'मेरे दिमाग को कंट्रोल करने वाली मशीन बंद कर दें'- आदमी की अजब गजब याचिका... Supreme Court ने की खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को सीधे खारिज करने के बजाय याचिकाकर्ता की चिंता को सही ढंग से समझने का निर्देश दिया. बातचीत के बाद समिति ने एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा कि याचिकाकर्ता का कहना है कि दिमाग को कंट्रोल करने वाली यह मशीन असली है और इसे बंद करने की जरूरत है.

Mind Controlling (Representative Image)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 12 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:49 AM IST
  • SC में आदमी की अजब गजब याचिका
  • कोर्ट ने खारिज कर दी याचिका  

लगभग हर दिन सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग मामले आते हैं. अपनी मुश्किलों से परेशान लोग न्याय की गुहार लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाते हैं. ठीक ऐसे ही एक और व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में बड़ी अजब गजब गुहार लगाई है. एक व्यक्ति जो पेशे से एक शिक्षक हैं ने कोर्ट में अजीबोगरीब याचिका दायर की. इसमें आरोप लगाया गया है कि एक सीक्रेट मशीन ने उनके दिमाग को बंधक बना लिया है. 

शिक्षक का दावा है कि कुछ लोग "ह्यूमन मशीन रीडिंग मशीनरी" का दुरुपयोग कर रहे हैं. इससे उन्हें एक कठपुतली की तरह कंट्रोल किया जा रहा है. उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि इस कथित मशीन को डीएक्टिवेट कर दिया जाए और उन्हें अपने इन अदृश्य बंधकों से मुक्त किया जाए.

आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में शुरू हुई कहानी 
दरअसल, यह कहानी पहली बार आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में शुरू हुई, जहां इस व्यक्ति ने खुद की ओर से, अपने इन अनदेखे "माइंड कंट्रोलर" लोगों के खिलाफ याचिका दायर की. उनका तर्क था, कि कुछ लोगों ने हैदराबाद स्थित सेंट्रल फॉरेंसिक साइंटिफिक लेबोरेटरी (CFSL) से एक एडवांस मंद रीडिंग मशीन ली है और उससे उनके विचारों और एक्शंस को कंट्रोल किया जा रहा है. शिक्षक की अपील थी कि कोर्ट तुरंत हस्तक्षेप करके मशीन को बंद करवाया जाए और उनके दिमाग को फ्री कर दिया जाए. 

हाई कोर्ट का जवाब क्या था? 
हालांकि, शिक्षक के इस दृढ़ विश्वास के बावजूद, हाई कोर्ट ने इस पर संदेह जताया. सीएफएसएल और सेंट्रल ब्यूरो इन्वेस्टिगेशन (CBI) ने एक काउंटर-एफिडेविट दाखिल कर स्पष्ट किया कि सीएफएसएल या सीबीआई ने याचिकाकर्ता पर कोई भी जांच नहीं की है. सबूत की कमी के कारण, हाई कोर्ट ने नवंबर 2022 में इस याचिका को खारिज कर दिया. लेकिन शिक्षक ने हार नहीं मानी और उन्होंने अपने इस मामले को स्पेशल लीव पिटीशन के रूप में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया. 

कोर्ट ने खारिज कर दी याचिका  
27 सितंबर, 2024 को जस्टिस सुधांशु धूलिया और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह को याचिकाकर्ता के इस दावे पर काफी आश्चर्य हुआ. शिक्षक ने कहा कि मशीन अब भी एक्टिव है और उनका ब्रेन अब भी इसके कब्जे में है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को सीधे खारिज करने के बजाय याचिकाकर्ता की चिंता को सही ढंग से समझने के लिए सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमिटी (SCLSC) को उनके साथ उनकी मातृभाषा में बातचीत करने का निर्देश दिया. 

इस बातचीत के बाद समिति ने एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा कि याचिकाकर्ता का कहना है कि दिमाग को कंट्रोल करने वाली यह मशीन असली है और इसे बंद करने की जरूरत है.

आखिरी सुनवाई में, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यह मामला कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. बेंच ने टिप्पणी की, "याचिकाकर्ता ने जो मांग की है, वह यह है कि एक ऐसी मशीन है जिसे कुछ लोग चला रहे रहे हैं, जिससे याचिकाकर्ता के माइंड को कंट्रोल किया जा रहा है. हमें इस मामले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नजर नहीं आ रहा है.” इस निर्णय के साथ, कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया.
 

 

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