Surname Dispute: सरनेम को लेकर हुई कपल में लड़ाई...तलाक तक पहुंचा मामला, पत्नी ने ठोका केस, कोर्ट से सुना दिया ये फैसला

शंघाई में एक जोड़े के बीच ‘सरनेम’ को लेकर हुए विवाद के चलते बात तलाक तक पहुंच गई. कपल के दो बच्चे हुए जिसमें से एक के नाम के बाद पत्नी ने अपना सरनेम लग दिया. पति को ये बात नागवार गुजरी और उसने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया.

Chinese couple
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 18 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 12:26 PM IST
  • सरनेम की वजह से कपल में हुआ तलाक
  • हाईकोर्ट ने भी खारिज किया केस

सरनेम आपकी पहचान का बेहद अहम हिस्सा है. यही वजह है कि नाम और सरनेम को लेकर होने वाले विवाद कई बार कोर्ट तक पहुंच जाते हैं. भारत में बेशक बच्चे के नाम में पिता का सरनेम लगाया जाता है लेकिन शंघाई में एक कपल के बीच सरनेम को लेकर ऐसी बहस हुई कि बात तलाक तक पहुंच गई.

शंघाई के एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को इसलिए तलाक दे दिया क्योंकि वो अपने बेटे के साथ पिता की जगह अपना सरनेम लगाने की बात कह रही थी. इस मामले ने सोशल मीडिया पर पिता का सरनेम अपनाने की चीनी परंपरा को लेकर बहस छेड़ दी है.

सरनेम की वजह से कपल में हुआ तलाक
चीनी न्यूज आउटलेट हेनान टेलीविजन के अनुसार, शाओ सरनेम वाले शख्स और उसकी वाइफ जी के दो बच्चे हैं. जिसमें बेटी के नाम के बाद पिता का सरनेम लगा है जबकि महिला ने बेटे के नाम में अपना सरनेम लगाया. दोनों के बीच सरनेम को लेकर विवाद इतना बढ़ गया कि कपल ने 2023 में तलाक लेने का फैसला किया. तलाक के बाद दोनों बच्चे महिला के पास रह रहे हैं.

पत्नी ने सिर्फ एक बच्चे को दिया अपना सरनेम
शाओ ने अपनी बेटी की कस्टडी मांगी लेकिन जी इसके लिए राजी नहीं हुई और दोनों बच्चों को अपने पास रखने की बात कही. दोनों इस मामले को अदालत में ले गए और कोर्ट ने जी के पक्ष में फैसला सुनाया क्योंकि बच्चे शुरू से जी के पास ही रह रहे थे. दरअसल चीनी अदालतें "बच्चे के सर्वोत्तम हितों" को ध्यान में रखते हुए ही बच्चों की कस्टडी पर फैसला सुनाती हैं. चीन में कस्टडी आमतौर पर मां को दी जाती है, लेकिन बच्चों की देखभाल और सपोर्ट करने की क्षमता में पिता को भी ध्यान में रखा जाता है. 

हाईकोर्ट ने भी खारिज किया केस
हालांकि शाओ इस फैसले से खुश नहीं था और उसने हाई कोर्ट में अपील की. हाई कोर्ट ने भी शाओ के केस को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मां ने बच्चे को जन्म दिया है, ऐसे में कोई उसे इस अधिकार से वंचित नहीं कर सकता. कोर्ट ने पिता शाओ को 18 साल  के होने तक बच्चों के भरण पोषण का खर्च उठाने का फैसला सुनाया. 

सोशल मीडिया पर हो रही चर्चा
सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर बहत चर्चा हो रही है. एक यूजर ने लिखा, पुरुष ने बच्चे को 10 महीने तक अपने पेट में नहीं रखा. उसे आभारी होना चाहिए कि महिला ने सिर्फ एक बच्चे को ही अपना सरनेम दिया. एक यूजर ने लिखा, क्या इससे कोई फर्क पड़ता है कि बच्चे किसका सरनेम लेते हैं? कपल्स के लिए अच्छे रिश्ते से बढ़कर कुछ भी मायने नहीं रखना चाहिए. एक अन्य यूजर ने लिखा, अगर ये मामाल भारत का होता तो बेशक पिता के पक्ष में फैसला सुनाया जाता.

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