यह कहानी जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के सदीवाड़ा गांव के वकील और पूर्व सरपंच फारूक अहमद गनई की है. जिन्हें लोग प्यार से 'गारबेज मैन' भी कहते हैं, उन्होंने अपने घर के सब्जी के कचरे का इस्तेमाल करके खाद बनाया है और उससे केसर उगाने में सफलता पाई है. उनके इस कदम ने हमारे समाज में कचरे को बेकार समझे जाने की धारणा को बिल्कुल ही बदल दिया है. वह घरेलू कचरे का इस्तेमाल करके पर्यावरण को साफ और हरा-भरा बना रहे हैं.
सब्जियों के कचरे को खाद में बदलने की उनकी इस कला ने यह साबित कर दिया है कि सही सोच और मेहनत से कचरे को भी सोना बनाया जा सकता है. उनके इस प्रयास ने न केवल पर्यावरण को साफ और हरा-भरा बनाने का संदेश दिया है, बल्कि यह दिखाया है कि कचरे से धन भी कमाया जा सकता है.
कचरे से धन बनाने की पहल
फारूक अहमद गनई जब गांव के सरपंच थे तो उन्होंने गांव में एक अभियान शुरू किया था, जिसके तहत उन्होंने लोगों से कहा कि तुम मुझे कचरा दो मैं तुम्हें सोने के सिक्के दूंगा. इस पहल का मकसद लोगों को यह समझाना था कि कचरे का सही प्रबंधन (management) कितना फायदेमंद हो सकता है. फारूक इसपर पिछले साल से ही काम कर रहे थे. उनके मुताबिक लोग घरेलू कचरे को नदियों और नालों में फेंक देते थे, जिससे बरसात के दिनों में जलभराव और गंदगी की समस्या होने लगती थी.
घरेलू कचरे का सही इस्तेमाल
फारूक अपने घर के निकलने वाले कचरे को अलग-अलग केटेगरी में बांट देते हैं. वह प्याज, आलू, केला, और संतरे के छिलके, अंडे के छिलके और अन्य कचरे को आर्गेनिक कचरे के रूप में अलग कर देते है. वहीं, प्लास्टिक और कागज जैसे कचरे को अलग रखते हैं. इसका मकसद घरेलू स्तर पर कचरे को अलग करना और आर्गेनिक कचरे का खाद के रूप में इस्तेमाल करना है.
केसर की खेती की प्रेरणा
पंपोर (Pampore) और दक्षिण कश्मीर (South Kashmir) के पुलवामा जिले के आसपास के क्षेत्रों में केसर की खेती होती है, जो इसके लिए विशेष जलवायु (Specific Climate) की मांग करता है. फारूक ने बताया कि एक बार उनके दोस्त ने उनसे पूछा कि क्या उनके गांव में केसर उगाई जाती है. और उन्होंने कहा नहीं. फारूक ने इस बात को चुनौती के तौर पर लिया कि उनके गांव में भी केसर उगाया जा सकता है.
उन्होंने पंपोर के एक किसान से उन्होंने केसर के 60 बल्ब (बीज) खरीदे और इन्हें अपने बगीचे में लगाया. केसर के पौधे उगाने के लिए उन्होंने घर के कचरे से बनाई खाद का इस्तेमाल किया. पौधे लगान के सिर्फ 19 दिनों में उनके बगीचे में पहला केसर का फूल खिला और उसके बाद उन्होंने अबतक 85 केसर के फूलों की कटाई कर ली है. फारूक के मुताबिक यह नतीजा दो बातों को साबित करता है. सही प्रबंधन से आर्गेनिक कचरे को पैसे में बदला जा सकता है. पारंपरिक रूप से किसी खास क्लाइमेट वाले क्षेत्र में की जाने वाली फसलों को अन्य क्षेत्रों में भी लगाया जा सकता है.
भविष्य की योजनाएं
फारूक ने अब हर गांव में चार घरों को गोद लेने और वहां के लोगों को कचरे के घर में ही अलग-अलग करने के फायदे को सिखाने का लक्ष्य रखा है. वह चाहते हैं कि लोग अपने में बदलाव लाएं और कचरे को सही तरीके से प्रबंधित करना सीखें. फारूक की यह पहल कचरे को पैसे में बदलने, पर्यावरण को साफ रखने और इससे पैसा कमाने में एक नई दिशा दिखा रही है. उनके इस कदम को न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे देश के लिए सराहा जा रहा है. अब इसके बाद उनका लक्ष्य समुदाय (community) को शिक्षित करना और हरियाली और सफलता की दिशा में कदम बढ़ाना है.