बिहार के गया में एक अनोखी गौशाला है जहां गायों की भी कुंडली बनाई जाती है. श्री राधा कृष्ण गिर गौशाला गया जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर मटिहानी गांव में है. यहां रहने वाली गायों की कुंडली की बात सुनकर और देखकर लोगों को थोड़ा अटपटा-सा लग सकता है, मगर ये सच है. यंहा रहने वाली सभी गायों का जन्म कुंडली बनी हुई है.
इतना ही नहीं कुंडली और नक्षत्र के हिसाब से सभी गायों का नाम भी रखा जाता है. यह गौशाला साधारण गायों की गौशाला नहीं है, बल्कि यहां पर रहने वाली सभी गाय गिर नस्ल की हैं. यहां 172 गिर गाय हैं और सभी गायों के देखरेख के लिए 15 व्यक्ति लगे हुए हैं.
8 साल पहले लाई गई थी 2 गिर गाय
वहीं गौशाला के संचालक बजेंद्र कुमार चौबे ने बताया कि वह 8 साल पहले गुजरात से 2 गिर गाय लेकर आए थे और आज गाय और बछड़ा मिलाकर उनकी गौशाला में कुल इसकी संख्या 172 हो गई है. इसके धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि गिर गाय ऑक्सीजन ग्रहण कर ऑक्सीजन ही छोड़ती है. जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेकर कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं. गिर गाय के महत्व को जानकर गुजरात के गिर जंगलों में पाए जाने वाले गिर गायों की संख्या बढ़ाई गई है. आज गौशाला में दर्जनों गिर गाय और बछड़ा है.
गाय की बनती है कुंडली
गौशाला संचालक बिजेंद्र कुमार चौबे ने बताया कि जन्म के समय ही बछड़ा या बछड़ी के जन्म का समय और दिनांक लिखकर रख लिया जाता है. इसके बाद गायों की कुंडली बनाने के लिए भेजी जाती है. जो गायों के नक्षत्र के अच्छे जानकर हैं, उन्हें भेजकर कुंडली बनवाई जाती है और उसी आधार पर गायों का नामकरण भी होता है.
बिजेंद्र ने गायों की कुंडली बनाने के उद्देश्य के बारे में बताया. उन्होंने कहा, “द्वापर युग में भी गायों को नाम से पुकारा जाता था. भगवान कृष्ण भी गाय को उसके नाम से पुकारते थे. गौ विज्ञान और गौ ग्रंथ के शास्त्रों के अनुसार भगवान कृष्ण पदमा गाय का दूध पीते थे. गाय की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई है. कोई न कोई गाय कभी न कभी ऐसे ग्रह, मूल, योग, नक्षत्र में बछड़ा या बछड़ी को जन्म देगी जो बहुला, सुशीला, कामधेनु के रूप में होगी.
कुंडली के आधार पर औषधि बनती है
दूसरी वजह स्वास्थ्य है. इसका उद्देश्य यह है कि नक्षत्र-कुंडली के आधार पर औषधि बनती है. गिर गाय के पंचगव्य से औषधि बनाई जाती है. बिजेंद्र कहते हैं, “किस मूल नक्षत्र, गोत्र में पैदा हुई है उस गाय का पंचगव्य का पदार्थ किस रोग के लिए सबसे लाभकारी दवा के रूप में काम करेगा यह निर्भर करता है. गाय के दूध और गौमूत्र में सवर्ण के अवयव पाए जाते हैं.”
(पंकज कुमार की रिपोर्ट)