Infestation of Lahi Insects on Mustard: ठंड और कोहरे में सरसों पर इस कीट का प्रकोप... किसान भाई ऐसे तुरंत करें बचाव... नहीं तो बर्बाद कर देंगे खेत में लहलहाती फसल

Mustard Farming: इन दिनों आकाश में बादल छाये रहने, हल्की वर्षा होने, तापमान और कोहरा गिरने के कारण लाही कीट का आक्रमण सरसों की फसल पर बढ़ गया है. आइए जानते हैं इससे बचाव के उपाय.

Mustard Crop
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 15 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 12:54 AM IST
  • लाही कीट सरसों की पत्तियों को धीरे-धीरे कर देते हैं चट 
  • पौधों का विकास नहीं होने से फसल का उत्पादन हो जाता है काफी कम 

Mustard Cultivation: किसानों को नकदी फसल सरसों कम लागत में अधिक मुनाफा देती है. यह फसल अभी खेतों में लहलहा रही है. किसानों (Farmers) को अच्छी पैदवार की उम्मीद है. हालांकि कुछ जगहों पर अन्नदाताओं की इस उम्मीद पर पानी फिरता दिख रहा है.

दरअसल, ऐसा एक कीट के कारण हो रहा है. यह कीट सरसों की पत्तियों और फूलों को धीरे-धीरे चट कर देते हैं. इससे पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनका विकास रुक जाता है. फलियों में दाने नहीं बन पाते हैं, जिससे फसल का उत्पादन काफी कम हो जाता है. जी हां, हम बात कर रहे है लाही कीट (Lahi Insects) की. 

क्या है लाही कीट 
इन दिनों आकाश में बादल छाये रहने, हल्की वर्षा होने, तापमान और कोहरा गिरने के कारण लाही कीट (Aphid) का आक्रमण सरसों की फसल पर बढ़ गया है क्योंकि इस मौसम में ये तेज प्रजनन करते हैं. इससे अन्नदाता चिंतित हैं. लाही कीट छोटे भूरे या काले रंग के होते हैं. इन कीटों को कई नामों से जाना जाता है. ये कीट सरसों की फसल को तब सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं, जब सरसों में फूल और फली बननी शुरू होती है.

ये कीट सरसों के पौधों पर सैकड़ों की संख्या में बच्चे देते हैं, जिनकी संख्या काफी तेजी से गुच्छों के रूप में बढ़ती है. लाही कीट सरसों के कलियों, फूल और फलियों में स्थाई रूप से झुंडों में चिपक जाते हैं. ये लाही कीट फूलों का रस चूस लेते हैं. इससे पौधा बांझ हो जाता है यानी फलियों में दाने ही नहीं बन पाते हैं. लाही कीट का आक्रमण आमतौर से मध्य दिसंबर के बाद शुरू होता है लेकिन इनकी संख्या जनवरी-फरवरी में काफी बढ़ जाती है. सरसों की फसल में 10 मार्च तक लाही का प्रकोप आने की आशंका रहती है.

कैसे करें लाही कीट से सरसों की फसल का बचाव
1. किसान भाई लाही कीट की रोकथाम के लिए डाईथम 45 और एंटीबायोटिक के रूप में इमिडाक्लोप्रिड 1 एमएल लेकर तीन लीटर पानी में मिलाकर सरसों की फसल पर छिड़काव करें.
2. यदि पौधों में 30 प्रतिशत लाही कीट लग गए हों तो हीं किसान दवा का उपयोग करें. इस दवा का छिड़काव दोपहर के समय करें. 
3. जब सरसों की फसल पर लाही कीटों का प्रकोप दिखाई दे तो क्लोरोपायरीफॉस 20%, EC 200 मिलीलीटर को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे के माध्यम से छिड़काव करें. 
4. सरसों के फली में लाही का प्रकोप हो तो 1 मिलीलीटर प्रति लीटर मेटा सिस्टोक, रोगर 1 एमएल प्रति 1 लीटर या 1 एमएल प्रति 3 लीटर पानी के साथ इमिडा क्लोरिमिन या डेढ़ ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से थायोमेथेक जोन का प्रति एकड़ की किट ग्रस्त फसलों पर 15 दिन के अंतराल पर तीन बार छिड़काव करें. 
5. लाही कीट से सरसों की फसल को बचाने के लिए 5-6 पीली स्टिकी ट्रैप प्रति एकड़ खेत में लगाना चाहिए. 
6. पीली स्टिकी ट्रैप लाही के कीटों को आकर्षित करके फंसा लेते हैं, जिससे उनकी संख्या में कमी आती है. 
7. खेत में खरपतवार को समय-समय पर हटाएं, ताकि लाही कीट को शरण न मिल सके और इनका प्रकोप कम हो. 
8. लाही कीट से बचाव के लिए 10 हजार ppm का नीम का तेल लेकर प्रति एक लीटर पानी के हिसाब से एक शैंपू डाल कर सरसों की फसल पर छिड़काव करें. छिड़काव दोपहर दो बजे करें.
9. किसान घरेलू उपचार के तौर पर सर्फ का घोल बनाकर भी छिड़काव कर सकते हैं. 
10. किसी पौधे में लाही कीट का असर ज्यादा दिखाई दे रहा है तो उस पौधे को तोड़कर जमीन में दबाकर नष्ट कर दें. 

