैं

पर्यावरण में हो रहे प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए कई लोग 100% सस्टेनेबिलिटी डेवलपमेंट के तर्ज पर काम कर रहे हैं. कोशिश नाम की संस्था उसी दिशा में एक प्रयास कर रही है. नोएडा में कोशिश नाम की संस्था ने एक ऐसा बायोगैस और बायो मैन्यौर प्लांट तैयार किया है जो 100 प्रतिशत इको फ्रेंडली है. इसकी खास बात यह है कि यह कंस्ट्रक्शन फ्री है और इसे अलग बनाता है इसका पोर्टेबल टू एनी वेयर एंड एवरी वेयर का फीचर.

इससे बन रही बायोगैस और खाद 
कोशिश की टीम से अनिल सिंह बताते हैं कि उन्होंने एक ऐसा बायोगैस प्लांट डिजाइन किया है. जो जीरो आउटपुट ऑफ़ वेस्ट के साथ डबल प्रॉफिट दे रहा है. ग्रीन होम नाम का यह प्लांट ऑर्गेनिक वेस्ट और गाय के गोबर से बायोगैस भी बनाता है और खेती के लिए इस्तमाल होने वाला खाद भी. अनिल बताते हैं कि दूसरे प्लांट्स में बड़े-बड़े कंस्ट्रक्शन यूनिट बनाने पड़ते हैं, लेकिन ग्रीन हाउस का यह प्लांट कंस्ट्रक्शन फ्री है. जो भी इसे इस्तेमाल करना चाहता है उसे सीधे ले जाकर घर पर इंस्टाल कर सकता है.

किसान कर रहे इस्तेमाल
इसे खासतौर पर किसानों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है. चूंकि किसानों के पास ऑर्गेनिक वेज ज्यादा मात्रा में मौजूद होता है. इसीलिए वह इसका इस्तेमाल बेहतर तरीके से कर सकते हैं. ऑर्गेनिक वेस्ट और गोबर को इनपुट फनल में डालकर उसे कुछ दिनों तक प्लांट में ही छोड़ देते हैं. पूरी केमिकल प्रक्रिया होने के बाद जब खाद तैयार हो जाता है तो आउटपुट फनल से पेड़ों को या खेतों को दिया जाने वाला खाद अपने आप ही बाहर आ जाता है. इस केमिकल प्रोसेस से जो गैस बनती है उसका इस्तेमाल चूल्हा जलाने के लिए किया जाता है. इस तरह से एक प्लांट से 2 बड़े फायदे किसानों को इस वक्त हो रहे हैं.

लगा चुके हैं कई जगह
अनिल बताते हैं कि इस तरह के प्लांट में खेतों के अलावा कई बड़े स्कूलों और अस्पतालों में भी लगा चुके हैं. यह सारे प्लांट्स उस जगह पर ज्यादा कारगर है जहां पर ऑर्गेनिक वेस्ट भारी मात्रा में निकलता है. दिल्ली में ही नहीं बल्कि देश के अलग-अलग राज्यों में भी इन प्लांट्स का इस्तेमाल किया जा रहा है. आगे आने वाले समय में कोशिश की योजना है कि ज्यादा से ज्यादा शहरों और गांवों में इस प्लांट को पहुंचाएं ताकि पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो और संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो सके. 


 

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