केरल में पतनमथिट्टा के रहने वाले 47 वर्षीय राजेश तिरुवल्ला एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वह अपने परिवार के साथ मिलकर महात्मा जनसेवा केंद्रम चला रहे हैं. जहां वह 300 से ज्यादा बेसहारा लोगों को न सिर्फ रहने को घर बल्कि एक परिवार दे रहे हैं.
सबसे दिलचस्प बात यह कि राजेश को खुद कभी बचपने में परिवार का प्यार नहीं मिला. वह बहुत छोटे थे जब उनके माता-पिता अलग हो गए थे. उनका लगभग पूरा बचपन बिना माता-पिता ही बीता. कुछ समय बाद, उनके माता-पिता, दोनों ने अलग-अलग जगह दूसरी शादियां कर लीं. इसके बाद, उन्होंने घर छोड़ दिया और छोटे-बड़े काम करने लगे.
समाज सेवा में मिला सुकून
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 12 साल की उम्र तक राजेश ने ग्रामीणों के खेतों में काम करना शुरू कर दिया था. उन्होंने 16 साल की उम्र में आजीविका और पढ़ाई के लिए अपनी झोपड़ी के सामने एक छोटी-सी दुकान शुरू की. लेकिन जब उन्हें अपनी मां की दूसरी शादी के बारे में पता चला तो वह घर छोड़कर निकल गए.
राजेश ने अपने साथ सिर्फ 10वीं कक्षा का प्रमाण पत्र लिया और केरल छोड़ दिया. कुछ सालों तक, दूसरे राज्यों में काम करने के बाद वह केरल लौटे. उन्होंने अपने लगभग 40 दोस्तों के साथ सामाजिक गतिविधियां शुरू कीं. उन्होंने जरूरतमंद छात्रों की मदद की, बिस्तर पर पड़े मरीजों और निराश्रितों को सहायता दी. जल्द ही, वह पठानपुरम में गांधी भवन में काम करने लगे. इससे उन्हें बहुत सुख मिलता था.
बेसहाराओं को दिया सहारा
गांधी भवन में राजेश की मुलाकात कोल्लम की रहने वाली प्रीशिल्दा से हुई. वह भी समाज सेवा नें तल्लीन रहती थीं. कुछ समय बाद राजेश और प्रीशिल्दा ने शादी कर ली. साल 2012 तक दोनों ने गांधी भवन में काम किया.
साल 2015 में एक IAS के कहने पर उन्होंने एक वृद्धावस्था देखभाल केंद्र शुरू किया. जिसका नाम महात्मा जनसेवा केंद्रम है. वर्तमान में, केंद्र में एक डॉक्टर और नर्स सहित 50 कर्मचारी और 120 स्वयंसेवक हैं. राजेश कहते हैं कि उनके पास पांच एकड़ का खेत और मोमबत्ती बनाने वाली यूनिट है, जिससे कुछ आजीविका वह कमा लेते हैं. बाकी बहुत से नेकदिल लोग उनकी मदद कर रहे हैं.
राजेश कहते हैं कि अब उनके आंसुओं की जगह मुस्कान ने ले ली है.