कश्मीर की सदियों पुरानी "नमदा" (ऊनी गलीचा) शिल्प विलुप्त होने के कगार पर था लेकिन अब एक बार फिर यह लोगों की जिंदगी में वापसी कर रहा है. इस कला को पुनर्जीवित करने का श्रेय घाटी के 2,200 से ज्यादा कारीगरों, मुख्य रूप से लड़कियों को जाता है, जिन्होंने इस सप्ताह यूके, जापान, हॉलैंड और जर्मनी को 1.5 लाख डॉलर के कंसाइंमेंट का पहला बैच एक्सपोर्ट किया है.
यह 25 सालों में जम्मू-कश्मीर में निर्मित नमदा का पहला एक्सपोर्ट है. 11वीं शताब्दी की कला को बचाने के लिए केंद्र के विशेष पायलट प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में कारीगरों के प्रशिक्षण के बाद यह बदलाव आया.
क्या है नमदा क्राफ्ट
नमदा एक हाथ से बना हुआ गलीचा होता है जो ऊन की बुनाई के बजाय उसे फेल्ट करके बनाया जाता है. फेल्टिंग ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ऊन या दूसरे फाइबर्स को कंबाइन और कंप्रेस करके कोई टेक्सटाइल या फैब्रिक बनाया जाता है. सदियों पुराने इस शिल्प के लिए खास स्किल्स की जरूरत होती है. 1970 के दशक में, हर साल लगभग 300 करोड़ रुपये का नमदा निर्यात होता था. लेकिन कच्चे माल और स्किल्ड लेबर की कमी के कारण धीरे-धीरे निर्यात घटता गया.
नमदा के लिए 1.5 लाख डॉलर का यह एक्सपोर्ट ऑर्डर 25 सालों में पहली बार मिला है. कौशल विकास राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने नवंबर 2021 में शुरू की गई इस परियोजना ने अब तक छह समूहों - श्रीनगर, बारामूला, गांदरबल, बांदीपोरा, बडगाम और अनंतनाग में 2,212 नमदा शिल्प निर्माताओं को सर्टिफाई किया है.
केंद्र के तहत जम्मू-कश्मीर हस्तशिल्प और कालीन क्षेत्र कौशल परिषद के अध्यक्ष अरशद मीर बताते हैं कि नेपाल को जम्मू-कश्मीर नमदा कला की कीमत पर फायदा हुआ है और वह सालाना 650 मिलियन अमरीकी डॉलर के नमदा-प्रकार के गलीचों का निर्यात कर रहा है. लेकिन अब स्थानीय नमदा बनाने वाली प्रतिभाएं सामने आ रही हैं, परिषद को उद्योग में बड़े पैमाने पर बदलाव का भरोसा है.
फ्लिपकार्ट के साथ MoU
हाल ही में, परिषद ने कश्मीर के बुनकरों को अपने नामदा बेचने में मदद करने के लिए फ्लिपकार्ट के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जो अब क्रिसमस सजावट, परिधान और टेबल टॉप सहित दस प्रोडक्ट कैटेगरी में बनाए जा रहे हैं. प्रशिक्षित लोग कश्मीर की सबसे उल्लेखनीय परंपरा को पुनर्जीवित करने के मिशन को शक्ति देने के लिए कश्मीर भर में बेरोजगार महिलाओं को ट्रेन कर रहे हैं.
श्रीनगर की 21 वर्षीय शबरोज़ा का कहना है कि यह नमदा कला कश्मीर के बाहर की दुनिया के लिए उनका टिकट बन गई है. शबज़ोरा कहती हैं, "पिछले साल ही मैंने पहली बार कश्मीर से बाहर यात्रा की थी जब हमने नई दिल्ली और बाद में गोवा में अपने नमदाओं का प्रदर्शन किया था. मैं बाहर यात्रा करने से बहुत डरती थी लेकिन मेरी सारी शंकाएं दूर हो गईं."
कई लोगों की बदल रही है जिंदगी
इसी तरह, श्रीनगर की 27 वर्षीय रजिया सुल्ताना ने पहले ही अपने घर से एक छोटी सी फैक्ट्री शुरू कर दी है. कोर्स पूरा करने के बाद उन्होंने 30 लड़कियों को नमदा कला में प्रशिक्षित किया. एक अन्य बुनकर शाहिदा अब श्रीनगर में अपने कुटीर उद्योग में 15 लोगों को रोजगार देती है क्योंकि नमदा स्थानीय रोजगार की संभावनाओं को बढ़ावा देता है.
राज्य मंत्री राजीव चन्द्रशेखर ने आज कहा कि विशेष परियोजना का उद्देश्य न केवल शिल्प को बचाना और बनाए रखना है, बल्कि निर्यात बाजारों से रिटर्न भी लेना है. उन्होंने कहा, "यूके को निर्यात खेप भेजने के साथ पहली सफलता हासिल की गई है, आगे और भी सफलताएं मिलेंगी."