पहले देश के लिए कुर्बान हुआ बेटा, अब माता-पिता संवार रहे हैं सैकड़ों युवाओं का जीवन, फ्री में दे रहे आर्मी के लिए ट्रेनिंग

अपने बेटे की शहादत के बाद इस दंपति ने जरूरतमंद बच्चों को मंजिल तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है. जेआर त्रिखा और स्वदेश त्रिखा ने 20 साल पहले अपने बेटे को खो दिया था लेकिन आज वे 200 से ज्यादा बच्चों का जीवन संवार चुके हैं.

Trikha Couple (Photo: http://mtrix.org.in/)
वरुण सिन्हा
  • नई दिल्ली ,
  • 19 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 11:41 AM IST
  • 16 अगस्त 2002 को उनका बेटा शहीद हुआ था
  • साल 2006 से शुरू की समाज-सेवा

यह कहानी है ऐसे नेकदिल माता-पिता की, जिन्होंने अपने बेटे को हमेशा के लिए खो दिया. लेकिन जीवन से निराश होने की बजाय दूसरे बच्चों का जीवन संवार रहे हैं. 16 अगस्त 2002 को जेआर त्रिखा व स्वदेश त्रिखा को अपने बेटे, फ्लाइट लेफ्टिनेंट महीश त्रिखा के बलिदान होने की सूचना मिली थी. इसके बाद, मानो उनके जीवन में सब कुछ खत्म हो गया. 

बेटे के जाने का गम दोनो के लिए आसान नहीं था. पर कहते हैं कि जीवन किसी के लिए नहीं रूकता. और फिर एक दिन, इस दंपति ने तय किया कि अपने बेटे को सिर्फ वही याद नहीं रखेंगे बल्कि पूरा देश याद रखेगा. अपने शहीद बेटे की याद में, इस दंपति ने और युवाओं के जीवन को संवारने का प्रण किया. रिटायर्ड कर्नल जेआर त्रिखा कहते हैं कि उचित मार्ग दर्शन नही मिल पाने की वजह से बहुत से युवाओं को आर्मी में जाने का सपना अधूरा रह जाता है. 

बेटे की शहादत को 20 साल हुए पूरे
उनके बेटे को शहीद हुए 20 साल गुजर चुके है. स्वदेश त्रिखा कहती हैं कि उनके बेटे महीश ने देहरादून के आरआइएमसी में 1986 में प्रवेश लिया था. 1992 में एनडीए कोर्स में प्रशिक्षण लेने के बाद 29 जून 1996 में भारतीय वायु सेना में बतौर पायलट ज्वाइन किया. 2001 में महीश ने लेह में हेलीकॉप्टर यूनिट ज्वाइन किया और 16 अगस्त 2002 को वह देश के लिए शहीद हो गए. 

आज भी वह दिन उन्हें याद है. जब लेह से फोन आया कि उनका बेटा नहीं रहा. उनके लिए मानो सब खत्म हो गया था. पर अब नए युवाओं को सेना के लिए प्रेरित करने से लगता है कि मानो उनके बेटा या बेटी फौज की तैयारी कर रहे हैं. अब तक हजारों युवाओं को ट्रेनिंग दे चुके हैं और उनके पढ़ाए 200 से ज्यादा बच्चे सेना में देश की सेवा कर रहे हैं. 

जरूरतमंद बच्चों का कर रहे हैं मदद
बेटे के शहीद होने के बाद त्रिखा दंपती ने हौसला रखा. अब वह युवाओं को सेना में जाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. देश सेवा का जज्बा युवाओं में जगा रहे हैं. 2006 में मार्टियर फ्लाइट लेफ्टिनेंट महीश त्रिखा फाउंडेशन के जरिये, ग्रुप-सी के कर्मचारियों के बच्चों के साथ, सैकड़ों अन्य जरूरतमंद युवाओं को प्रशिक्षित करने का बीड़ा उन्होंने उठाया. साथ ही, उन्हें रोजगार दिलाने का काम शुरू किया. 

त्रिखा दंपती का कहना है कि वक्त ने हालात भले बुरे बना दिए हों, पर उनके लिए फिलहाल मानो वक्त टहर गया है. और वे अपने बेटे की यादों के साथ अपने इस नए उद्देय को आगे बढ़ा रहे हैं.

 

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