Sahitya Akademi Yuva Puraskar: सातवीं कक्षा के बाद छूटा स्कूल, ओपन से पूरी की पढ़ाई, अब इस टेलर को मिला साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार

कभी चौकीदार तो कभी टेलर का काम करने वाले देवीदास सौदागर को साल 2024 का साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार मिला है. उन्हें यह पुरस्कार उनके उपन्यास, उसवण के लिए दिया गया है, जिसमें उन्होंने दर्जियो के मार्मिक हालातों को बयां किया है.

Usavan written by Devidas Saudagar (Photo: Amazon)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 18 जून 2024,
  • अपडेटेड 2:17 PM IST

पुणे के देवीदास सौदागर की मराठी साहित्यिक हलकों में आजकल  खूब चर्चा हो रही है क्योंकि उन्हें उनके उपन्यास उसवण (उधड़े हुए टांके) के लिए उन्हें मराठी में साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2024 पुरस्कार दिया गया है. देवीदास को पुरस्कार मिलने की बात खास इसलिए है क्योंकि उनकी पहचान एक दर्जी के तौर पर है. देवीदास ने सातवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ने के बाद सिलाई का काम शुरू किया और चौकीदार तक का काम किया ताकि घर चला सकें. उनकी किताब  इस विचार पर आधारित है कि कैसे रेडीमेड कपड़ों ने कपड़ों की सिलाई की जरूरत को कम कर दिया है. 

लॉकडाउन में शुरू किया लेखन कार्य 
देशभर के 23 लेखकों में शामिल देवीदास ने मीडिया को बताया कि कोविड के दौरान उनके पास कोई काम नहीं था और तब उन्होंने फुलटाइम लिखना शुरू कर दिया. साल 2021 में उन्होंने कविताओं का संकलन किया और साल 2022 में उसवण उपन्यास लिखा. अपनी इस किताब को 10 प्रमुख प्रकाशकों के पास ले गए पर सबने मना कर दिया. आखिरकार, देशमुख एंड कंपनी की मुक्ता गोडबोले ने उपन्यास की 500 प्रतियां प्रकाशित कीं. 

आपको बता दें कि 33 वर्षीय देवीदास महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त धाराशिव (पूर्व में उस्मानाबाद) जिले के तुलजापुर में गरीबी में पले-बढ़े. अपनी ज़मीन न होने के कारण, उनके दादा और पिता खेतिहर मज़दूर थे और एक किराए के घर में रहते थे. कक्षा सातवीं के बाद, उन्हें नियमित स्कूल छोड़ना पड़ा और दसवीं कक्षा उन्होंने नाइट स्कूल से की. दिन में वह अपने पिता की सिलाई की दुकान पर मदद करते थे. उन्होंने 2006 में दो साल के लिए पास के आईटीआई (पॉलिटेक्निक) में मोटर मैकेनिक की पढ़ाई की, लेकिन 2008 की आर्थिक मंदी के कारण उनके पास कोई काम नहीं था. 

गांव की लाइब्रेरी से मिली लेखन की राह 
देवीदास ने सिलाई के काम के साथ-साथ जूनियर कॉलेज में दाखिला लिया था लेकिन उनके पास पढ़ाई के लिए न तो पैसे थे और न ही समय.  बाद में उन्होंने एक ओपन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और एमए (इतिहास) पूरा किया और जॉब के मौकों के लिए उन्होंने अंग्रेजी-मराठी टाइपिंग सीखी. उनका कहना है कि लेखन के प्रति उनका प्रेम कक्षा सातवीं में शुरू हुआ. उनके अपने घर में रेडियो भी नहीं था, लेकिन पास की गांव की लाइब्रेरी में कॉमिक्स थीं, जिन्हें वह पढ़ते थे. 

जैसे-जैसे वह बड़े हुए, उन्होंने अन्नाभाऊ साठे की किताबें पढ़ना शुरू कर दिया. 18 साल की उम्र तक उन्होंने कविताएं और कहानियां लिखना शुरू कर दिया था. 2014-15 के आसपास उनकी एक कविता उनके फोन नंबर के साथ एक मराठी अखबार में प्रकाशित हुई थी. उन्होंने देवीदास को और अधिक कविता लिखने और एक संग्रह संकलित करने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन उन्हें प्रकाशन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

इसलिए, उन्होंने 8,000 रुपये बचाए, सोलापुर गए और 2018 में किताब को खुद प्रकाशित किया. इसकी 200 प्रतियां थीं, जो उन्होंने कुछ प्रसिद्ध मराठी लेखकों को भेजी. केवल भालचंद्र नेमाड़े (मराठी साहित्यकार) ने दो पेज के पत्र और 100 रुपये के चेक के साथ उत्तर दिया, उन्होंने इस पत्र को लेमिनेट कराकर रखा है. वह शिक्षित युवाओं के बीच बेरोजगारी के बारे में अपने अगले उपन्यास पर काम कर रहे हैं. 

 

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