दक्षिण भारत सदियों से अपने मसालों के लिए प्रसिद्ध है. काली मिर्च से लेकर हरी इलायची तक, एक समय था जब यूरोप और अरब सहित विदेशों से व्यापारी शुद्ध मसालों की खोज में यहां आते थे. लेकिन पिछले कुछ सालों से मसालों का उत्पादन और गुणवत्ता, दोनों में कमी आई है. खासकर कि केमिकल फर्टिलाइजर्स ने स्थिति को बिगाड़ा है.
लेकिन कहते हैं न कि उम्मीद की एक किरण ही काफी होती है अंधेरा छांटने के लिए. और केरल के किसान, सतीश एस, ऐसी ही उम्मीद की किरण हैं. सतीश मडुपेट्टी, वंडीपेरियार में पेरियार टाइगर रिजर्व की सीमा पर ऑर्गनिक इलायची की खेती करके इस मसाले को सही पहचान लौटा रहे हैं.
10 सालों तक की रिसर्च
सतीश एस पिछले 10 सालों से इलायची के खोए चार्म को वापस लाने की कोशिश में जुटे हैं. उनके इतने लंबे शोध और प्रयासों का ही नतीजा है कि आज उन्होंने इलायची की 14 किस्में तैयार की हैं जो ऑर्गनिक होने के साथ-साथ उच्च उपज वाली हैं. ये किस्में कम पानी में भी उगाई जा सकती हैं और किसानों को अच्छा उत्पादन मिलेगा.
सतीश को 10 साल के शोध और प्रयास के बाद 'एरुमथुरुथियिल एलम' नाम की किस्मों को विकसित करने में मदद मिली. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से सतीश ने कहा कि इलायची कई तरह की ड्रिंक्स और खाने की डिशेज में इस्तेमाल होती है. ऐसे में, केमिकल खेती कर उगाई गई इलायची सेहत के लिए हानिकारक हो सकती है. इसलिए सतीश ने एक नई किस्म विकसित करने के बारे में सोचा, जो जैविक खेती और जलवायु के अनुकूल हो और किसानों को कम समय में अच्छी उपज देती हो.
डेढ़ एकड़ जमीन पर किया काम
सतीश बताते हैं कि उन्होंने नई किस्में विकसित करने के लिए अपनी 1.5 एकड़ जमीन पर प्रयोगशाला बना ली थी. लगभग 10 वर्षों के प्रयासों में इलायची की खोई हुई उच्च उपज वाली जैविक किस्मों को इकट्ठा करना, क्रॉस पॉलिनेशन, और मल्टीप्लिकेशन आदि शामिल था ताकि उन्हें किसी भी क्लाइमेट के अनुकूल बनाया जा सके.
साथ ही, उनका कहना है कि 100 किलो सूखी इलायची का उत्पादन करने के लिए 600 किलो सामान्य हरी इलायची की आवश्यकता होती है, लेकिन सूखी इलायची की उतनी ही मात्रा में 450 किलो जैविक इलायची से उत्पन्न किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि ऑर्गनिक इलायची की कीमत सामान्य से दोगुनी मिलती है.