कहा जाता है कि दिल्ली अपने आप में शहरों का शहर है. मकबरों, बाउली से घिरा ये शहर कई राज अपने आपमें समेटे हुए है. अगर आपने दिल्ली घूमा होगा तो आप हुमायूं टॉम्ब,अग्रसेन की बावली, कुतुब मीनार या फिर हॉज खास के पार्क जरूर गए होंगे लेकिन एक जगह जहां आप नहीं गए होंगे उसके बारे में हम आपको आज बताएंगे. दिल्ली में कई ऐसी खूबसूरत जगह हैं जो गुमनामी का शिकार हैं.
आज हम आपको 'दादी-पोती' मकबरे (Dadi-Poti tomb) के बारे में बताएंगे. यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है कि ये कब्रें वास्तव में दादी या उनकी पोती की थीं. वास्तव में, यहां कौन दफन है यह अभी भी एक अनुत्तरित रहस्य है. इसका ये नाम केवल बड़ी और छोटी संरचनाओं की पहचान करने के लिए दिए गया था. दादी और पोती मकबरे क्रमशः लोधी (1451 - 1526 ईस्वी) और तुगलक (1321 - 1414 ईस्वी) काल के हैं.
क्या है इसकी खासियत
'दादी' का मकबरा बड़ा है और शायद ग्रीन पार्क क्षेत्र में पाया जाने वाला सबसे भव्य मकबरा है. यह दो मंजिला मकबरा है और इसकी दीवारों के विभिन्न स्तरों पर धनुषाकार खिड़की जैसी डिज़ाइन हैं. लगभग बीस फीट की दूरी पर 'पोती' मकबरा है जोकि दादी के मकबरे से छोटा है. इसके गुंबद पर एक लालटेन जैसी संरचना है. परंपरागत रूप से, एक मकबरे का प्रवेश दक्षिणी मुख पर होता है लेकिन यहां पर उत्तरी प्रवेश है. दादी के मकबरे के अंदर एक विशाल कमरा है जिसमें छह कब्रें हैं. पोती के मकबरे में एक बहुत छोटी जगह में तीन अन्य स्मारक हैं. ये कब्रें पत्थर की बनी हैं न कि संगमरमर की. दादी के मकबरे के विपरीत पोती के मकबरे की छत समतल है, जिस पर कुरान के कुछ शिलालेख हैं.
कहते हैं कि पोती का मकबरा दादी के मकबरे से पहले बनाया गया था. रचना के हिसाब से भी दोनों अलग-अलग आकृति, वक्त और शासनकाल की हैं. एक ओर जहां पोती के मकबरे का निर्माण तुगलक काल में 1321 से लेकर 1414 ईसवीं के बीच हुआ दादी के मकबरे को लोदी काल के दौरान 1451 से लेकर 1526 के बीच बनाया गया था.
कहां है मकबरा?
अगर आप हौज खास के रास्ते ग्रीन पार्क की तरफ गए होंगे तो आपको ये मकबरे जरूर दिखे होंगे. मेट्रो स्टेशन से 5 मिनट की दूरी पर ग्रीन पार्क क्षेत्र में ये मकबरे स्थित हैं. आप यहां पहुंचने के लिए मुख्य सड़क के साथ 15 मिनट की पैदल दूरी तय कर सकते हैं और अरबिंदो मार्केट से ठीक पहले हौज खास गांव की ओर जाने वाली सड़क की ओर मुड़ सकते हैं. आपको वहीं पर मकबरा दिखाई देगा. यहां सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच प्रवेश की अनुमति है. मकबरे और आसपास का बगीचा एक शांतिपूर्ण और बिना भीड़-भाड़ वाला स्थान है.
क्या है कथाएं
कहा जाता है कि एक बूढ़ी महिला अपनी पोती के साथ यहां आया करती थी और जब उनकी मृत्यु हुई तो उनके मकबरों को बनवाया गया था. वहीं एक अन्य कहानी ये है कि बड़ा वाला यानी दादी का मकबरा किसी मालकिन का है और छोटा वाला यानी पोती का मकबरा उनकी सहायिका का है. इस मकबरे की सबसे खास बात ये है कि पोती के मकबरे का ऊपर एक लालटेन के आकार की आकृति बनी हुई है, जोकि ऐसा दर्शाती है कि ये लोधी काल के समय के हैं.