हर साल 13 या 14 जनवरी को लोहड़ी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. खासकर कि पंजाबी और सिख समुदाय के लोगों के लिए इसका बहुत ज्यादा महत्व है. लोहड़ी का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है. इस दिन रात के समय आग जलाकर, इसके चारों ओर परिक्रमा करते हैं. आग में रेवड़ी, मुंगफली और पॉपकॉर्न जैसी चीजें डालते हैं.
साथ ही एक लोकगीत हर जगह गाया जाता है. इस गीत की कुछ पंक्तियां हैं:
सुंदर मुंदरिये हो !
तेरा कौन विचारा हो !
दुल्ला भट्टी वाला हो !
दुल्ले धी व्याही हो !
सेर शक्कर पाई हो....
कहते हैं कि इस गीत के बिना लोहड़ी पूरी नहीं होती. और हर जगह यही गीत लोग गाते हैं और लोहड़ी पर सुंदरी-मुंदरी और दुल्ला भट्टी को याद करते हैं. अब सवाल है कि ये लोग हैं कौन.
कौन हैं दुल्ला भट्टी
बताते हैं कि मुगल काल में, जब हिंदुस्तान पूरा एक था, तब पंजाब में साल 1547 में राय अबदुल्ला खान का जन्म हुआ, जिन्हें हम सब दुल्ला भट्टी के नाम से जानते हैं. कहते हैं कि वह राजपूत मुस्लमान थे. बचपन से ही दुल्ला भट्टी बहुत साहसी थे. लगान न भरने के कारण उनके पिता और दादा को मुगलों ने मार दिया था. मुगलों के अत्याचार का जवाब देना ही दुल्ला भट्टी के जीवन का लक्ष्य था.
लोग उन्हें उस जमाने का रॉबिनहुड कहते हैं. मुगल सैनिक भी उनसे भय खाते थे. वह डकैत थे लेकिन नेकदिल डकैत, जो अमीरों और अत्याचार करने वाले से लुटकर गरीबों का घर भरते थे और उन्हें आगे की राह दिखाते थे. एक बार उन्हें पता चला कि एक किसान को गांव का नंबरदार बहुत परेशान कर रहा है.
किसान की बेटियों की कराई शादी
दरअसल, सुंदरदास किसान की दो बेटियां थी- सुंदरी और मुंदरी. दोनों लड़कियों पर नंबरदार की बुरी नजर थी. किसान अपनी बेटियों की शादी करवाना चाहता था लेकिन नंबरदार कहीं बात नहीं बनने देता और किसान पर दबाव बनाता कि वह अपनी बेटियों की शादी नंबरदार से कर दे.
किसान की परेशानी के बारे में सुनकर दुल्ला भट्टी ने वचन दिया कि वह लड़कियों की शादी सही जगह कराएंगे. दुल्ला ने सबसे पहले नंबरदार के खेत जलाए और फिर वहीं लड़कियों की शादी कराई. शादी के मौके पर दुल्ला ने लोगों में शक्कर भी बांटी. और तबसे ही लोहड़ी के लोकगीतों में वह शामिल हो गए.