आदिवासी परंपरा को कायम रखने के लिए बैलगाड़ी पर बारात लेकर पहुंचा दूल्हा...नाचते पहुंचे बराती

आमतौर पर देखा जाता है कि विवाह समारोह मे लोग अच्छा खासा खर्चा करके इसे अच्छे से अच्छे तरीके से यादगार बनाने की कोशिश करते हैं. वहीं हाई प्रोफाइल विवाह समारोह मे तो लाखों करोड़ों रुपये तक लोग खर्च कर देते हैं. लेकिन मध्यप्रदेश के धार के एक छोटे से गांव पडियाल का एक विवाह समारोह इन दिनों सुर्खियों में है.

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gnttv.com
  • मध्यप्रदेश,
  • 12 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 9:48 PM IST
  • परंपरा के कारण लिया फैसला 
  • पढ़ाई के दौरान हुआ प्यार

आमतौर पर देखा जाता है कि विवाह समारोह मे लोग अच्छा खासा खर्चा करके इसे अच्छे से अच्छे तरीके से यादगार बनाने की कोशिश करते हैं. वहीं हाई प्रोफाइल विवाह समारोह मे तो लाखों करोड़ों रुपये तक लोग खर्च कर देते हैं. लेकिन मध्यप्रदेश के धार के एक छोटे से गांव पडियाल का एक विवाह समारोह इन दिनों सुर्खियों में है. इसमें खास बात यह है कि दुल्हा अपने सपने की रानी को लेने बैलगाड़ी से दुल्हन के घर तक गया. पूरी बारात ही बैलगाड़ियों से निकाली गई. वहीं बाराती आदिवासी लोकनृत्यों पर थिरकते दिखाई दिये.

पढ़ाई के दौरान हुआ प्यार
धार जिले के ग्राम पडियाल मे एक पढ़े- लिखे युवक ने अपने विवाह के दौरान अपनी प्राचीन परंपरा निभाई. दूल्हा बैलगाड़ी पर बैठकर अपने सपनों की रानी को लेने पहुंचा. सभी बाराती भी बैलगाड़ी मे सवार दिखाई दिये. दूल्हे ने कोट पैंट की जगह धोती कमीज और परंपरागत चांदी के आभूषण पहने और बाराती आदिवासी लोकगीतों पर नाचते झूमते चल रहे थे. ये नजारा था धार के एक छोटे से गांव पडियाल का. मौका था एमए पास युवक गजेन्द्रसिंह के विवाह का. गजेन्द्र सिंह बडवानी मे कोचिंग चलाते हैं. सात वर्ष पूर्व इनके गांव की ही अलका से पढ़ाई के दौरान दोस्ती हुई और दोस्ती प्यार मे बदल गई. दोनों ने अपने-अपने घरवालों को इसके बारे मे बताया और घर वाले भी विवाह के लिये राजी हो गए. फिर दोनों सात फेरों के बंधन मे हमेशा हमेशा के लिये बंध गये. 

परंपरा के कारण लिया फैसला 
गजेन्द्र सिंह ने आधुनिकता को छोड़ पारंपरिक तरीके से विवाह किया जो कि इनके लिये जीवन भर यादगार बन गया. गजेन्द्र सिंह का कहना है कि उन्होंने अपनी प्राचीन परंपरा को निभाया है.गजेन्द्र ने कहा कि बैलगाड़ी से बारात निकालने का सिद्धांत यही है कि आदिवासी जो हमारी परम्परा है वह एक प्रकार से विलुप्त होने की कगार पर हो गई थी. मैंने इसे जीवंत किया है ताकि इससे आगे आने वाली पीढ़ी को भी प्रेरणा मिले कि वह आदिवासी परम्परा को इस तरह से निभाए.

(छोटू शास्त्री की रिपोर्ट)

 

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