'हज़ार बर्क़ गिरे लाख आंधियां उट्ठें , वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं,' साहिर लुधियानवी जी का यह शेर महाराष्ट्र के अभय टोडकर पर बिल्कुल सटीक बैठता है. पोलियों ग्रस्त अभय चलने फिरने में असमर्थ होने के बावजूद आज हजारों लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं. लोगों का प्यार उन्हें आगे बढ़ने और चुनौतियों को स्वीकार कर कुछ करने का हौसला देता है.
महाराष्ट्र के सतारा जिले के 44 वर्षीय अभय टोडकर LPG कंपनी चलाते है, जो उनके गृहनगर दहीवाड़ी और उसके आसपास के 26,000 से ज्यादा लोगों को सर्विस देती है. पोलियो ग्रस्त होने के बावजूद उनका हौसला नहीं टूटा. और आज वह महाराष्ट्र के 60 से ज्यादा गांवों में जल संरक्षण करने में मदद कर रहे हैं.
शुरू में शिक्षक बनना चाहते थे
अभय ने कॉमर्स से ग्रेजूएशन और फिर D.Ed किया है. D.Ed करने के बाद, वह प्राइमरी स्कूल में टीचर बनना चाहते थे. लेकिन उनकी नौकरी नहीं लग पाई. उसके बाद अभय टोडकर ने घर बैठकर किस्मत को दोष देने के बजाय कुछ करने का फैसला लिया. उन्होंने होलसेल बिजनेस (थोक व्यापार) शुरू किया. वह सरकारी बसों में दहीवाड़ी के आसपास के अलग-अलग गांवों और कस्बों में जाते थे. दुकानदारों को सामान बेचने के लिए सिर पर सामानों से भरा बैग ले जाते थे. धीरे-धीरे पूरे इलाके में उनकी पहचान हो गई. इस दौरान उनके माता-पिता और पत्नी ने उनका पूरा सपोर्ट किया.
पेपर में विज्ञापन देख LPG के लिए किया था अप्लाई
टोडकर ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि गैस कंपनी के मालिक बनने में उनके भाग्य ने भी बड़ा साथ दिया है. उन्होंने एक पेपर में हिंदुस्तान पेट्रोलियम की एजेंसी का विज्ञापन देखा और इसके लिए अप्लाई कर दिया. उनका नाम लकी ड्रॉ के माध्यम से चुना गया. अभय मानते हैं कि जब भगवान हमसे कुछ लेता है, तो वह आपको एक प्रेरणा भी देता है जिससे आप कुछ हासिल करना चाहते हैं. वही प्रेरणा हमेशा उनके अंदर थी.
कभी करना चाहते थे सुसाइड
अभय की जिंदगी में सबकुछ बहुत आसान नहीं था. एक समय तो ऐसा आया कि उन्होंने सुसाइड करने का मन बना लिया क्योंकि वह काफी ज्यादा मानसिक तनाव में थे. इस तनाव से निकलने के लिए उन्होंने 'आर्ट ऑफ लिविंग' का कोर्स ज्वाइन किया. जिससे उन्हें काफी ज्यादा मदद मिली और उनकी जिंदगी में सकारात्मक बदलाव आया. इसी सगंठन के जरिए वह जल संरक्षण जैसे सामाजिक कार्यों से भी जुड़ गए. और यह सिलसिला आज भी जारी है.
जल संरक्षण के लिए गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक किया
साल 2015-16 में दहीवाड़ी में ही उन्होंने एक नदी पर डैम बनाने में लोगों की मदद की. इसके बाद उन्होंने 'पानी फाउंडेशन' के साथ मिलकर जल संरक्षण के बारे में गांव-गांव जाकर लोगों में जागरूकता फैलाना शुरू किया. टोडकर 'श्रमदान' और गांवों में जल संरक्षण पर बात करते हुए कहते हैं कि इसके लिए लोगों को एक साथ लाना बेहद मुश्किल था. उन्होंने बहुत कोशिश की लेकिन गांव के लोगों को एक साथ नहीं ला सके.
फिर उन्होंने इसके लिए एक तरकीब निकाली, वह एक स्कूल के दिव्यांग छात्रों को उस गांव में ले गए और वहां उनसे श्रमदान कराया. जब गांव के लोगों ने देखा कि दिव्यांग बच्चे श्रमदान कर रहे हैं, तो वे एक-एक कर आगे आए. इस तरह गांव के लोगों ने मिलकर जल संरक्षण की दिशा में अपना सहयोग दिया. आज यह गांव पानी के मामले में न सिर्फ आत्मनिर्भर है बल्कि दूसरे गांवों को भी पानी की आपूर्ति करता है. आज अभय और उनके साथी 60 से ज्यादा गांवों को जल संरक्षण, डेयरी फार्मिंग, छोटे व्यवसाय, बकरी पालन, चिकन पालन और केमिकल फ्री खेती की ट्रेनिंग देने में मदद कर रहे हैं.