सड़क पर भीख मांगने वाले बच्चों को रेस्क्यू कर पढ़ाने का काम कर रहे नरेश...गरीब बस्तियों के बच्चों के लिए बने आशा की किरण

क्या आपने कभी सोचा है जो बच्चे सड़क पर भिक्षा मांगने का काम करते हैं उनका भविष्य क्या होता होगा? या फिर वे किस तरह से अपने जीवन का गुजारा करते होंगे. इन गरीब बच्चों के लिए आशा की किरण बने नरेश.

गरीब बच्चे
तेजश्री पुरंदरे
  • आगरा,
  • 15 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 6:07 PM IST
  • 15 सालों से बच्चों को पढ़ा रहे
  • बच्चों को परिवार से मिलवाया

उत्तर प्रदेश के आगरा में इंदिरा नगर मारवाड़ी बस्ती जो मेहता बाग के पास स्थित है, यहां पर रहने वाले लोगों के पास मूलभूत सुविधाएं नहीं है. इन लोगों के पास ना रहने के लिए ठीक से मकान है, ना खाने के लिए दो वक्त की रोटी, ना पीने के लिए साफ पानी. इन्हीं हालातों के कारण शिक्षा के मंदिरों में भी अपने दरवाजे इन बच्चों के लिए बंद कर दिए हैं. यह बच्चे पढ़ना तो चाहते थे, लेकिन इनके पास पढ़ाई के लिए कोई माध्यम नहीं था. यह इसी तरह अंधेरों में अपनी जिंदगी का गुजारा किया करते थे. लेकिन इनकी जिंदगी में रोशनी तब आई जब नरेश पारस उम्मीद की किरण बनकर इन बच्चों की जिंदगी में आए. नरेश पारस ना केवल इन बच्चों की जिंदगी में एक नई उम्मीद लेकर आ रहे हैं बल्कि इन्हें एक अच्छा भविष्य भी देने की कोशिश कर रहे हैं.

15 सालों से बच्चों को पढ़ा रहे
दरअसल नरेश पारस आगरा में ही एक प्राइवेट नौकरी करते हैं और साथ ही साथ बच्चों के भविष्य को संवारने का काम भी कर रहे हैं. खास बात यह है कि ये वे बच्चे हैं जिनके परिवार गरीबी रेखा से भी नीचे की श्रेणी में आते हैं. वे पिछले 15 सालों से इन्हीं बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं. खास बात यह भी है कि नरेश द्वारा पढ़ाए गए बच्चे आज खुद अपने पैरों पर खड़े होकर अपने और अपने परिवार के भविष्य को एक अच्छी जिंदगी दे रहे हैं.

बच्चों को परिवार से मिलवाया
इतना ही नहीं बल्कि नरेश भीख मांगने वाले बच्चों का सर्वे करते हैं और फिर यही रिपोर्ट शासन प्रशासन को देकर बच्चों को रेस्क्यू कर उन्हें शिक्षा से जोड़ने का काम करते हैं. इसी तरह से वो आगरा की पंद्रह अलग-अलग बस्तियों में जाकर बच्चों के भविष्य को संवारने का काम करते हैं. नरेश बताते हैं कि उन्होंने कई बार RTI माध्यम से लापता बच्चों की जानकारी हासिल कर लापता बच्चों को उनके परिवार से मिलाने का काम किया. उन्होंने तमाम ऐसे खोए हुए बच्चों को उनके परिवारों से मिलाया है ऐसे बच्चे जोकि अनाथालय में 10 साल से बंद थे उनके परिवारों को खोज कर उन्हें सुपुर्द कराया.

इन लोगों को कराया रेस्क्यू
इसके अलावा उन्होंने यौन शोषण की शिकार बच्चियों को मुक्त करवाकर उनके आरोपियों को सजा भी दिलवाई. जिलों की अव्यवस्था को उजागर करते मानवाधिकार आयोग को अवगत कराया. जेलों में बंद बेगुनाहों की पैरवी करके उनको आजाद कराया. ऐसे लोग जो जुर्माने के अभाव में सजा काट रहे हैं उनको भी जेलों से आजाद कराया है. वेश्यावृत्ति के लिए खरीद कर लाई गई महिला तथा लड़कियों को रेस्क्यू कराया है उनके परिजनों को सौंपा.

क्या है नरेश का सपना?
इसी तरह से वे कई जरूरतमंद बच्चों की जिंदगी संवारने का काम कर रहे हैं. बच्चों के माता-पिता बताते हैं कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनके बच्चे सड़क पर भीख मांगने के अलावा हाथ में किताब और कलम पकड़ कर शिक्षा भी ले सकते हैं. बच्चों के माता-पिता का मानना है कि उनके बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में बहुत मुश्किलें आती थी. इसी कारण से पूरे बस्ती ने शिक्षा की उम्मीदें ही छोड़ दी थी. लेकिन नरेश पारस उनकी जिंदगी में एक उम्मीद और हौसले की किरण बनकर सामने आए. नरेश पारस का यह सपना है कि वे अपने शिक्षा के इस अभियान को बहुत आगे लेकर जाएं और एक दिन बदलाव का ऐसा भी आए जब पूरे उत्तर प्रदेश में कोई भी बच्चा शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित ना रहे.

 

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