मध्य प्रदेश में रायसेन फोर्ट के नाम से फेमस 800 साल पुराना किले में कई राज दफन हैं. इस किले को लेकर कई किस्से फेमस है. इसमें से कई के ऐतिहासिक सबूत हैं तो कई सिर्फ कथा-कहानियों में हैं. इसमें से एक इस किले में पारस पत्थर के होने की कहानी है. इसके साथ ही इस किले में रानी दुर्गावती ने 700 रानियों के साथ जौहर किया था. चलिए आपको इस ऐतिहासिक किले के बारे में बताते हैं.
किले में 9 इंट्री गेट और 13 टॉवर-
रायसेन फोर्ट मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में पड़ता है. ये किला राजधानी भोपाल से 50 किलोमीटर दूर है. इस किले को 800 साल पहले 1200 ईवी में बनाया गया था. इस किले में 9 प्रवेश द्वार हैं, जबकि 13 टॉवर हैं. इसके अलावा यहां कई गुंबद हैं. इस किले में एक मंदिर और एक मस्जिद है.
किले में 4 महल-
इस किले में 4 महल हैं, जिनको बादल महल, रोहिणी महल, इतरादान महल और हवा महल कहा जाता है. महल की दीवारों पर हीरे और कमल की कली की नक्काशी की गई है. हवा महल में एक बड़ा रानी तालाब है. शायद इसे महिलाएं इस्तेमाल करती थी. इस किले के शिव मंदिर में हर शिवरात्रि पूजा की जाती है.
लोहे को सोने में बदल देता है पारस पत्थर-
इस किले में पारस पत्थर होने की कहानी स्थानीय लोगों में प्रचलित है. कहा जाता है कि राजा राजसेन के पास एक पारस रत्थर था, जो लोहे को सोने में बदल देता था. यह एक रहस्यमयी पत्थर था. इत पत्थर को लेकर ही कई लड़ाइयां हुई थीं. बताया जाता है कि पारस पत्थर के चलते ही विदेशी शासकों ने इसपर 13 बार आक्रमण किया था. कहानी है कि जब राजसेन की लड़ाई में हार हुई तो उन्होंने पारस पत्थर को झील में फेंक दिया. कहानी ये भी है कि कई राजाओं ने उस पत्थर को खोजने की कोशिश की. लेकिन पत्थर नहीं मिला. माना जाता है कि आज भी वो पारस पत्थर इस किले में ही है. जो भी पर्यटक इस किले में जाते हैं, उनको पारस पत्थर वाली कहानी बताई जाती है और उनकी नजरें भी इधर-उधर पारस पत्थर तलाशने में जुट जाती हैं. ये कहा जाती है कि इस पारस पत्थर की रक्षा एक जिन्न करता है.
धोखे से शेरशाह सूरी ने जीत लिया था किला-
कहा जाता है कि इस किले को साल 1543 ईस्वी में शेहशाह सूरी ने जीत लिया था. शेरशाह ने इस किले को जीतने के लिए धोखे का सहारा लिया था. जब इस धोखे की बात राजा पूरणमल को चली तो उसने अपनी पत्नी का गला काट दिया, ताकि वो दुश्मनों के हाथ नहीं लगे.
700 रानियों का जौहर-
साल 1532 में गुजरात के शासक बहादुर शाह द्वितीय ने रायसेन किले पर हमला बोल दिया था. राजा शिलादित्य ने घुटने टेकने की बजाय लड़ने की बात कही. इसके बाद रानी दुर्गावती ने 700 राजपूत रानियों के साथ जौहर कर लिया. इस घटना का जिक्र रायसेन के गजेटियर में भी है.
(रायसेन से राजेश रजक की रिपोर्ट)
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