तन की दिव्यांगता इंसान को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती. दिव्यांगता तन के बजाए मन की हो तो इंसान जल्द हार मान जाता है. हार को कैसे जीत में बदलना है इसका जीता जागता उदाहरण हैं 58 साल के देवकीनंदन. देवकीनंदन ने 18 साल की उम्र में अपने दोनों बाजू गवां दिए थे लेकिन आज वह अपने जैसे लाखों के लिए एक बड़ी मिसाल हैं.
58 वर्ष के देवकीनंदन उत्तराखंड के रहने वाले हैं लेकिन राजस्थान के कोटा में एक निजी संस्था के साथ मैनेजर की पोस्ट पर हैं. देवकीनंदन न सिर्फ यह दफ्तर में पूरा clerical का काम संभालते हैं बल्कि फाइलों की पंचिंग, फाइलों को स्टेपल, उनमें आलपिन लगाना और साथ में कंप्यूटर में सभी रिकॉर्ड्स और डाटा को मेंटेन करने का काम भी वे करते आ रहे हैं.
जानिए देवकीनंदन के संघर्ष की कहानी
आज जो काम ये बहुत ही आसानी से करते नजर आ रहे हैं उसके पीछे उनका संघर्ष है. देवकीनंदन ने गुड न्यूज़ टुडे से खास बातचीत में बताया कि जब वह 18 साल के थे तो गांव में बिजली की तार के चपेट में आने से उनके दोनों बाजू करंट की चपेट में आ गए. लगभग 24 दिनों तक देहरादून के अस्पताल में उन्हें दाखिल होना पड़ा और एक बाजू को काटना पड़ा जबकि दूसरी बाजू ना के बराबर काम करती है. यहां से देवकीनंदन के संघर्ष की कहानी शुरू होती है.
एक साल तक अस्पताल में रहे देवकीनंदन
देवकीनंदन बताते हैं कि लगभग एक साल अस्पताल में रहने के बाद जब उन्होंने अपने आप को देखा तो मन में ठान ली कि वह दूसरों के लिए बोझ नहीं बनेंगे और सबसे पहले अपने गांव में गायों को चराना शुरू किया. देवकीनंदन बताते हैं कि जंगल में पैरों के सहारे वह लकड़ी पकड़ने की कोशिश करते थे और कल्पना किया करते थे कि अगर वह और पढ़ लिख जाते कोई अधिकारी बन जाते तो वह दस्तखत कैसे करते और लगातार वह पैरों से लकड़ी पकड़कर हस्ताक्षर करने की कोशिश किया करते थे.
लगभग दो महीने की मेहनत के बाद उन्होंने जैसे तैसे मिट्टी में हल्का-फुल्का लिखना शुरू किया और उसके बाद लगभग 1 साल तक पैरों से पेन पकड़ने की कोशिश की और लिखने का प्रयास किया. धीरे-धीरे उनकी मेहनत और परिश्रम काम आने लगा और उनके लेख में सुधार और सफाई आनी शुरू हो गई. देवकीनंदन ने गुड न्यूज़ टुडे से बताया कि उसके बाद उन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की और फिर राजस्थान के कोटा में बतौर स्टोर कीपर काम करना शुरू किया.
38 साल से कर रहे काम
महावीर विकलांग सहायता संघ से जुड़कर काम करते हुए देवकीनंदन 38 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं और कंपनी में जरनल मैनेजर के पद पर तैनात हैं. देवकीनंदन कहते हैं कि तन की दिव्यांगता इंसान को रोक नहीं सकती और दिव्यांगता तन के बजाए मन की हो तो इंसान जल्द हार जाता है. वह कहते हैं कि अगर जीना है तो फक्र से और आत्म सम्मान के साथ जियो.