3 दिसंबर को विज्ञान भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा शहर की ही दिव्यांग डेवलपमेंट सोसाइटी को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए सम्मानित किया गया था. यह पुरस्कार संस्था की सचिव मनप्रीत कौर कालरा को दिया गया. दिव्यांग बच्चों के पासपोर्ट बनवाना, मूक बधिर बच्चों के ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना, दिव्यांग बच्चों को सिंगापुर के लर्निंग एंड ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए यात्रा पर भेजना आदि जैसे उत्कृष्ट कार्यो के लिए संस्था को सम्मानित किया गया.
इस मौके पर संस्था सचिव मनप्रीत कौर ने सभी सहयोगियों का आभार जताया. उन्होंने कहा कि प्रदेश की सरकार का इस पुरस्कार के पीछे बहुत बड़ा योगदान रहा है. मूक बधिर बच्चों के लिए भेजे गए कई प्रस्ताव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से पास किए गए. इसके बाद यह उपलब्धियां हासिल हो सके, उन्होंने कहा कि दिव्यांग डेवलपमेंट सोसाइटी आगे भी निरंतर दिव्यांग बच्चों के लिए काम करती रहेगी.
मनप्रीत कौर को इससे पहले उत्तर प्रदेश का रानी लक्ष्मी बाई अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है. इसके साथ ही शहर से लेकर राज्य स्तरीय कई पुरस्कार से उन्हें नवाजा जा चुका है. मूक-बधिरों के लिए मनप्रीत कौर कालरा एक बड़ी और बुलंद आवाज बनकर उभरीं. मनप्रीत ने लाखों की नौकरी छोड़कर दिव्यांग बच्चों के कल्याण के लिए अपने घर से ही उन्हें साइन लैंग्वेज सीखने का, रोजगार परक शिक्षा देने का काम शुरू किया. यह सफर उन्होंने पांच बच्चों के साथ शुरू किया था वो सैकड़ों बच्चो का हो चुका है.
मनप्रीत ने बताया वह नोएडा में मल्टीनेशनल कंपनी में क्वालिटी एनालिसिस की जॉब कर रही थी , तभी वह कई मुंह बुजर बच्चों के संपर्क में आई जिसके बाद उनको लगा कि उनके लिए मुझे कुछ करना चाहिए. जब मनप्रीत कानपुर आई तो देखा कि यहां पर ऐसे कई बच्चे हैं जिन्हें मदद की आवश्यकता है, उन्होंने एक कमरे से पांच बच्चों के साथ कोचिंग शुरु की और धीरे-धीरे कभी 5 से 50 से 200 से 400 होते चले गए पता ही नहीं चला
मूक-बधिर बच्चों के तेज दिमाग और हुनर को तराशकर दिलाई पहचान
इसके बाद मनप्रीत ने बच्चों को साइन लैंग्वेज, कंप्यूटर और लघु उद्योग का प्रशिक्षण देकर अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद की. बड़े होटल, मॉल और कंपनियों में मूक-बधिरों को नौकरी दिलवाई. मनप्रीत ने बताया कि उन्होंने जब मूक-बधिर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था तो बच्चों को समझाने में खासी परेशानी होती थी. इसके बाद उन्होंने खुद इंदौर जाकर एक शिक्षण संस्थान से साइन लैंग्वेज सीखी और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
-सिमर चावला