अक्सर सुविधाओं में रहने वाले लोग झुग्गी-झोपड़ी में जाने से कतराते हैं. क्योंकि यह उन लोगों के लिए बहुत सुखद अनुभव नहीं है. लेकिन बिहार का यह पुलिस अधिकारी स्लम जाकर न सिर्फ लोगों से मिलता है बल्कि उनकी जिंदगी संवारने में जुटा है. यह काम उनके लिए लगभग ड्यूटी के समान है.
जमुई जिले के पुलिस उपाधीक्षक राकेश कुमार सैकड़ों झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. वह पिछले कई सालों से इस नक्सल-प्रभावित क्षेत्रों में गरीब बच्चों की शिक्षा प्राप्त करने में मदद कर रहे हैं.
2010 में जॉइन की पुलिस फोर्स
गांधीवादी विचार में पीएचडी और दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी डिग्री करने वाले, राकेश 2010 में पुलिस बल में शामिल हुए थे. उन्होंने उप-विभागीय पुलिस अधिकारी के रूप में अपनी पहली पोस्टिंग उत्तर बिहार में मधुबनी में मिली और यहीं से उन्होंने अपने सामाजिक काम की शुरूआत की.
राकेश ने इन बच्चों के जीवन को बदलने में उनकी सहायता के लिए एक समूह का गठन किया. उनके साथ आसपास की झुग्गियों के कई बच्चे भी शामिल हुए. कुमार जहां वीकेंड में स्लम क्षेत्रों में स्थापित शिक्षा केंद्रों का दौरा करते थे, वहीं अन्य वॉलंटियर नियमित रूप से बच्चों की देखभाल करते थे. इससे उन्हें पुलिस के प्रति लोगों की धारणा बदलने में भी मदद मिली.
लोग कहते हैं 'पुलिसवाला दोस्त'
उनके प्रयास रंग लाए. झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों के बच्चों उच्च शिक्षा प्राप्त करने लगे. लोग राकेश को प्यार से पुलिसवाला दोस्त कहते हैं. इन झुग्गी बस्तियों के बच्चे अक्सर कहते थे कि वे अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण पढ़ाई नहीं कर सकते थे. लेकिन जब इस पुलिस अधिकारी ने उनकी मदद करना शुरू किया, तो उन्हें किताबें, नोटबुक, पेन और पेंसिल खरीदने के लिए किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा.
वह समय-समय पर बच्चों के बीच बैग, स्कूल यूनिफॉर्म, किट और अन्य सामान बांटते हैं. मूल रूप से, उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के रहने वाले कुमार का कहना है कि कि झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों के लिए कुछ करने का विचार उन्हें राज्य पुलिस बल में शामिल होने के तुरंत बाद आया.
होली हो, दुर्गा पूजा हो, बसंत पंचमी हो या रमजान हो या ईद, वह इन बच्चों से मिलने जाते हैं और मिठाई बांटते हैं. वह अपने वेतन का एक हिस्सा इन बच्चों पर खर्च करने में कभी नहीं हिचकिचाते. राकेश ने 'बी ह्यूमन' नाम से एक संस्था की स्थापना की है. वह अपने सहयोगियों और अन्य लोगों से मदद की उम्मीद रखते हैं. उनका कहना है कि अब समय आ गया है कि पुलिस के बारे में लोगों की धारणा बदल जाए.