गरीब बच्चों के लिए बनी ऐसी लाइब्रेरी, जहां रिटायर्ड लोग लेते हैं क्लास, झुग्गी से निकालकर बच्चों को कर रहे शिक्षित

गाजियाबाद में कुछ स्थानीय लोगों ने मिल कर एक पाठशाला की शुरुआत की है जिसका नाम है स्पर्श लाइब्रेरी. लाइब्रेरी इसलिए क्योंकि यहां बच्चों को मुफ्त में किताबें भी दी जाती है, कोई चाहे तो इस लाइब्रेरी को अपनी पुरानी किताबें दान कर सकता है और जिसको किताबों की जरूरत हो वो यहां से ले भी सकता है. 

School for underprivileged kids
नीतू झा
  • नई दिल्ली,
  • 04 मई 2023,
  • अपडेटेड 7:21 PM IST

कहते हैं अगर किसी में पढ़ने की ललक हो और उसे पढ़ाने वाला मिल जाए तो उस बच्चे को कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता. ऐसे ही कुछ बच्चे गाजियाबाद में भी रहते हैं. दिल में हजारों ख्वाहिशों की पतंग लिए ये बच्चे आसमान में उड़ना चाहते हैं लेकिन किसी के सिर पर छत नहीं है तो किसी को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती. ऐसे ही बच्चों की मदद करने के लिए कुछ लोगों ने हाथ बढ़ाया और एक ऐसी पाठशाला बनाई जिसमें आर्थिक तौर से कमज़ोर, गरीब और ऐसे बच्चों को पढ़ाया जा सके जिनके घर में कोई पढ़ा-लिखा नहीं है और न ही किसी ने स्कूल की शक्ल देखी है.

गरीब बच्चों के लिए बनी स्पर्श लाइब्रेरी
गाजियाबाद में कुछ स्थानीय लोगों ने मिल कर एक पाठशाला की शुरुआत की है जिसका नाम है स्पर्श लाइब्रेरी. लाइब्रेरी इसलिए क्योंकि यहां बच्चों को मुफ्त में किताबें भी दी जाती है, कोई चाहे तो इस लाइब्रेरी को अपनी पुरानी किताबें दान कर सकता है और जिसको किताबों की जरूरत हो वो यहां से ले भी सकता है. 

रिटायर्ड लोग लेते हैं क्लास
इस स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक पेशे से रिटायर्ड इंजीनियर या टीचर हैं, जिन्होंने स्कूल की शुरुआत की है वो खुद पेशे से डॉक्टर हैं. पहले ये पाठशाला खुली छत के नीचे चलाई जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे पाठशाला बड़ी होने लगी. मौजूदा वक्त में यहां तकरीबन 70 बच्चे पढ़ रहे हैं. खास बात ये है कि इस पाठशाला में कई सालों से बच्चे पढ़ रहे हैं और कुछ तो अब स्कूल भी जाने लगे हैं. 

बच्चों को घर से बुलाकर पढ़ाना शुरू किया 
पाठशाला में पढ़ाने वाले इंजीनियर वैभव बताते हैं कि उन लोगों को शुरुआती दौर में काफी मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा क्योंकि बच्चे झुग्गियों में रहते हैं जहां माता-पिता अक्सर अपने बच्चों की पढ़ाई पर कोई ध्यान नहीं देते लेकिन उनके साथियों ने तय किया कि वो लोग बदलाव करेंगे और फिर उन्होंने लोगों को समझाना शुरू किया धीरे-धीरे बच्चे बढ़ने लगे और अब वो खुद पाठशाला आने की जिद करते हैं.

कुछ बनने की चाहत भी रखते हैं ये बच्चे
बता दें, आज स्पर्श लाइब्रेरी 3 कमरों के बने एक मकान में संचालित की जाती है, लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब ये पाठशाला खुले में होती थी लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि चाहे भीषण गर्मी हो या बरसात बच्चे उसमें बैठ कर भी पढ़ते थे. पाठशाला में बच्चों को पढ़ाने के अलावा किताबें भी दी जाती हैं. खासतौर पर उनके स्वास्थ्य का भी बेहद ध्यान रखा जाता है. पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चों ने गुडन्यूज टुडे को बातचीत में बताया कि पहले वो लोग मंदिर के सामने भीख भी मांगा करते थे, कुछ के घर में पैसों की इतनी किल्लत थी कि घर वाले स्कूल नहीं भेज सकते थे लेकिन यहां किताबे भी दी जाती हैं इसलिए वो खुशी खुशी आ कर पढ़ते हैं और आगे भविष्य में कुछ बनने की चाहत भी रखते हैं.

 

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