आरा मक्खी कीट के हमले को ऐसे करें बेअसर  
सरसों की फसल पर आरा मक्खी कीट यानी सॉ फ्लाई भी धावा बोलती हैं. आरा मक्खी कीट सरसों की पत्तियों को टेढ़े-मेढ़े तरीके से खाते हैं और उनमें छेद कर देते हैं. ये पत्तियों पर लार्वा छोड़ते हैं. इनकी संख्या बढ़ने पर सरसों के पौधे के पूरी पत्तियों को खाककर चट कर देते हैं.

पौधा पत्ता विहीन होने के चलते फसल के उत्पादन पर काफी प्रभाव पड़ता है. आरा मक्खी कीट से बचाव के लिए सबसे कारगर तरीका है जब सरसों का पौधा थोड़ा बड़ा हो जाए तो फसल की सिंचाई कर दें. ऐसा करने से अधिकांश लार्वा डूबन के कारण मर जाते हैं. इस कीट से फसल का बचाव के लिए करेले के बीज के तेल के इमल्शन का एंटीफिडेंट के रूप में उपयोग कर सकते हैं. फसल पर मैलाथियान 50 ईसी @ 400 मिली/एकड़ या किनालफॉस 25 ईसी @ 250 मिली दवा को 200 से 250 लीटर पानी में प्रति एकड़ हिसाब छिड़काव कर सकते हैं. 

कैसे करें सरसों की खेती 
सरसों की खेतों में बुआई के लिए सही समय 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच होता है. कुछ किसान किसी कारण से विलंब होने पर इसकी खेती 15 नवंबर से 10 दिसंबर के बीच भी करते हैं. सरसों की खेती के लिए 15 से 25 सेल्सियस के तापमान की आवश्यकता होती है. इसकी खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है. हालांकि, बलुई दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है. सरसों की बुआई के लिए भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है. इसकी खेती करने से पहले खेत की जुताई कल्टी विधि से करनी चाहिए. खेत की जुताई के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टयर की दर से खेत में मिलना चाहिए. इससे दीमक, चितकबरा और अन्य कीटों का प्रकोप फसल पर नहीं होगा. 

जुताई के समय ही खेत में प्रति कट्ठा 1 किलो डीएपी नाइट्रोजन पांच सौ ग्राम लाल पोटाश और दो सौ पचास ग्राम सल्फर का प्रयोग कर दें. किसान भाई 2 से 3 किलोग्राम एजोटोबेक्टर और पी.ए.बी कल्चर की 50 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मीकल्चर में मिलाकर अंतिम जुताई से पूर्व मिला सकते हैं. सरसों की बुवाई कतारों में करनी चाहिए.सरसों की बुआई के बाद पहली सिंचाई 40 दिन के बीच करना चाहिए. इस समय ही 1 किलो प्रति कट्ठा यूरिया का भी छिड़काव करना चाहिए. दूसरी सिंचाई फूल से फली बनने के अवस्था में 80 से 90 दिन के बीच करें. इसी समय 3 ग्राम प्रति लीटर की दर से घुलनशील सल्फर का भी छिड़काव करें. 

 

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