ये देश, यह दुनिया मां के संघर्ष की कहानियों से भरा हुआ है. एक छोटे बच्चे को उंगली पकड़कर चलाने से लेकर उसे दुनिया में रहने के काबिल बनाने के पीछे की यात्रा में हर मां बहुत सारे संघर्ष करती है. लेकिन मदर्स डे के इस खास दिन पर हम आपको ऐसी मां की कहानी सुनाने जा रहे हैं जो खुद कभी स्कूल नहीं गई लेकिन उसने यह ठान लिया कि वह अपने सभी बच्चों को अफसर बनाएंगी. ये कहानी है 80 साल की प्रेमवती अम्मा की.
चारों बेटे हैं क्लास 1 अधिकारी
प्रेमवती अम्मा के 4 बेटे हैं. सबसे बड़े बेटे सरदार सिंह कैबीनेट सेक्रेट्रेट में क्लास 1 सरकारी अफसर थे. वो अब रिटायर हो चुकें हैं. दूसरे बेटे का नाम कुलदीप सिंह है वो केंद्रीय सचिवालय में क्लास 1 अफसर हैं. तीसरे बेटे का नाम पवन सिंह है. वो इनकम टैक्स एपीलेट में जज हैं. चौथे बेटे का नाम गुलाब सिंह है वो पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर हैं.
कहते हैं किसी परिवार में एक बच्चा भी अफसर हो जाए तो वह परिवार खुशी से फूले नहीं समाता है. लेकिन इस घर में चार-चार बच्चे सरकारी अफसर हैं. वह भी तब जब इन बच्चों के सिर से पिता का साया बहुत पहले उठ गया था. लेकिन उनके जाने के बाद भी इनकी मां ने हार नहीं मानी और सभी बच्चों को पढ़ाया और अफसर बनाया.
38 साल की थीं जब पति छोड़ गए थे
प्रेमवती 80 साल की हैं, जो ग्रेटर नोएडा के दादरी के कठेहरा गांव की रहने वाली हैं. प्रेमवती के 8 बच्चे थे. जब उनकी उम्र महज 38 साल थी तो उनके पति उनका साथ छोड़ गए. बड़ी बात यह उनके पति भी घर में अकेले थे. यानि पति की मौत के बाद परिवार में और कोई पुरुष नहीं था. सभी बच्चे छोटे थे. गांव देहात में पढ़ाई का अच्छा न तो माहौल था और न ही सुख-सुविधाएं थीं. उसके बावजूद प्रेमवती ने यह ठान लिया कि वह अपने सभी बच्चों को सरकारी अफसर बनाएंगी.
खेती और दूध बेचकर मां ने पढ़ाया
प्रेमवती के सबसे बड़े बेटे सरदार सिंह अब रिटायर हो चुकें हैं. सरदार सिंह बताते हैं कि घर में इनकम का कोई सोर्स नहीं था, मतलब हमें पढ़ाई भी करनी थी और पेट पालने के लिए काम भी करना था. स्कूल के बाद खेत और फिर घर में पशु थे. खेती और दूध बेचकर मां ने हम सब भाई बहनों को पढ़ाया और बड़ा किया.
गांववाले मानते हैं मां को आदर्श
मंझले बेटे कुलदीप सिंह कहते हैं कि गांव के लोग मां से कहते भी थे कि क्यों पढ़ाई के लिए इतना परेशान हो रही हो. लेकिन मां ने कभी ऐसी बातों पर ध्यान नहीं दिया. सबको लगता था लड़के यूं ही घूम रहे हैं, इनका कुछ नहीं होगा. लेकिन जब अफसर बने तो गांववालों ने मां को अपना आदर्श मान लिया.
गुलाब सिंह सबसे छोटे बेटे हैं. गुलाब सिंह बताते हैं कि जब पिता की मृत्यु हुई तो वह सिर्फ 4 साल के थे, सबसे बड़े भाई की उम्र उस वक्त 20 साल थी. मां और बड़े भाई ने हमे पढ़ाने के लिए बहुत संघर्ष किया है. स्कूल जाने के लिए न हमारे पास कोई साधन था न संसाधन. हमारे गांव से दूसरे बच्चे बाहर पढ़ते थे, अंग्रेजी स्कूल में जाते थे तब हमें थोड़ा खराब लगता था. लेकिम मां हमे हिम्मत बंधाती थी, वो कहती थीं कि बड़े स्कूल या बड़े शहर से कुछ नहीं होता लगन से पढ़ाई करो.
गांव में वो इकलौती ग्रेजुएट लड़की माया
माया देवी प्रेमवती की बेटी हैं अपने गांव में वो इकलौती ग्रेजुएट लड़की थीं. और तो और बचपन में स्कूल जाने वाली वो अपने गांव की इकलौती लड़की थी. माया बताती हैं कि मां इमोश्नली भी बहुत ज्यादा स्ट्रॉग हैं, उन्होंने दो बहनों और एक बहु सहित परिवार के कई लोगों को खोया लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारी. मैं अपनी मां को देखकर ही एक अच्छी मां बन पाई हूं.
जीवन में ऐसे कई मौके आए जब प्रेमवती देवी टूटकर बिखर गईं लेकिन उन्होंने परिवार में शिक्षा की ऐसी अलख जगाई जो आज परिवार में एक मिसाल की तरह है. प्रेमवती जैसी मां पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा हैं.