आज भी बहुत से लोग हैं इस देश में जिन्हें रोटी, कपड़ा और सिर पर छत जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं मिलती हैं. दो वक्त की रोटी कमा पाना भी एक जंग है. बहुत से लोगों के सिर पर न तो छत है और न ही सही से तन छिपाने के लिए कपड़े. ऐसे में दो वक्त की रोटा मिल जाए तो भी बड़ी बात है.
ऐसे जरूरतमंदों की मुश्किल को समझकर ही झारखंड में एक व्यवसायी रोटी बैंक चला रहा है. इस रोटी बैंक से हर दिन लगभग 200 गरीब लोगों को खाना खिलाया जाता है ताकि वे भूखे पेट न सोएं. यह कहानी है रांची के विजय पाठक की जो पिछले लगभग ढाई साल से रोटी बैंक चला रहे हैं.
सरकारी अस्पताल के बाहर बांटते हैं मुफ्त खाना
रांची में सरकारी राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान में पहुंचने वाले करीब 200 गरीब लोगों को 42 वर्षीय विजय पाठक पिछले ढाई साल से प्रतिदिन घर का बना खाना मुफ्त में परोस रहे हैं. इस काम मे पूरा खर्च पाठक खुद उठाते हैं. हालांकि, कभी-कभी दूसरे नेक लोग भी अनाज आदि देकर मदद करते हैं.
उनकी पहल- रोटी बैंक रांची छोटे पैमाने पर शुरू हुआ. पहले पाठक और उनकी पत्नी ने फुटपाथ पर सोने वाले 15-20 लोगों के लिए भोजन बनाते थे.
अस्पताल में लोगों को भूखा देख आया ख्याल
पाठक का कहना है कि उनके दिमाग में इस रोटी बैंक का विचार तब आया जब उनके पिता लगभग एक महीने के लिए रिम्स में भर्ती थे. उन्होंने कई लोगों को खाली पेट सोते देखा क्योंकि उनके पास खाना खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. तब उन्होंने संकल्प लिया था कि जब भी वह इतने सक्षम होंगे कि लोगों को मुफ्त भोजन खिला सकें तो हर रोज लोगों का पेट भरेंगे.
रोटी बैंक रांची को उन्होंने महामारी फैलने से ठीक पहले 1 मार्च, 2020 को लॉन्च किया था.
मदद के लिए नहीं लेते पैसे
पाठक का कहना है कि वह कभी भी इस अभियान के लिए नकदी पैसे स्वीकार नहीं करते हैं. उनका मानना है कि इससे उद्देश्य पूरा नहीं होगा क्योंकि दूसरों से प्राप्त धन का दुरुपयोग हो सकता है. इसलिए वह दूसरों से अनाज, दाल आदि की मदद करने के लिए कहते हैं.
रोटी बैंक रांची भी विवाह पार्टियों और अन्य औपचारिक समारोहों से बचा हुआ भोजन इकट्ठा करता है और इसे गरीबों में बांटते हैं.