Mother's Day Special: अपनों ने ठुकराया पर इस मां ने अपनाया, 100 से ज्यादा HIV+ बच्चों की मां हैं मंगल ताई

कहते हैं कि मां बनने के लिए किसी बच्चे को जन्म देना जरूरी है बस आपके दिल में ममता होनी चाहिए और इस बात को साबित कर रही हैं महाराष्ट्र की मंगल शाह.

Mangal Shah (Photo: Facebook)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 11 मई 2023,
  • अपडेटेड 12:41 PM IST
  • बेसहारा बच्चों की बन गईं मां
  • अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं बच्चे

एचआईवी/एड्स भारत में आज भी शर्म का विषय है और लोग इसके बारे में बात नहीं करते हैं. पर आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी महिला के बारे में जो 90 के दशक से इस दिशा में काम कर रही हैं और यह उनकी अटूट दृढ़ता और मानसिकता ही थी जो उन्हें आज इस मुकाम तक ले आई है. 

मिलिए 71 वर्षीया मंगल शाह से, जो 100 से ज्यादा एचआईवी/एड्स प्रभावित बच्चों का जीवन संवार रही है. मंगर हमेशा से ही जरूरतमंदों की मदद करने के लिए आगे रहती थीं. विकलांग व्यक्तियों, गर्भवती महिलाओं और एचआईवी पॉजिटिव महिलाओं की मदद के लिए सरकारी अस्पताल में जाने पर उन्हें अहसास हुआ कि महिलाओं को समाज में या परिवार से कोई सपोर्ट नहीं मिलता है. 

इसलिए, उन्होंने ऐसी महिलाओं की देखभाल और मदद करने का निश्चय किया. उन्होंने अस्पताल के बेसहारा मरीजों के लिए घर का बना खाना लाना शुरू किया. यहां पर उन्हें एचआईवी/एड्स से प्रभावित महिला सेक्सवर्कर्स के बारे में जानने का मौका मिला. और उन्होंने समझा की इस क्षेत्र में काम करना बहुत ज्यादा जरूरी है. 

बेसहारा बच्चों की बन गईं मां
मंगल शाह और उनकी बेटी डिंपल, महाराष्ट्र के पंढरपुर में सेक्स वर्कर्स के बीच एचआईवी/एड्स जागरूकता बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे, जब उन्हें तीन और दो साल की दो छोटी लड़कियों के बारे में पता चला. इस बच्चियों को कोई खलिहान में छोड़कर चला गया था क्योंकि उनके माता-पिता की मौत एड्स के कारण हो गई थी. उनके रिश्तेदारों का मानना ​​था कि लड़कियां परिवार के लिए बदनामी ला सकती हैं और संक्रमण का खतरा पैदा कर सकती हैं. मंगल रिश्तेदारों को लड़कियों की देखभाल के लिए राजी करने में विफल रहीं, तो उन्होंने बच्चों को घर ले जाने का फैसला किया. 

शाह ने तब इन बच्चों की देखभाल करने का फैसला किया और ऐसे एचआईवी+ बच्चों के बेहतर जीवन के लिए एक घर, पालवी का निर्माण किया. प्रोजेक्ट पलावी महाराष्ट्र स्थित एक संगठन है जो प्रभा हीरा प्रतिष्ठान का हिस्सा है. मंगल का मानना है कि हर एक बच्चा खुश, सुरक्षित, स्वस्थ और शिक्षित होने का हकदार है और ऐसे ही पालवी के ये असहाय बच्चों को भी ये सब अधिकार हैं. इसलिए पालवी की टीम यह सुनिश्चित करती है कि यहां हर बच्चे को बुनियादी शिक्षा मिले ताकि वे अपने दम पर खड़े हो सकें. इतना ही नहीं, बल्कि बच्चों को सिलाई, प्लंबिंग और दूसरी स्किल्स भी सिखाई जाती हैं. 

अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं बच्चे
पालवी पिछले कई सालों से समाज के विभिन्न वर्गों के बीच जागरूकता बढ़ा रहा है और अनाथ बच्चों और अन्य एचआईवी/एड्स रोगियों की देखभाल कर रहा है. वर्तमान में 100 से ज्यादा एचआईवी पॉजिटिव बच्चों की देखभाल यहां हो रही है. मंगल ने अपने कई मीडिया इंटरव्यूज में बताया है कि वे अपने केयर होम में बच्चे को प्रोत्साहित करके उन्हें सशक्त बनाने में विश्वास करती हैं. 

स्थानीय स्तर पर, एचआईवी पॉजिटिव बच्चों को औपचारिक शिक्षा हासिल करते देखना एक बहुत बड़ा बदलाव है. पिछले कई सालों में उनके यहां से 12 से अधिक युवा लड़के और लड़कियों ने आजीविका कमाना शुरू किया है और समाज मेंअपने दम पर एक पहचान बनाई है. एचआईवी/एड्स बच्चों के लिए बेहतर जीवन बनाने के लिए मंगल शाह का समर्पण मानव जाति के लिए आशा की किरण देता है. 

 

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