साइकिल दुर्घटना में अपने नाना की मौत से दुखी 23 साल की एक लड़की ने लोगों की ज़िंदगी बचाने का जिम्मा उठा लिया है. लखनऊ से सटे उन्नाव के पास सिरैया गांव से ताल्लुक रखने वाली यह लड़की लोगों की साइकिल पर फ्री में टॉर्च/लाइट लगाती हैं. बीएएलएलबी की पढ़ाई कर रही इस लड़की का नाम खुशी पांडे है. खुशी ने इस पहल को 'प्रोजेक्ट उजाला' का नाम दिया है. हालांकि, सोशल मीडिया पर “साइकिल पर लाइट लगवा लो’ का प्लेकार्ड लिए खुशी की वीडियो देखकर लोग शाबाशी देने से नहीं चूक रहे.
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, देश में सड़क दुर्घटना से होने वाली मौतों में पिछले सालों की तुलना में 2021 में लगभग 17% की वृद्धि हुई है. सड़क दुर्घटना के सबसे ज्यादा मामले तमिलनाडु (57,090) में आए हैं. इसके बाद मध्य प्रदेश और फिर उत्तर प्रदेश है. बस इन्हीं मामलों को कम करने की खुशी ने ठान ली है. इसके लिए खुशी सड़क सुरक्षा अधिकारियों को पत्र लिखकर सभी साइकिलों के लिए ऐसी लाइट अनिवार्य करने का अनुरोध भी कर चुकी हैं. अपने मिशन को लेकर खुशी ने GNT डिजिटल को बताया, “मैंने इसी साल जनवरी से ये मिशन शुरू किया है. इसके पीछे बस यही मिशन था की रोड-रैश को कम किया जा सके. और साइकिल से जो रोज कारीगर या लोग जाते हैं वो सुरक्षित अपने घर पहुंच सके. इसीलिए ये शुरू किया गया है.”
एक नहीं कई प्रोजेक्ट चला रही हैं खुशी
बताते चलें कि खुशी केवल ‘लाइट लगवा लो’ प्रोजेक्ट पर ही काम नहीं कर रही हैं, बल्कि समाजहित में कई और प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं. अपने इन्हीं प्रोजेक्ट्स के बारे में बात करते हुए खुशी कहती हैं, “मेरी शिक्षा एक एनजीओ द्वारा करवाई गई है. मेरा उस समय का सपना था कि अगर मेरी शिक्षा एक एनजीओ ने करवाई है तो कम से कम मैं के बच्चे की पढ़ाई तो पूरी करवा पाऊं. इसी सपने के साथ मैंने शुरू किया था और आज मैं 82 गरीब बच्चों का एक स्कूल चला रही हूं. इसके अलावा, समाज में पीरियड्स को लेकर लोगों को जागरूक कर रही हूं और उसके लिए प्रोजेक्ट दाग चला रही हूं. रोड सेफ्टी के लिए प्रोजेक्ट उजाला पर काम कर रही हूं. साथ ही साथ भुखमरी मिटाने के लिए प्रोजेक्ट अन्नपूर्णा पर भी काम कर रही हूं और साथ में एसिड अटैक सर्वाइवर को ट्रेनिंग देती हूं. हालांकि, अभी आगे भी गर्मियों में छांव नाम के एक प्रोजेक्ट को लॉन्च करने का सोच रहे हैं.”
बचपन में दूसरे बच्चों का स्कूल खत्म होने पर होती थी क्लास
खुशी बताती हैं कि उनकी पढ़ाई एक एनजीओ ने करवाई है. ऐसे में बच्चों के स्कूल के बाद उनकी क्लास लगा करती थी. इसे लेकर खुशी बताती हैं, “मुझे अक्सर पूछा जाता है कि में किसे अपना आदर्श मानती हूं. मेरा कोई आदर्श नहीं है. मुझे लगता है कि जब आप खुद उन सभी परिस्थितियों से गुजरते हैं तो आपको पता होता है कि समाज में क्या दिक्कतें हैं. तो मैंने ये दिक्कतें देखी हैं. बचपन में अक्सर मेरा स्कूल सभी बच्चों की छुट्टियां होने के बाद लगा करता था, तो मैं मम्मी से पूछा करती थी कि ऐसा क्यों? तो मम्मी का जवाब होता था कि हम गांव से आए हैं और पढ़ाई में कमजोर हैं इसलिए. जब बड़े हुए तब परिस्थितियों का एहसास हुआ. बस इन्हीं को देखकर लगा कि मुझे ये सब मिशन लॉन्च करने चाहिए.”
समाज के लोगों ने अक्सर सवाल उठाया
जब आप कुछ शुरू करते हैं, तो समाज के कुछ लोग होते हैं जो हमेशा आपको रोकने का काम करते हैं. उदाहरण के लिए मैंने मेंस्ट्रुअल हाइजीन पर जब प्रोजेक्ट दाग लॉन्च किया तो लोगों ने कहा कि ये क्या है? इसके अलावा जब उजाला प्रोजेक्ट को लेकर में प्रचार करती हूं या कार्डबोर्ड लेकर सड़कों पर लोगों को जागरूक करने के लिए खड़ी होती हूं तो लोग सवाल उठाते हैं. लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो पूरा साथ दे रहे हैं.”
आगे खुशी कहती हैं कि हमारे लिए सबसे ज्यादा चुनौती भरा है कि रेवेन्यू कहां से लेकर आएं. इसके अलावा एक लड़की के तौर पर भी समाज सुधार का रास्ता काफी मुश्किलों से भरा है. लेकिन मेरा फोकस केवल सकारात्मक बातों पर होता है.
प्रोजेक्ट चल सकें इसलिए तीन जगह जॉब कर रही हैं खुशी
हालांकि, इन सभी प्रोजेक्ट को चलाना इतना आसान नहीं है. 23 साल की खुशी अपनी समाज सेवा जारी रख सकें और पैसे आते रहें इसके लिए वे इस वक्त तीन जगह काम कर रही हैं. 2 नौकरी कॉर्पोरेट में और एक यूट्यूब चैनल पर. खुशी कहती हैं, “मैं इस वक्त तीन जगह काम कर रही हूं. दो जगह में पब्लिक रिलेशन का काम देखती हूं. और एक लीगल फर्म के जरिए बच्चों को यूट्यूब पर पढ़ा रही हूं. तो ये तीन जगह ऐसी हैं जहां से मैं पैसे कमा रही हूं. इस पूरी सैलरी का मैं 80 प्रतिशत अपने सोशल कामों के लिए लगाती हूं बाकि कुछ डोनर्स भी हैं जो कभी-कभी आर्थिक मदद कर देते हैं. ऐसे में हमारी मदद अगर कोई सरकारी संस्थान कर सके तो हमारी लिए इस काम को सुचारू रखना आसान हो जाएगा.”