Nitin Kumar's Ghaat Wala School: खुद गरीबी में बिताया जीवन… अब बच्चों को देते हैं फ्री शिक्षा, नितिन ने कुछ ऐसे शुरू किया घाट वाला स्कूल

नितिन की कहानी याद दिलाती है कि शिक्षा केवल किताबों और कक्षाओं के बारे में नहीं है. यह आशा, अवसर और विश्वास के बारे में है कि हर बच्चे को सफल होने का मौका मिलना चाहिए, चाहे उनकी परिस्थितियां कुछ भी हों. अपने घाट वाला स्कूल से नितिन न जाने कितने बच्चों का भविष्य बना रहे हैं. 

Ghaat Wala School (Representative Image/Unsplash)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 18 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 12:07 PM IST
  • पिछले नौ सालों से चल रहा है स्कूल 
  • संघर्षों से लिया जीवन ने सही आकार

उत्तर प्रदेश के शहर कानपुर में जहां सबकुछ बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन एक ऐसी जगह है जहां जीवन एकदम शांत है. यह जगह है कमलेश्वर घाट, जो गंगा नदी के प्राचीन तट पर स्थित है. यहां, खुले आसमान के नीचे, 31 साल के लॉ ग्रेजुएट नितिन कुमार ने एक खास स्कूल बनाया है. इसे घाट वाला स्कूल कहा जाता है.

नितिन का स्कूल किसी दूसरे स्कूल से काफी अलग है. यह शहर के सबसे पिछड़े समुदायों के बच्चों के लिए आशा की किरण के रूप में उभरा है. इनमें झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले और कचरा बीनने वाले बच्चे शामिल हैं. नितिन इन बच्चों को गणित और विज्ञान से लेकर म्यूजिक, कल्चर और यहां तक ​​कि फ्रेंच जैसे विषयों को सिखा रहे हैं. ये सभी बच्चे घाट वाले स्कूल पर ही पढ़ते हैं. 

संघर्षों से आकार लेने वाला जीवन
इन बच्चों के लिए शिक्षक और गुरु बनने की नितिन कुमार की यात्रा दृढ़ संकल्प से भरी है. नितिन का जन्म और पालन-पोषण कानपुर की तंग गलियों में हुआ, जहां उन्होंने गरीबी की चुनौतियों का प्रत्यक्ष अनुभव किया. उनके परिवार को गुजारा करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था. 

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नितिन की मां हाउस हेल्प के रूप में काम करती थीं और हर दिन केवल 25 रुपये कमाती थीं. इस मामूली नौकरी से उन्हें चार बच्चों का गुजरा करना था, ऐसे में पढ़ाई की लागत कवर करना काफी मुश्किल था. 

अपने बचपन को याद करते हुए, नितिन अपने परिवार और उनके सामने आई मुश्किलों को याद करते हैं. वह कहते हैं, ''ऐसे भी दिन थे जब हम बासी खाना खाकर गुजारा करते थे. ये खाना मेरी मां उन घरों से घर लाती थी जहां वह काम करती थीं. उनकी आवाज उन कठिन समय की यादों से भरी हुई थी."मेरी मां भूख से बचने के लिए अक्सर खाने के बिना ही रहती थी, वे पानी में चीनी मिलाकर गुजरा करती थीं.” 

भीषण गरीबी के बावजूद, नितिन की मां को पढ़ाई का महत्व पता था. उनका मानना था कि ये गरीबी से बाहर निकलने का अकेला तरीका है. नितिन याद करते हुए कहते हैं, "वह कहती थीं कि शिक्षा ही इस जीवन से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता है." लेकिन नितिन के लिए स्कूल जाना कोई आसान काम नहीं था. उनके पास अक्सर बुनियादी जरूरतों जैसे नोटबुक, पेंसिल या यहां तक ​​कि यूनिफॉर्म भी नहीं होती थी. फिर भी, वह कायम रहे. उन्होंने पढ़ाई की.

घाट वाला स्कूल का जन्म
हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, नितिन ने स्लम इलाकों में बच्चों को मुफ्त ट्यूशन देने का फैसला किया. उन्होंने माना कि अगर सही मार्गदर्शन और समर्थन दिया जाए तो इन बच्चों में, उनकी ही तरह, सफल होने की क्षमता है. नितिन कहते हैं, "इन बच्चों के पास उनका मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं था. उनके माता-पिता को पढ़ाई की अहमियत नहीं पता थी. 

शुरुआत में उन्होंने ये स्कूल कुछ बच्चों की मदद करने के लिए खोला था. लेकिन देखते ही देखते ये बड़ा हो गया. जब वे इंटरमीडिएट स्कूल में पहुंचे, तब तक छात्रों की संख्या काफी बढ़ गई थी और जगह एक समस्या बन गई थी.

2009 में, नितिन इस समस्या का एक समाधान लेकर आए. उन्होंने अपनी क्लास गंगा नदी के किनारे कमलेश्वर घाट पर आयोजित करने का फैसला लिया. बच्चे इस घाट पर खुले आसमान के नीचे सकते थे. 

घाट का शांत वातावरण, पास में चुपचाप बहती नदी, नितिन की अनूठी शैक्षिक पहल के लिए एकदम सही जगह थी. और इस तरह घाट वाला स्कूल का जन्म हुआ. 

पिछले नौ सालों से चल रहा है स्कूल 
पिछले नौ साल में, "घाट वाला स्कूल" झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों के लिए एक आशा की किरण के रूप में उभरा है. आज, नर्सरी से लेकर कक्षा 12 तक के 200 से ज्यादा छात्र पाठ के लिए हर शाम घाट पर इकट्ठा होते हैं. नितिन वालंटियर्स की एक टीम के साथ, कई तरह के विषय पढ़ाते हैं.

नितिन का मानना ​​है कि बच्चों को अलग-अलग विषयों के बारे में पढ़ाने से उनका ज्ञान बढ़ेगा. इससे उनके लिए भविष्य में कई रास्ते खुलेंगे. 

उनके पढ़ाए कई बच्चे आज हाई स्कूल से ग्रेजुएट हो गए हैं और अब हायर स्टडी ले रहे हैं. जिन बच्चों को कभी गरीबी से मुक्त होने की बहुत उम्मीद भी नहीं थी, उनके लिए "घाट वाला स्कूल" एक रोशनी बन गया है. 

 

Read more!

RECOMMENDED