सोशल मीडिया और YouTube पर 'Punjabi Trekker' के नाम से मशहूर कपल, लवप्रीत और प्रीति ने साल 2012 में शहरी जिंदगी छोड़कर पहाड़ों में सस्टेनेबल जिंदगी जीना शुरू किया. उनका एक ही मकसद था प्रकृति के करीब रहकर सुकून भरी जिंदगी जीना. वह गुरुग्राम में थे और कॉर्पोरेट लाइफ में फंसे हुए थे. उनकी शुरूआत पहाड़ों में ट्रेवलिंग से शुरू हुई और फिर उन्होंने फैसला किया कि उन्हें जिंदगी काटनी नहीं है बल्कि पूरी तरह से जीनी है. आज वह मेट्रो शहर की भीड़-भाड़ और तेज रफ्तार से दूर सामान्य जिंदगी जी रहे हैं और घूम रहे हैं.
दिलचस्प बात यह है कि इस Slow Living को अपनाने वाले आज भारत में बहुत से लोग हैं. जैसे आंध्र प्रदेश की एक सायकोलॉजिस्ट, पूजा वेगेस्ना महीने भर के लिए राज्य के ग्रामीण इलाकों में अपने दादा-दादी के घर रहने गईं. उनका मकसद था कि वह उस तरह की जिंदगी जिएं जैसे उनके दादा-दादी जी रहे हैं. यही 'Slow Living' है जिसमें खुद अपना खाना बनाना, प्रकृति से जुड़ना और आध्यात्मिक बनना शामिल है. अच्छी बात यह है कि जिंदगी के अलग-अलग पहलुओं में लोग 'Slow Living' अपना रहे हैं. आज हर जनरेशन- Gen Z, मिलेनियल्स, बूमर्स या Gen X- के लोग अपने जिंदगी को समझने के अपने तरीकों को बदल रहे हैं. Slow Fashion, Slow Travel और Slow Cooking जैसे कॉन्सेप्ट्स अब सिर्फ बातें नहीं हैं बल्कि लोगों की हकीकत बन रहे हैं.
कुछ न करना भी है कला
अपने आसपास नजर घुमाएंगे तो आप पाएंगे कि आपके जानने वालों मे ही कोई है जो बिना कोई काम किए नहीं रह सकता, ऑफिस में भी बहुत से लोग 12 घंटों से भी ज्यादा काम करते हैं. वहीं, दूसरी तरफ बहुत से लोग ऐसे हैं जो जिंदगी में आराम तलाश रहे हैं. जो किसी रेस में नहीं है बल्कि पूरे इत्मीनान के साथ एक-एक पल को जी रहे हैं. आज के जमाने में अपनी 9 से 5 की भागदौड़ भरी जिंदगी को छोड़कर सुकून की धीमी जिंदगी तलाश रहे लोगों की संख्या बढ़ रही है. भारतीय अरबपति बिजनेसमैन और टेक कंपनी Zoho के फाउंडर श्रीधर वेम्बू इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं.
2019 में, वह अमेरिका में अपनी हाई-प्रोफाइल नौकरी छोड़कर तमिलनाडु के तेनकासी जिले के एक गांव में चले गए. उन्होंने किसी मेट्रो शहर के बजाय मथालमपराई गांव की एक फैक्ट्री में अपना ऑफिस शुरू किया. NBT के अनुसार, 2022 तक, ज़ोहो कॉर्पोरेशन का रेवेन्यू 8,300 करोड़ रुपये से अधिक हो गया था, और श्रीधर एक सफल टेक कंपनी चलाते हुए ग्रामीण जिंदगी सुकून से जी रहे हैं.
'कोविड-19 महामारी के बाद आया है बदलाव'
ऑन्टोलॉजिस्ट, मेंटल हेल्थ और रिलेशनशिप एक्सपर्ट, आशमीन मुंजाल ने इंडिया टुडे को बताया कि लोगों के रहन-सहन के तरीकों में या उनकी लाइफस्टाइल में एक बड़ा बदलाव आया है. भागदौड़ भरी और स्ट्रेस भरी जिंदगी से लोग दूर होकर स्लो लिविंग यानी धीमी गति से जीवन जीने की ओर बढ़ रहे हैं. उनका मानना है कि इस बदलाव का मुख्य कारण आधुनिक जीवन में निरंतर कनेक्टिविटी, सफलता की तलाश और वर्क शेड्यूल का बढ़ता प्रेशर है, जिस वजह से तनाव और चिंता का लेवल बढ़ रहा है. और हम सभी जानते हैं कि तनाव हमारे लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं है.
इसके अलावा, कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों ने जिंदगी को जीने का एक अलग तरीका सीखा. ज्यादातर लोगों ने घरों से काम किया और उन्हें समझ आया कि रेगुलर 9 से 5 की बजाय रिमोट वर्क करने के ज्यादा फायदे हैं. महामारी के बाद, बहुत से लोगों ने इसी तरीके को लाइफस्टाइल बना लिया. वे डिजिटल खानाबदोश बन गए, ट्रेवल करते हुए काम करना और धीमी गति से जीवन जीना.
Slow Travel बदल रहा लोगों के अनुभव
धीमी जीवनशैली ने लोगों के यात्रा करने के तरीके को भी प्रभावित किया है. स्लो ट्रेवल, ट्रेवल करते समय हर पल को जीने और अपनी यात्रा को मीनिंगफुल बनाने पर फोकस करती है. यह कॉन्सेप्ट न सिर्फ विदेशों बल्कि भारत में भी पॉपुलर हो रहा है. Map My Stories जैसे स्टार्टअप माइंडफुल ट्रेवल प्रोग्राम बनाने पर फोकस्ड हैं जो यात्रियों को अपने अनुभवों को पूरी तरह से जीने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.
