Women’s Day Special: पहले बच्चों को शोषण से बचाया…. फिर घूंघट की बंदिशें तोड़ी और अब दहेज प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद करने में जुटी हैं ये लड़की, पढ़िए अंजू की कहानी

अंजू कहती हैं कि मेरे पिता का हमेशा सपोर्ट रहा है. एक बार हमें गांव में प्रोग्राम करने के लिए मना कर दिया था, तब उसी दिन मैंने ये डिसाइड कर लिया था कि मैं यहीं प्रोग्राम करूंगी. तब मेरे पापा ने मेरा साथ दिया और पंचायत बैठवाई. जिसका ये निष्कर्ष निकला कि हमने उसी जगह वो प्रोग्राम किया. कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि लड़को ने मेरा पीछा भी किया. मुझे मारने की धमकियां भी दी लेकिन मैं पीछे नहीं हटी.

ANJU VERMA
अपूर्वा सिंह /शताक्षी सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 07 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 1:15 PM IST
  • अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जियें
  • ठोकरों से सीखा जीवन जीना

महिलाओं को शुरू से ही सिखाया जाता है कि शर्म और लज्जा उनका गहना है. उन्हें हमेशा घूंघट में रहने की सलाह दी जाती है. रूढ़ियों और परम्पराओं के नाम पर न कितनी सदियों से उनपर अत्त्याचार होता आ रहा है. घर की ‘इज्जत’ का नाम देकर जहां एक ओर उन्हें घरों में कैद रखा जाता है वहीं शर्म और लाज  के नाम उन्हें उनकी उड़ान भरने से रोका जाता है. लेकिन हरियाणा के फतेहाबाद के एक छोटे से गांव दौलतपुर की अंजू वर्मा इन  रूढ़ियों को तोड़ उड़ान भर चुकी हैं. और अपनी जैसी कई लड़कियों और महिलाओं को इस उड़ान को भरने में मदद कर रही हैं. अंजू बुलंद उड़ान नाम से एक एनजीओ चलाती हैं.

इंटरनेशनल विमेंस डे के मौके पर GNT डिजिटल ने अंजू वर्मा से उनके पूरे सफर के बारे में बात की.

अंजू ने हमें बताया कि वे उस वक़्त केवल 10 साल की थी जब उन्हें एहसास हुआ कि सब लोगों की नजरें अच्छी नहीं होतीं. वे तब अपने रिश्तेदार के घर गई थी जब उनसे घंटों-घंटों काम करवाया जाता था और तब वहां उनके साथ ऐसा वाकया हुआ जिन्होंने उन्हें झकझोर कर रख दिया. तभी से अंजू ने ठाना की वे महिलाओं के  उठाएंगी.

अंजू कहती हैं,  “मैं बुआ के घर से वापस अपने घर आई तो मैंने इसी में काम करना शुरू किया. मैं इसके बाद धीरे धीरे अकेले काम करती थी. हमारे स्कूल में दूर-दूर से लड़के-लड़कियां आया करते थे. मेरे टीचर ने एक बार मुझे बाल मजदूरी के बारे में समझाया. उन्होंने बताया कि 14 साल से कम बच्चों से काम करवाना बाल मजदूरी होता है और ऐसा करने वालों को जेल तक होती है. मैं उन लड़कियों के घर गयी और उनके पापा को कहा समझाया और तब उन्हें समझ आया.”

बुलंद कैसे शुरू हुआ?

फतेहाबाद की रहने वाली अंजू अभी ग्रेजुएशन कर रही हैं. उन्होंने 2017 में अपनी संस्था को बुलंद उड़ान नाम दिया था. इसके बनने के पीछे की कहानी बताते हुए अंजू कहती हैं, “ये काफी इंटरेस्टिंग स्टोरी है. आपको बता दूं, मेरे घर में 2 साल तक नहीं पता मैं क्या कर रही हूं. मैं जब  घर से निकलती थी तो घर पर कहती थी कि ग्रुप स्टडी करने जा रही हूं, जबकि मैं लोगों के घर वकील बनकर जा रही होती थी, लोगों को समझाने के लिए. मेरे स्कूल में 25 बच्चे थे जिन्होंने स्कूल ड्राप आउट कर दिया था, मैंने उन्हें वापिस स्कूल में एडमिशन लेने में मदद की. उनके घरवालों को समझाया. ये बात 9 सितंबर की है मुझे पुणे जाना था टेड-टॉक के लिए. तब  मैंने मेरे घर में ये है था कि मुझे स्कूल की तरफ से भेजा जा रहा है, तो मेरे पापा मेरे साथ गए. मैंने कहा टिकट वही लोग करवाएंगे. मैंने स्टेज पर अपनी पूरी जर्नी बताई. मैं पापा के सामने बहुत नर्वस हो गयी. मुझे लगा अब मेरी पिटाई होगी.  तब मेरे पापा के सामने वहां आये सभी लोगों ने मेरी तारीफें की. पापा बहुत खुश हुए. हम घर आये और पापा ने मुझे कहा कि बेटा जा भर ले अपनी उड़ान. उसी से मैंने अपनी संस्था का नाम बुलंद उड़ान रखा.”

