चंडीगढ़ में एक असिस्टेंट प्रोफेसर 48 वर्षीय पंडितराव धरेनवर पिछले एक दशक से पढ़ा रहे हैं. साथ ही, वह सालों से राज्य में गन कल्चर के खिलाफ अभियान चला रहे हैं. उनका उद्देश्य 'पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत' को बढ़ावा देना है. उनकी पहल को पिछले हफ्ते एक नया मोड़ मिला जब पंजाब सरकार ने गन कल्चर को बढ़ावा देने वाले गानों पर बैन लगा दिया.
कर्नाटक के मूल निवासी धरनेवर ने कन्नड़ और पंजाबी के बीच धार्मिक और सामाजिक साहित्य का भी अनुवाद किया है. जिसमें 12वीं शताब्दी के कन्नड़ संतों के वचन का पंजाबी में अनुवाद भी शामिल है. पंजाबी से कन्नड़ में उन्होंने जाप जी साहब और सुखमणि साहब का अनुवाद किया है.
खुद सीखी पंजाबी
धरेनवर ने 2003 में शहर में सहायक प्रोफेसर के रूप में अपना करियर शुरू किया. वह वर्तमान में स्नातकोत्तर सरकारी कॉलेज में समाजशास्त्र के सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं. कर्नाटक के बीजापुर जिले के छोटे से गांव शिराश्यद के रहने वाले धरेनवर के लिए यहां पोस्टिंग होना एक बड़ा सांस्कृतिक बदलाव था. छात्रों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने के लिए उन्होंने 2005 में पंजाबी सीखी.
टीएनआईए के मुताबिक, उन्होंने देखा कि बहुत से छात्र इंग्लिश नहीं बोल पाते हैं तो उन्होंने पहले खुद पंजाबी सीख ली ताकि छात्रों को उनकी भाषा में पढ़ाएं. लेकिन पंजाबी सीखने और पढ़ाने के बाद, इस भाषा से उन्हें इतना प्यार हो उन्होंने इसे बढ़ाने के लिए अभियान शुरू किया.
कैसे हुई शुरुआत
2016 में, धरेनवर ने एक 21 वर्षीय डांसर कुलविंदर कौर का एक वीडियो देखा. कौर की भटिंडा के मौर मंडी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. यह उनके लिए एक झटका था क्योंकि कौर तीन महीने की गर्भवती थी. इस क्रुरता के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाने का फैसला किया.
उन्होंने खासकर उन गानों के खिलाफ लड़ने का फैसला किया, जो गन कल्चर, अश्लीलता और शराब को बढ़ावा देते हैं और शादी जैसे अन्य कार्यक्रमों के दौरान बजाए जाते हैं.
साइनबोर्ड पर बदली भाषा
धरेनवर ने चंडीगढ़ (केंद्र शासित प्रदेश) में अभियान शुरू किया क्योंकि शहर के सभी साइनबोर्ड केवल अंग्रेजी में थे. पंजाब और हरियाणा की राजधानी होने के नाते चंडीगढ़ में अंग्रेजी के अलावा पंजाबी और हिंदी दोनों में साइनबोर्ड होने चाहिए. नतीजतन, उन्होंने तीन भाषाओं में साइनबोर्ड होने के बारे में यूटी प्रशासन से संपर्क किया और 2014 में इस पर निर्णय किया गया.
धरेनवर ने कहा कि चंडीगढ़ प्रशासन ने आज भी पंजाबी को आधिकारिक भाषा के रूप में नहीं अपनाया है. उन्होंने कहा कि इसी वजह से 'पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत' को बढ़ावा देने के लिए उनके अभियान की जरूरत पड़ी. उका कहना है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने की बात कही गई है. इसलिए प्रशासन को पंजाबी और हिंदी को अपनी राजभाषा के रूप में अपनाना होगा. यदि वे नहीं करते हैं, तो वह अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे क्योंकि आधिकारिक भाषा अधिनियम भी स्थानीय भाषाओं को अपनाने का सुझाव देता है.