प्रोफेसर किरण सेठ ने 1977 में स्पीक मैके नाम की एक संस्था की शुरुआत की थी. इस संस्था का उद्देश्य लोगों को भारतीय संस्कृति और परंपरा के लिए प्रेरित करना है. किरण सेठ कहते हैं कि 10 साल से संस्था का प्रोग्राम एक पड़ाव पर आकर रुक सा गया और अब ज्यादा लोगों को इससे जोड़ने के लिए इस साइकिल यात्रा की शुरुआत की है.
'बस मुंह से निकल गया'
किरण सेठ बताते हैं इस साइकिल यात्रा के लिए उन्होंने बहुत पहले से कोई प्लान नहीं कर रखा था, एक दिन वो और उनकी टीम के लोग बैठकर मीटिंग कर रहे थे. बात करते-करते अचानक ही वो बोल उठे कि मैं संस्था के प्रचार प्रसार के लिए साइकिल यात्रा करूंगा. किरण बताते हैं कि उन्होंने पहले बोल तो दिया लेकिन बाद में घर जाकर सोचने लगे कि ये मैंने क्या बोल दिया? क्या मैं ये कर भी पाऊंगा? हालांकि बाद में मैंने हिम्मत जुटाई और मैंने पहले छोटी यात्रा चुनी. मैं सबसे पहले दिल्ली से जयपुर तक गया उसके बाद यात्रा का सिलसिला बढ़ता गया.
'साधारण साइकिल के जरिए साधारण जीवन का संदेश'
किरण सेठ बताते हैं कि यात्रा को शुरू करने के लिए उन्होंने बेहद सादगीपूर्ण रवैया अपनाया. वो कहते हैं कि जिस साइकिल से वो सफर करते हैं उसमें गेयर नहीं है, शॉकर नहीं है, डिस्ब्रेक भी नहीं है. वह अपने साथ सिर्फ 3 जोड़ी कपड़े लेकर चलते हैं. इन सब चीजों के जरिए वो ये संदेश देने की कोशिश करते हैं कि सादगी पूर्ण तरीके से भी जीवन बहुत आनंदित हो सकता है. रुकने के लिए भी किसी 4 या 5 स्टार होटल का रुख नहीं करते. रास्ते में जहां-जहां उनकी संस्था के लोग मिलते हैं, वही उनके रहने का इंतजाम करते हैं.
'आसान नहीं होती यात्रा, कई बार बीमार भी हुए'
किरण सेठ बताते हैं कि यात्रा हमेशा आसान भी नहीं रहती. कई बार रास्ते टेढ़े-मेढ़े होते हैं. ऊंचाई अगर होती है तो उनको साइकिल पैदल लेकर ही जानी पड़ती है. कई बार मौसम परेशान करता है तो कई बार रहने के लिए ठीक-ठाक जगह नहीं मिल पाती. वो कहते हैं कि पूरी यात्रा के दौरान सबसे ज्यादा ख्याल खान-पान का रखना होता है. लेकिन दो-तीन बार ऐसा भी हुआ कि खराब खाने के चलते मुझे डायरिया हो गया, लेकिन उसके बावजूद साइकिल से ऐसा रिश्ता जुड़ा कि साइकिल पर बैठते ही सारी समस्याएं छूमंतर हो जाती है.
'ये है फिटनेस का राज'
किरण सेठ जी बताते हैं कि साइकिलिंग के लिए उन्हें अपने रूटीन में कुछ खास बदलाव नहीं करना पड़ा. वो कहते हैं कि वो पहले से ही बहुत सादा जीवन जीते आए हैं. रोज सुबह 4 बजे उठते हैं, योगा करते हैं, 1 लीटर पानी पीते हैं. पहले भी वह अपने घर और आईआईटी के बीच साइकिल से आना-जाना करते रहे हैं. अभी अपनी यात्रा के दौरान वह हर रोज 20 से 30 किलोमीटर की यात्रा करते हैं. उबला हुआ खाना खाते हैं और खूब सारा पानी पीते हैं रात को 10:00 बजे सो जाते हैं और सुबह 4:00 बजे उठ जाते हैं. वह कहते हैं कि यही उनकी फिटनेस का राज है.
'युवा अंदर से खोखला हो रहा'
किरण सेठ मानते हैं कि आजकल का युवा बाहरी दुनिया के लिए बहुत होशियार हो चुका है, लेकिन अंदर से वह कहीं ना कहीं खोखला होता जा रहा है. यही वजह है कि युवाओं में डिप्रेशन और सुसाइड बढ़ता जा रहा है. वह चाहते हैं कि उनका मकसद है युवाओं में ऊर्जा का संचार करना और उन्हें भारतीय संस्कृति और जीवन की तरफ वापस लेकर आना है.