100 से भी ज्यादा महिलाओं ने मिलकर शुरू किया 'जंगल बचाओ अभियान,' मिलकर कर रही हैं 9 एकड़ में फैले घने जंगल की रखवाली

आनंदपुर प्रखंड के महिषगेड़ा गांव की रहने वाली लगभग 104 महिलाएं इस अभियान का हिस्सा हैं. ये सभी महिलाएं ‘झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी’ के 7 स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हुई हैं. दिन-प्रतिदिन कम हो रहे वन क्षेत्र को देखते हुए उन्होंने अपने क्षेत्र में लगभग नौ एकड़ वन भूमि की रक्षा करने का बीड़ा उठाया है.  

Representational Image (Credit: IWGIA_INDIA)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 14 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 12:28 PM IST
  • महिलाओं ने शुरू किया ‘जंगल बचाओ अभियान’
  • अभियान से जुड़ी 100 से ज्यादा महिलाएं

महानगरों में आज जहां हम घरों में एक पेड़ भी नहीं लगा पाते हैं वहीं झारखंड में एक गांव की महिलाएं 9 एकड़ में फैला घना जंगल बचा रही हैं. तेजी से काटे जा रहे वन और कम हो रही हरियाली को देखते हुए इन महिलाओं ने यह कदम उठाया है. 

पश्चिमी सिंहभूम जिले की 100 से भी ज्यादा महिलाओं की एक ही मुहिम है- जंगल बचाओ. जंगल की रखवाली करने के साथ-साथ वे लोगों को जागरूक भी कर रही हैं ताकि कोई पेड़ों को न काटे और न ही किसी अन्य तरीके से वन को नुकसान पहुंचाए.

महिलाओं ने शुरू किया ‘जंगल बचाओ अभियान’

जिले में आनंदपुर प्रखंड के महिषगेड़ा गांव की रहने वाली लगभग 104 महिलाएं इस अभियान का हिस्सा हैं. ये सभी महिलाएं ‘झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी’ के 7 स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हुई हैं. दिन-प्रतिदिन कम हो रहे वन क्षेत्र को देखते हुए उन्होंने अपने क्षेत्र में लगभग नौ एकड़ वन भूमि की रक्षा करने का बीड़ा उठाया है.  

जंगल बचाओ अभियान का मुख्य उद्देश्य जंगल और पर्यावरण की रक्षा करना है. चार गुटों में बंटी ये महिलाएं सुबह छह बजे से नौ बजे तक और शाम में चार बजे से छह बजे तक जंगल की रखवाली करती हैं. अपने साथ ये महिलाएं बांस के डंडे रखती हैं और साथ ही पेड़ों की गिनती करती रहती हैं. 

एक साल से चल रहा है अभियान: 

अगर कोई जंगल में पेड़ काटते या अन्य अवैध गतिविधियों के लिए पकड़ा जाता है, तो महिलाएं उस पर जुर्माना लगाती हैं. इन महिलाओं की मेहनत रंग ला रही है और अब पेड़ों को अनावश्यक रूप से काटना कम हो गया है. धीरे-धीरे हरित क्षेत्र भी बढ़ रहा है. 

इस अभियान का नेतृत्व कर रही सरोज सुरीन का कहना है गांव के पास के पेड़ों को अंधाधुंध काटा जा रहा था. और महुआ बीनने वाले अक्सर सूखे पत्तों में आग लगा देते थे जिससे जंगल को बहुत नुकसान हुआ. इस सबको देखते हुए यह निर्णय लिया गया. 

अब इस अभियान को एक साल पूरा हो गया है और अच्छी बात यह है कि इस एक साल में पेड़ों की कटाई लगभग बंद हो गई है. क्योंकि महिलाएं लगातार जंगल की सुरक्षा कर रही हैं. 

पेड़ काटने पर 5,000 रुपए का जुर्माना:

जंगल की सुरक्षा के लिए महिलाएं 25-25 के समूह में बंटी हुई हैं. हर कोई अपनी शिफ्ट के हिसाब से जंगल की रखवाली करता है. बताया जा रहा है कि पेड़ काटते हुए पकड़े जाने पर पांच हजार रुपये जुर्माना लगाने का प्रावधान है. इन महिलाओं ने आंतरिक अनुशासन बनाए रखने पर भी ध्यान दिया है. 

इसलिए अगर कोई महिला के लिए जंगल की सुरक्षा के लिए अपनी शिफ्ट में नहीं पहुंचती है तो उस पर 200 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है. जुर्माने से जो भी राशि इकट्ठा होती है, उसका प्रयोग महिलाएं फिर से पौधरोपण करने के लिए करती हैं ताकि हरित क्षेत्र और बढ़ सके. 

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