गुप्त काशी कहलाता है झारखंड का यह गांव, 108 मंदिरों का है घर, जानें क्या है इसकी खासियत

दुमका शहर से 55 किमी दूर मालूती नामक एक अद्वितीय गांव है, जहां टेराकोटा मंदिर हैं. इस गांव को कभी 'गुप्त काशी' या छिपी हुई वाराणसी के नाम से जाना जाता था.

Maluti Village Temple (Photo: Wikipedia)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 20 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 2:45 PM IST
  • इस अनोखे गांव में 108 शानदार प्राचीन मंदिर हैं
  • 108 मंदिरों में से सिर्फ 72 ही बचे हैं

झारखंड के भीतरी इलाकों में, मालूती के मंदिरों का शहर स्थित है. दुमका जिले के शिकारीपारा शहर के पास यह छोटा सा टोला है. 406 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैले इस गांव में कई ऐतिहासिक, धार्मिक और अद्भुत स्थापत्य प्राचीन विरासत संरचनाएं हैं जो आपको मंत्रमुग्ध कर देंगी. अपने ऐतिहासिक महत्व के बावजूद, आज भी यह जगह बहुत जानी-पहचानी नहीं है.

108 मंदिरों और खूबसूरत तालाबों वाले इस गांव की झांकी 2015 में नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड के दौरान पेश की गई थी और उस समय मुख्य अतिथि रहे तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बैरक ओबामा भी इससे प्रभावित हुए थे. 

मालूती के बारे में कुछ रोचक तथ्य

  • लगभग 2,500 से 3,000 की आबादी के साथ, इस अनोखे गांव में 108 शानदार प्राचीन मंदिर हैं. राज्य और केंद्र, दोनों सरकारें इसे यूनेस्को में विश्व धरोहर स्थल घोषित करने के लिए प्रयास कर रही हैं.
  • करीब 250 से 300 साल पहले मालूती में बने 108 मंदिरों में से सिर्फ 72 ही बचे हैं. तालाबों की संख्या भी घटकर 65 रह गई है.
  • यहां बने सबसे ज्यादा मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं.
  • इस झांकी को 2015 के गणतंत्र दिवस परेड में द्वितीय पुरस्कार के लिए चुना गया था. और मालूती की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत ने सरकार और पर्यटकों का ध्यान आकर्षित किया.
  • मालूती में बने मंदिर टेराकोटा के हैं. उन पर चला, बंगाल और उड़ीसा की प्राचीन वास्तुकला की छाप है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मालूती को एक ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत स्थल के रूप में मानचित्र पर लाने में व्यक्तिगत रुचि दिखाई है, जिसके बाद केंद्र सरकार की मदद से इन विरासत स्थलों को संरक्षित करने के लिए 13.67 करोड़ रुपये का निर्माण कार्य शुरू हुआ है. आपको बता दें कि 2010 में, ग्लोबल हेरिटेज फंड, जो प्राचीन संरचनाओं की विरासत को पुनर्स्थापित करने पर काम कर रहा है, ने दुनिया की 12 सबसे लुप्तप्राय विरासत स्थलों की सूची में मालूती के मंदिरों को शामिल किया. 

मालूती में 108 मंदिरों की कहानी
मालूती में 108 मंदिरों और तालाबों के बनने की कहानी काफी दिलचस्प है. साल 1494-1519 के बीच सुल्तान अला-उद-दीन हुसैन शाह का बंगाल पर शासन था और कहा जाता है कि सुल्तान को चील रखने का शौक था. एक दिन, सुल्तान का एक पसंदीदा चील गायब हो गया. चील को खोजने वाले को एक बड़ा इनाम देने की घोषणा की गई. 

मान्यता है कि बसंत राय नाम के एक युवक को यह बाज मिला. राय के प्रयास से प्रसन्न होकर सुल्तान ने उसे मालूती और आसपास के क्षेत्रों की भूमि उपहार में दे दी. जमीन के मालिक होने के बाद, बसंत राय को राजा बाज बसंत के नाम से जाना जाने लगा. उनके वंशज राजा राखड़ चंद्र राय ने अपना समय धार्मिक गतिविधियों, अनुष्ठानों और समारोहों के लिए समर्पित किया. उसने 1720 ई. में मालुती में पहला मंदिर बनवाया. कहा जाता है कि उनके परिवार के अन्य सदस्य भी मंदिरों के निर्माण को लेकर आपस में होड़ करने लगे.

एक ही परिवार द्वारा एक-एक करके 108 मंदिर और इतने ही तालाब बनवाए गए. इनमें से सबसे ऊंचा मंदिर 60 फीट ऊंचा है और सबसे छोटा केवल 15 फीट ऊंचा है. 

कहलाता है गुप्त काशी
मालूती को 'गुप्त काशी' के नाम से भी जाना जाता है. प्राचीन शिलालेखों से पता चलता है कि मालूती को कभी 'देवताओं की भूमि' के रूप में जाना जाता था. मालूती के धार्मिक महत्व को महसूस करते हुए, तत्कालीन मुस्लिम शासक सुल्तान अला-उद-दीन हुसैन शाह (1493-1519) ने इस क्षेत्र को कर-मुक्त भूमि घोषित कर दिया था. 

 

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