दो भाइयों ने पेश की मिसाल, कांवड़ में बिठाकर बुजुर्ग दादा को कराया संगम स्नान, लोगों ने कहा कलयुग के श्रवण कुमार

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में मौनी अमावस्या के मौके पर लगे माघ मेले में भी दो श्रवण कुमार देखने को मिले. सब जानते हैं कि श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर तीर्थ यात्रा कराई थी. उसी तरह मध्य प्रदेश के रीवा से दो भाइयों ने अपने बुजुर्ग दादा की इच्छा पूरी की. 

दादा के लिए श्रवण कुमार बने दो भाई
gnttv.com
  • प्रयागराज,
  • 01 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 3:21 PM IST
  • बुजुर्ग दादा के लिए दो भाई बने श्रवण कुमार
  • कांवड़ में बिठाकर कराया संगम स्नान

जब भी कोई बेटा अपने माता-पिता के लिए हद से बढ़कर कुछ करता है तो उसे अक्सर लोग श्रवण कुमार की संज्ञा देते हैं. क्योंकि श्रवण कुमार ने जिस तरह से अपने नेत्रहीन माता-पिता की सेवा की वैसे करना बहुत बड़ी बात है. लेकिन हमारे संस्कारों के देश में आपको आज भी बहुत से श्रवण कुमार मिल जायेंगे. 

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में मौनी अमावस्या के मौके पर लगे माघ मेले में भी दो श्रवण कुमार देखने को मिले. सब जानते हैं कि श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर तीर्थ यात्रा कराई थी. उसी तरह मध्य प्रदेश के रीवा से दो भाइयों ने अपने बुजुर्ग दादा की इच्छा पूरी की. 

कांवड़ में बिठा दादा को कराया संगम स्नान:  

रीवा के रहने वाले दो भाई विष्णु और शंकर अपने बुजुर्ग दादा की सेवा करना अपना कर्तव्य नहीं बल्कि धर्म भी समझते हैं. उनका मानना है कि बुजुर्गों की सेवा में ही ईश्वर की सच्ची सेवा है. इसलिए तो जब मौनी अमावस्या के मौके पर उनके दादा ने संगम स्नान की इच्छा जताई तो वे तुरंत उन्हें लेकर प्रयागराज पहुंचे.

मेले में लोग उन्हें देखकर इसलिए आश्चर्यचकित हो गए क्योंकि दोनों भाइयों ने दादा को कांवड़ में बिठाकर अपने कन्धों पर उठाया हुआ था. दादाजी का वृद्धावस्था के कारण चलना-फिरना मुश्किल है और इसलिए दोनों भाइयों ने उन्हें कांवड़ में बिठाकर मेला घुमाया.

लोगों ने कहा श्रवण कुमार:

इन दोनों भाइयों की अपने बुजुर्ग दादा के प्रति सेवा देखकर लोगों ने इन्हें सैल्यूट किया. और कहा कि आज के कलयुग में ये दोनों भाई श्रवण कुमार से कम नहीं हैं. इन्हें देखने वाला हर कोई इन पर गर्व महसूस कर रहा था और बहुत से लोगों ने इनसे प्रेरणा भी ली. 

उम्मीद है कि आज के युवा इन भाइयों से प्रेरित होकर समझेंगे कि बड़े-बुजुर्गों की सेवा ही परम धर्म है. इसलिए कभी भी अपने बुजुर्गों को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए. 

(पंकज श्रीवास्तव की रिपोर्ट)

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