बच्चों को फ्री शिक्षा देकर बदली जिंदगी, कभी ट्रांसजेंडर होने पर नहीं मिली थी नौकरी..कुछ ऐसी है आलिया मिलिंद पवार की कहानी

किन्नर समाज देश में एक ऐसा वर्ग है, जिनको अपना हक़ कभी नहीं मिला..ना ही उनको आगे बढ़ने का मौका दिया गया. लेकिन अब देश में किन्नर समाज के लोगों के लिए नज़रिया बदला है. एक समय किन्नर समाज के लोगों को पढ़ने का भी मौका नहीं दिया जाता था. ऐसे में अब किन्नर समाज के लोग देश का नाम रोशन कर रहे है. कुछ ऐसी ही कहानी है आलिया मिलिंद पवार की..

आलिया मिलिंद पवार
पारस दामा
  • मुंबई,
  • 22 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 11:16 PM IST
  • तहसीलदार ऑफिस ने दी कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी

किन्नर समाज के लोग आज हर क्षेत्र में अपनी एक नयी पहचान बना रहे हैं साथ ही समाज में बदलाव लाने में और लोगों की मदद करने में भी आगे आ रहे हैं. मुंबई के वसई इलाक़े में रहने वाली आलिया मिलिंद पवार, जो किन्नर समाज से आती हैं और साइंस से ग्रेजुएट है. आलिया पिछले कुछ सालों से लगातार समाज सेवा का भी काम कर रही हैं. जहां पर वो अपने इलाक़े में रहने वाले झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों को बिना किसी शुल्क के शिक्षित कर रही हैं.

कई सालों से बच्चों को पढ़ा रहीं

झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों को शिक्षित करने के इस मुहिम को वो पिछले कई साल से कर रही हैं, जिसका मक़सद यही है कि उनको जिस तरीके से अपनी शिक्षा पूरी करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा. वो मुश्किल किसी और को नहीं झेलनी पड़े.

लेकिन अभी भी कुछ तबका ऐसा है, जो किन्नर समाज के लोगों को आगे बढ़ने में नहीं मदद करते और किन्नर समाज को हिस्सा भी नहीं मानते हैं. आलिया मिलिंद पवार ने BSC की पढ़ाई की है, उसके बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिल पा रही थी. जब लोगों को यह पता लगता था कि वो किन्नर समाज से आती हैं. तब उन्हें नौकरी नहीं दी जाती थी. वही कोविड के समय उन्होंने झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया शुरू में उनके पास 2 बच्चे पढ़ने आते थे लेकिन अब उनके पास 30 बच्चे हैं, जो शिक्षा ले रहे हैं.

तहसीलदार कार्यालय ने किया पुरस्कृत

ऐसे में आलिया मिलिंद पवार के प्रयासों को देखने के बाद स्थानीय तहसीलदार कार्यालय ने उन्हें पुरस्कृत किया है और उन्हें कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी दी है. उजवाला भगत जो वसई की तहसीलदार है, उन्होंने आलिया की इस कोशिश को देखने के बाद तहसीलदार ऑफिस में उन्हें नौकरी दी. 

आलिया मिलिंद पवार इस बदलाव से बेहद ख़ुश हैं. वह नौकरी मिलने के बाद भी बच्चों को शिक्षा देना बंद नहीं किया है. वह अभी भी हर रविवार को बच्चों को पढ़ाती हैं.

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