Bio-fertilizer increase crop yield: केमिकल इंजीनियर ने बनाया खास बायो-फर्टिलाइजर, 35% तक बढ़ जाएगी उपज

उत्तर प्रदेश के केमिकल इंजीनियर. अक्षय श्रीवास्तव ने नौकरी करने की बजाय अपना खुद का स्टार्टअप शुरू किया है जिसके तहत वह किसानों की मदद के लिए एक खास Bio-Fertilizer बना रहे हैं.

Akshay Shrivastava invents Bio-Fertilizer
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 24 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 11:40 AM IST
  • नौकरी की बजाय चुनी पैशन की राह
  • 35% तक बढ़ सकती है उपज 

उत्तर प्रदेश में कुशीनगर के रहने वाले अक्षय श्रीवास्तव एक केमिकल इंजीनियर हैं. लेकिन किसान परिवार से होने के कारण वह उन्होंने किसानों की परेशानी को करीब से देखा है और इसलिए उन्होंने कुछ ऐसा किया है जिससे किसानों को मुनाफा हो. अक्षय ने हमेशा अपने पिता को खेतों में मेहनत करते देखा लेकिन कभी भी मेहनत के हिसाब से मुनाफा नहीं मिला. इसलिए अक्षय ने जो कुछ भी पढ़ाई में सीखा, उसे इस्तेमाल करके खेतों के लिए एक खास बायो-फर्टिलाइजर बनाया है. 

यह बायो-फर्टिलाइजर न सिर्फ मिट्टी के लिए अच्छा है ब्लकि रासायनिक विकल्पों की तुलना में सस्ता है. साथ ही, अक्षय का दावा है कि इसमें उपज को 15-40 प्रतिशत तक बढ़ाने की क्षमता भी है. उन्होंने इस जैविक उर्वरक को 'नव्यकोश' नाम दिया है. जैसे-जैसे उनका बायो-फर्टिलाइजर किसानों तक पहुंचा, तो उन्हें सभी जगह से सराहना मिली. राज्य सरकार ने भी उन्हें पुरस्कार पसे नवाजा. 

नौकरी की बजाय चुनी पैशन की राह 
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अक्षय ने बचपन से ही अपने पिता को कृषि से संबंधित कई मुद्दों से जूझते देखा - खराब सिंचाई सुविधा, बढ़ती उत्पादन लागत और मिट्टी के स्वास्थ्य पर रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभाव और कम उपज. पर्यावरण के प्रति जागरूक अक्षय हमेशा इस बात पर चर्चा करते थे कि केमिकल फर्टिलाइजर मिट्टी में प्रदूषण को बढ़ाते हैं और उस कारण मिट्टी की गुणवत्ता खराब होती है. 

स्कूल के बाद जब कॉलेज जाने की बारी आई तो  केमिकल इंजीनियरिंग उनकी पहली पसंद थी. लेकिन उनका लक्ष्य अच्छे पैसे वाली नौकरी पाना नहीं था, बल्कि अपने पिता और उनके जैसे लाखों लोगों की स्थिति में सुधार करने के अपने पैशन को फॉलो करना था.

 

35% तक बढ़ सकती है उपज 
23 वर्षीय अक्षय ने एक जैव-उर्वरक का आविष्कार किया है. उनका कहना है कि यह बायो-फर्टिलाइजर कृषि उत्पादकता को 35 प्रतिशत तक बढ़ाने में मदद कर सकता है, जिससे पूरे भारत में 3,000 से ज्यादा किसानों को मदद हो रही है. 

जब वह अपने इंजीनियरिंग कॉलेज के दूसरे वर्ष में थे तब उन्होंने अपनी योजना पर काम करना शुरू कर दिया. लेकिन कॉलेज में ज्यादा साधन नहीं थे इसलिए अपने प्रोटोटाइप को अंतिम रूप देने के लिए उन्होंने आईआईटी-कानपुर सहित राज्य के विभिन्न प्रसिद्ध संस्थानों की यात्रा की. उन्होंने यह  चीनी और अल्कोहल फैक्ट्रीज का भी दौरा किया ताकि पता लगा सकें कि इसका व्यावसायिक रूप से उत्पादन और मार्केटिंग कैसे की जाए. 

माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी को करता है पूरा 
अगस्त 2020 में अक्षय ने वह हासिल कर लिया जिसका उन्होंने सपना देखा था. यह 60 प्रकार के माइक्रोब्स का इस्तेमाल करके तैयार किया गया जैव-उर्वरक था. ये माइक्रोब्स पोटेशियम, नाइट्रोजन, जिंक और कार्बन सहित नौ प्रकार के पोषक तत्वों को बढ़ाने में सक्षम हैं.  अक्षय को नेशनल एक्रीडेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेटरीज (एनएबीएल) से अनुमोदन की मुहर मिल गई, जहां उन्होंने लैब टेस्टिंग के लिए अपने जैव-उर्वरक के 2 किलोग्राम सैंपल भेजे थे. 

इसके अलावा, जमीनी परीक्षणों से पता चला कि उनके उत्पाद के उपयोग से फसल की पैदावार में काफी सुधार हुआ है. उन्हें छह साल की कड़ी मेहनत का फल अच्छा मिला. एक अन्य उत्पाद जो उन्होंने विकसित किया वह एक सुपर अवशोषक ग्रेन्युल था जो अपने वजन से 300 गुना पानी सोख सकता है और इसे धीरे-धीरे छोड़ता है. इसमें नैनोकण शामिल हैं जो बायोमास अपघटन को तेज करते हैं और मिट्टी में माइक्रोबियल गतिविधि को बढ़ाते हैं. 

साल 2021 में शुरू किया अपना स्टार्टअप 
एनएबीएल की एक रिपोर्ट पुष्टि करती है कि उनके दोनों उत्पादों को साथ में इस्तेमाल किया जाए तो आपकी मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर उपज में 15-40 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है और सिंचाई की जरूरत 33 प्रतिशत तक कम हो जाती है.

देश की सर्वोच्च मान्यता संस्था से प्रमाणपत्र के साथ, उन्होंने अपने जैव-उर्वरक और ग्रेन्यूल्स के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए मार्च 2021 में अपना स्टार्टअप स्थापित किया. इसके बाद स्थानीय मीडिया में लोकप्रिय होने के कारण अक्षय को ऑर्डर मिलने लगे. उन्होंने सरकारी स्टार्ट-अप फंडिंग योजनाओं से अनुदान के लिए आवेदन किया और अपनी मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट स्थापित की. वर्तमान में, उनकी एक यूनिट कोल्हापुर में भी है. उनकी कुल उत्पादन क्षमता 350 टन प्रति माह है.

 

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