दिल्ली विधानसभा को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की योजना पर काम होने लगा है. विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने इसको लेकर बैठकें शुरू कर दी हैं. उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और पीडब्ल्यूडी के साथ बातचीत शुरू कर दी है. विधानसभा अध्यक्ष जल्द ही इस प्रस्ताव को लेकर केंद्रीय संस्कृति व पर्यटन मंत्री गजेंद्र शेखावत से मुलाकात करेंगे.
नेशनल हेरिटेज का दर्जा मिलने पर क्या होगा?
भारत की पहली संसद मानी जाने वाली दिल्ली विधानसभा को नेशनल हेरिटेज घोषित होने के बाद परिसर के साथ किसी तरह की कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकेगी. उसका संरक्षण का काम अच्छे तरीके से होगा. विधानसभा अध्यक्ष के मुताबिक नेशनल हेरिटेज घोषित होने के बाद विधानसभा भवन को स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या हफ्ते में एक-दो दिन के लिए खुला रहेगा. लोग यहां आकर देख सकते हैं. परिसर में प्रदर्शनी केंद्र भी बनाए जाएंगे. इसमें तस्वीरों, दस्तावेजों और पुरानी सामग्रियों के जरिए इस भवन की ऐतिहासिक कहानी को जीवंत किया जाएगा.
कैसे किया जाएगा डिजाइन-
इसको नेशनल हेरिटेज का दर्जा दिलाने का मकसद इसका संरक्षण सुनिश्चित करना है. राष्ट्रीय विरासत का दर्जा मिलने का मतलब ये नहीं है कि इसमें कामकाज बंद हो जाएगा. छुट्टी वाले दिन इस परिसर में आम लोग घूम सकेंगे.
विधानसभा भवन का 10 एकड़ हिस्सा हरित क्षेत्र के लिए रखा गया है. इसमें वो फांसी घर भी है, जहां कई स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गई थी. यह भवन पुराना सचिवालय के नाम से जाना जाता है. 100 फीसदी सौर ऊर्जा के इस्तेमाल का लक्ष्य रखा गया है. सदन को आधुनिक सुविधाओं से लैस भी किया जाएगा.
कैंपस में मिला फांसी घर-
दिल्ली विधानसभा परिसर में एक फांसी घर भी है. साल 2021 में सुरंग का पता लगने के बाद फांसी घर की बात सामने आई थी. यह सुरंग लाल किले तक जाती है. माना जाता है कि ब्रिटिश काल के दौरान इस सुरंग का इस्तेमाल स्वतंत्रता सेनानियों को चुपचाप ले जाने के लिए किया जाता था. इस सुरंग के बारे में हर कोई जानना चाहता है. परिसर में एक ऐतिहासिक जेल भी है. इस जेल में स्वतंत्रता सेनानियों को बंदी बनाया जाता था.
चंद्रावल गांव की जमीन पर बनी है इमारत-
विधानसभा भवन साल 1912 में बनकर तैयार हुआ था. यह अलीपुर रोड पर स्थित है. साल 1912 में जब देश की राजधानी कोलकाता से दिल्ली की गई थी तो इसे भवन को केंद्रीय विधानसभा के तौर पर इस्तेमाल किया गया था. इस जगह पर आजादी के आंदोलन के समय कई अहम फैसले लिए गए थे.
आर्किटेक्ट मॉन्टेग्यू थॉमस ने इस बनाया था. यह इमारत चंद्रावल गांव की जमीन पर बनी है. इस जमीन के बदले गांववालों को किरोड़ीमल कॉलेज के पास जमीन दी गई थी.
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