“बाहर मैं एक किन्नर हूं, लेकिन जैसे ही मैं अपनी घर की चौखट में आती हूं मैं मां हो जाती हूं.”
हर शाम को मनीषा अपने किराए के कमरे में आती हैं. इस कमरे के ऊपर टीन लगा है. जैसे ही वे चौखट पर आती हैं उनके बच्चे दरवाजे पर दौड़कर आते हैं और उन्हें जोर से गले लगाते हुए मां कहकर प्यार करते हैं. ये पल मनीषा के लिए वो होता है जब वे दिन भर की थकान-दुःख-दर्द सब भूल जाती हैं. ‘मां’ शब्द के सुनने भर से ही वे ख़ुशी से भर जाती हैं.
मनीषा, एक ट्रांसजेंडर महिला हैं जो छत्तीसगढ़ के पंजाखूर में रहती हैं. मनीषा 8 बच्चों की मां हैं. इन बच्चों को मनीषा ने पेट से तो जन्म नहीं दिया है लेकिन वे इन बच्चों को मां का पूरा प्यार देती हैं. मनीषा ने ऐसे बच्चों को गोद लेना शुरू किया है जिन्हें लोग छोड़ जाते हैं. या जिनकी देखरेख करने के लिए कोई नहीं होता है.
Mother’s Day के मौके पर GNT डिजिटल ने 40 वर्षीय मनीषा से बात की.
फोन पर बात करते हुए…. मुर्गियों की आवाज़ और सबसे छोटे बेटे की किलकारियों के बीच मनीषा रो देती हैं. वे रोते हुए बताने लगती हैं कि उन्हें बचपन में कभी उनके माता पिता का प्यार नहीं मिला. वे कहती हैं, “मेरे माता-पिता को जब पता चला मैं किन्नर हूं, तब उन्होंने मुझे बंद कर दिया. जब भी कोई रिश्तेदार आते थे और मुझे बंद कर दिया जाता था ताकि वे मुझे न देख सकें. उन्हें डर था कि कहीं इससे उनकी बदनामी न हो जाए. मेरी मां कहती थी कि किन्नर जब जन्म लेता है तब अपशगुन होता है, उससे कोई अच्छा काम नहीं होता है. तब मैंने सोचा कि मैं मां बनूंगी, मैं सबको मां बनकर दिखाउंगी.”
16 साल की थीं जब पता चला किन्नर हैं…
दरअसल, मनीषा कुल 15-16 साल की थीं जब उन्हें पता चला कि वे किन्नर हैं. वे बताती हैं, “मैं तब एक दुकान में काम करती थी. तब मैं कुल 16 साल की थी, जब मुझे पता चला कि मैं किन्नर हूं. हालांकि, मुझे इसका अफ़सोस नहीं है. जब मैं काम पर जाती हूं, तब सब बच्चे मुझे पकड़ लेते हैं कि मम्मी मत जाओ. वहीं, जब मैं काम से आती हूं तब ये सब जाते हैं मुझे प्यार करते हैं. वो वक्त ऐसा होता है जब मैं अपने सारे दुःख-दर्द और सब थकान भूल जाती हूं. आज ही छोटी लड़की ने कहा कि मम्मी आज काम पर मत जाओ, मैं इसीलिए आज काम पर नहीं गई. वो अभी दो साल की है.”
8 बच्चे लिए थे गोद
मनीषा के पास पहले 8 बच्चे थे. जिनका नाम रुबेल, शरमीन, चोम्पा, बिस्टी, राखी, तानिया, मेघा और बेबी तुनेजा है. हालांकि, इनमें से 2 की वे शादी कर चुकी हैं और 1 बच्चे को पाल-पोसकर घर की आर्थिक हालात को देखते हुए उसी बच्ची के माता-पिता को सौप दिया है. अब मनीषा 5 बच्चों को संभाल रही हैं.
मनीषा आगे कहती हैं कि मैं अपने लिए कुछ नहीं खरीदती, सभी किन्नर लोग घूमने जाते हैं इधर उधर, मैं कहीं नहीं जाती हूं. कोई इधर जाता है कोई उधर जाता है. मैं चाहती हूं मैं अपनी एक बेटी को डॉक्टर बनाऊं और दूसरी बेटी को पुलिस में भेजूं. ये दोनों हमेशा मुझे कहती हैं की इन्हें यही बनना है. मैं पूरी कोशिश करूंगी कि इन्हें हर चीज़ दे पाऊं.
मां कोई भी हो सकता है, अपनी कोख से जन्म देने की जरूरत नहीं….
मनीषा आगे कहती हैं, “मैं जब भी किसी बच्चे को ऐसी परेशान होते हुए नहीं देख सकती. माता-पिता का क्या प्यार होता है मैं नहीं जानती, पर मैं अपने बच्चों को वो सारा प्यार देना चाहती हूं. मुझे जो चीज़ नहीं मिली है वो मैं इन बच्चों को देना चाहती हूं.”
समाज में मां शब्द को हमेशा औरत से जोड़ा है. लेकिन मनीषा के लिए मां कोई भी हो सकती है.. मां एक किन्नर हो सकती है, समलैंगिक औरत या आदमी हो सकता है, एक पुरुष भी मां हो सकता है. उनके मुताबिक मां एक बेहेवियर है. मातृत्व एक भावना है जो किसी के भीतर भी आ सकती है.