केरल साड़ी, जिसे कसावु साड़ी भी कहा जाता है वहां के विशेष उत्सवों में पहनी जाने वाली एक पारंपरिक पोशाक है. इसके बॉर्डर पर लगी जरी और रियल गोल्ड थ्रेड इसे सबसे अलग बनाते हैं. साड़ी का बेदाग सफेद रंग सादगी और शांति के विचारों को दर्शाता है.
ओणम त्योहार के दौरान महिलाएं इन पारंपरिक सफेद और सुनहरे रंग की साड़ियों को पहनती हैं, जो इन मूल्यों का प्रतीक है. महिलाएं इसके जरिए भगवान विष्णु के वामन अवतार का सम्मान करती हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने त्योहारी सीजन के दौरान केरल को आशीर्वाद दिया था. कसावू साड़ी प्लेन ऑफ व्हाइट कलर में होती है और इस पर गोल्डन कलर का बॉर्डर होता है. इसे सेत्तु साड़ी भी कहा जाता है. रॉयल कसावू साड़ी में इस गोल्डन बॉर्डर को रियल गोल्ड के थ्रेड से तैयार किया जाता है. यही गोल्डन बॉर्डर इस साड़ी को यूनिक और महंगा बनाता है. इस साड़ी की कीमत 5,000 रुपये से शुरू होकर 5-6 लाख रुपये तक जाती है.
क्या है क्रीम कलर और बॉर्डर का महत्व?
केरल साड़ी के बॉर्डर में इस्तेमाल की जाने वाली जरी को कसावु कहा जाता है, न कि साड़ी को. यह एक पदार्थ का नाम है जिसका इस्तेमाल मैनुफैक्चरिंग में किया जाता है. कसावु मुंडु तब बनता है जब कसावु को मुंडु (धोती) में शामिल किया जाता है. साड़ी का बॉर्डर सूरज की किरणों को दर्शाता है. साड़ी का सफेद रंग केरला की प्रकृतिक सुंदरता को दर्शाता है. पहले कसावु धागे शुद्ध सोने से बने होते थे और सुंदरता, सफलता और भाग्य का प्रतीक थे. हालांकि, जब सोना दुर्लभ और अधिक महंगा हो गया, तो शिल्पकारों ने सोने और कॉपर-कोटेड चांदी के धागों को जोड़ना शुरू कर दिया, जिससे साड़ियों को उनकी विशिष्ट सुनहरी छटा मिल गई और वे अधिक लागत प्रभावी भी हो गईं. केरल की पारंपरिक कसावु साड़ी विभिन्न प्रकार के डिजाइनों और जीवंत रंगों से भरे देश में अपनी सुंदरता और सौंदर्य संयम के लिए जानी जाती है.
कसावु साड़ी बनाने में कितना समय लगता है?
क्या आप जानते हैं कि एक साधारण बॉर्डर वाली बेसिक कसावु साड़ी को बनाने में लगभग तीन से पांच दिन लगते हैं? वहीं अगर भारी काम और पैटर्न चाहिए तो इसको बनाने में और भी अधिक समय लग सकता है. साड़ियों की कीमत निर्माण में लगने वाले समय के साथ-साथ ज़री या कसावु में इस्तेमाल किए गए सोने की मात्रा से निर्धारित होती है. केरल साड़ी ने आधुनिक समय में न केवल केरल में बल्कि पूरे भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता हासिल की है. भारत में केरल साड़ियों की एक विस्तृत विविधता उपलब्ध है, जिनकी लागत मेटेरियल, पैटर्न और शिल्प कौशल के अनुसार तय की जाती है.