1000 से ज्यादा लड़कियों को बचा चुकी हैं दुर्व्यवहार से 

अंजू इस वक़्त महिलाओं और बच्चों के लिए काम कर रही हैं. वे कहती हैं, “मैंने उसके बाद से कई लोगों को जोड़ा. बुलंद के काम की बात करूं तो अभी तक हमने ऐसी 1000 से ज्यादा लड़कियों को दुर्व्यवहार से बचाकर स्कूल में एडमिशन करवाया है. इसके साथ हमने एक भ्रूण हत्या का केस रोका है, घरेलू हिंसा से कई औरतों को बचाया है. इसी में एक ऐसी लड़की भी बचाया है जिसका रेप हो गया था. मैं और मेरी  संस्था उसके साथ बाद तक खड़ी रही. हालांकि, इसके चलते मुझे कई धमकियां भी मिल चुकी हैं.” 

गांव में दी घूंघट प्रथा को चुनौती 

20 साल की अंजू कहती हैं, “अब हम लोग महिलाओं के  सशक्तिकरण के लिए काम कर रहे हैं. पिछले फाउंडेशन डे पर हमने कई सारे गांवों में घूंघट प्रथा को लेकर जागरूकता अभियान चलाए थे. आज भी लड़कियों को उनकी इच्छा के बगैर घूंघट करना पड़ता है. लेकिन हमने कई गांव में इस प्रथा को तोडा है. हमने गांव  की कई सारी महिलाओं को स्टेज पर खड़ा करके उनके पतियों से उस घूंघट को हटवाया था. ऐसा पहली बार हुआ होगा. 

अब उठाएंगी दहेज़ प्रथा के खिलाफ आवाज  

अब अंजू और उनकी संस्था दहेज़ प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने की तैयारी में हैं. उन्होंने GNT को बताया, “हमारे गांव में 5-7 पंचायतें हुई मेरे खिलाफ कि इस लड़की का क्या करें? ये तो हमारी बेज्जती करवाकर रहेगी. लोग कहते थे कि ये हमारे घर की लड़कियों की इज्जत उतरवा रही है. मेरा ये मानना है कि मैं अकेले रह लूंगी बजाय पापी लोगों के साथ रहने के. अब 8 मार्च को हमारी टीम ये कसम खायेगी कि हम अब से  ऐसी शादी अटेंड नहीं करेंगे, जिसमें दहेज़ दिया या लिया जा रहा है.”

परिवार का कितना साथ था?

अंजू कहती हैं, “मुझे मेरे परिवार का शुरू से ही साथ मिला है. मैं बहुत खुश हूं कि मैंने अपनी मां को इतनी साल पुरानी रूढ़ि से बाहर निकाल दिया. मैंने उनके घूंघट को हटवा दिया.  मैंने मेरी मां को हमेशा के लिए आजादी दिला दी. मेरे पिता का हमेशा सपोर्ट रहा है. एक बार हमें गांव में प्रोग्राम करने के लिए मना कर दिया था, तब उसी दिन मैंने ये डिसाइड कर लिया था कि मैं यहीं करूंगी प्रोग्राम. तब मेरे पापा ने मेरा साथ दिया और पंचायत बैठवायी. जिसका ये निष्कर्ष  निकला कि हमने उसी जगह वो प्रोग्राम किया. कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि लड़को ने मेरा पीछा भी किया. मुझे मारने की धमकियां भी दी गई. 100 साल भेड़-बकरियों की तरह जीने से बेहतर है 10 साल शेर की तरह जीयो.”

ठोकरों और धोखे से सीखा जीवन जीना 

अंजू से जब पूछा कि उनका आदर्श कौन है तो उन्होंने हंसकर कहा, “दरअसल मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है. मैं किसी को नहीं देखती न मैं किसी की तरह बनना चाहती हूं. एक कहावत है न कि बादाम खाने से उतनी अक्ल नहीं आती है जितनी  ठोकर और धोखे खाने से आती है. तो यही सेम मेरे साथ हुआ. मुझे चैलेंज बहुत पसंद हैं. तो मुझे ठोकरे खा खाकर, और देखकर ही सिखने को मिला है. यही सब सब देखकर मैंने सीखा है कि कैसे जिंदगी जीनी है. मेरा मानना है कि आप ऐसा कोई काम करो कि लोग आपको अपना रोल मॉडल मानें.”

अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जियें

अंजू कहती हैं कि एक महिला को पीछे खींचने में बहुत बड़ा रोल है खासकर गांवों में. लड़की एक वाक्य सुनकर ही जीना शुरू करती है और यही सुनते हुए मर जाती है. ये है ‘सबसे बड़ा है रोग, क्या कहेंगे लोग.’ मेरा अनुभव है कि लोग कुछ नहीं कहते, लोग बस आपकी अर्थी को आग लगाकर राम नाम सत्य कहते हैं. जिस चीज़ को ठान लो उसे जरूर पूरा करो. 

वे आगे कहती हैं, “महिलाओं के लिए मैं यही कहना चाहती हूं कि आप लोगों को एकदम डरने की जरूरत नहीं है. कभी भी अपने आप को कम नहीं मानना चाहिए. क्योंकि आप से ही पूरी दुनिया है. आप ही हैं जो घर को घर बना रही हैं. आगे आओ, अपने लिए लड़ाई लड़ो क्योंकि जब आप कामियाब हो जाओगे तो पूरी दुनिया आपको देखेगी.”


 
 

Read more!

RECOMMENDED