'Planet Trotter' के फाउंडर निखिल प्रताप सिंह कॉर्पोरेट जिंदगी को छोड़कर स्लो ट्रेवलिंग के जरिए हिमालयन गांवों की तस्वीर बदल रहे हैं. उनका उद्देश्य इस तरह की एक्सपेरिमेंटल यात्राओं के जरिए ग्रामीण भारत की आजीविका बढ़ाना और ट्रेवलर्स को नए-नए अनुभवों से जोड़ना है. भारत में, एक ट्रैवल कंपनी, Agoda की एक हालिया स्टडी से पता चला है कि भारतीय अहमदाबाद, गोवा या अयोध्या जैसी जगहों को एक्सप्लोर करने का विकल्प चुन रहे हैं. वे सिर्फ एक जगह को एक्सप्लोर करके स्लो टूरिज्म को अपना रहे हैं.
Slow Fashion है आज का ट्रेंड
भारत में शीन, ज़ारा, एचएंडएम और ज़ुडियो जैसे ब्रांड्स के साथ फास्ट फैशन आगे बढ़ रहा है. लेकिन अब धीरे-धीरे स्लो फैशन ट्रेंड बन रहा है. भारत में सस्टेनेबल फैशन बाजार लगातार बढ़ रहा है, 2021 से 2026 तक 10.6% की अपेक्षित वृद्धि दर के साथ. निकोबार, ओखाई, इलमरा जैसे भारतीय फैशन ब्रांड धीमे फैशन पर ध्यान केंद्रित करके अपनी पहचान बना रहे हैं.
इसके अलावा, फास्ट फैशन, देश ककी लंबे समय से चली आ रही हस्तशिलप परंपरा के विपरीत है, चाहे वह हाथ से बुनी हुई बनारसी साड़ी हो या असम की गमोक्सा. ऐसा ही एक नाम है सब्यसाची मुखर्जी का जो अक्सर भारतीय शिल्प को आगे रखते हैं और उनके परिधान भी यही दर्शाते हैं. उन्हें अपने देश की इस विरासत पर गर्व है. परिधान और फुटवियर ब्रांड पब्लिक डिज़ायर के एक विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि भारत स्लो फैशन के मामले में वैश्विक स्तर पर नौवें स्थान पर है, जिसका 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर या 8.491% बाजार सस्टेनेबल फैशन के लिए समर्पित है.
Slow Media का ट्रेंड
सिद्धाश्रम हिमालय में एक रहस्यमय और गुप्त जगह है, जिसे हिंदू योगियों के लिए विश्राम स्थल मानते हैं, जहां वे 'धीमे जीवन' की प्रैक्टिस करते हैं. हालांकि, हिमालय में धीमी गति से रहने का कॉन्सेप्ट सिर्फ हिंदुओं तक ही सीमित नहीं है; इस क्षेत्र में कई स्थान बौद्धों, जैनियों, सिखों और मुसलमानों के लिए भी धार्मिक महत्व रखते हैं. हालांकि, लाइफस्टाइल के तौर पर स्लो लाइफस्टाइल लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है.
आज, सोशल मीडिया पर आपको बहुत से ट्रेंड्स मिलेंगे जो धीमी गति से जीवन जीने के सिद्धांतों को दर्शाते हैं. "Lazy girl jobs" (ऐसी जॉब जिसमें कम से कम मेहनत हो), "Quit quitting" (एक्स्ट्रा टाइम या एनर्जी लगाए बिना ऑफिस में मिनिमम काम करना) और "Anti-girl boss" जैसे टर्म्स पॉपुलर हुए हैं, जिससे भागदौड़ की जिंदगी की बजाय स्लो लिविंग को पॉपुलैरिटी मिल रही है.
एक भारतीय इंफ्लूएंयर, चेरी सिन, अपनी स्लो लाइफस्टाइल के कारण सोशल मीडिया पर पॉपुलर हो गए हैं. इंस्टाग्राम पर उनके सिर्फ 581 पोस्ट है लेकिन उनके 3.5 मिलियन से ज्यादा फॉलोअर्स हैं. और उनके कंटेंट की बात करें तो: पहाड़ों में एक साधारण जीवन जीना, जहां वह काम करने और 'शांत जीवन' बनाए रखने पर फोकस करते हैं. उनके पोस्ट पर बहुत से लोग कमेंट् करते हैं कि वह 'हर व्यक्ति के सपने को जी रहे हैं.'
क्यों जरूरी है Slow Living
तेज़-रफ़्तार वाली जीवनशैली लंबे समय के लिए स्ट्रेस का कारण बन सकती है, जिसके आपको एंग्जायटी और बर्नआउट हो सकता है. यह क्रिएचिविटी को भी खत्म करता है और लोगों की निर्णय लेने की क्षमता पर अस पड़ता है. कोई भी इमोशनली खुद को थका हुआ महसूस करता है तो कोई लोगों से खुद को दूर करने लगता है. भागती-दौड़ती जिंदगी में आपको लग सकता है कि आप बहुत सफल हैं लेकिन ऐसा नहीं है. इस जिंदगी के लिए आप अपनी सेहत से लेकर इमोशनल फीलिंग्स तक को कुर्बान कर रहे हैं. इसलिए एक बार थोड़ा ठहरकर सोचें कि आप अपनी जिंदगी से क्या चाहते हैं? और फिर तय करें कि आपको जिंदगी कैसे जीनी है.