Ramadan 2025: इस शहर में तोप की गर्जना के बाद खुलता है रोजा...300 साल से ज्यादा पुरानी है यह परंपरा

इस किले के प्राचीर से आज भी रमजान के महीने में तोप चलाकर रोजा खोलने की अनोखी परम्परा है. यह परंपरा 305 सालों से अनवरत जारी है.

सांकेतिक तस्वीर
gnttv.com
  • रायसेन ,
  • 07 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 2:57 PM IST

जिस किले पर पारस पत्थर होने के दावे किए जाते हैं... जहां 700 रानियों ने एक साथ किया था जौहर... आज भी वह किला सीना ताने खड़ा हुआ है. इस किले के प्राचीर से आज भी रमजान के महीने में तोप चलाकर रोजा खोलने की अनोखी परम्परा है. यह परंपरा 305 सालों से अनवरत जारी है. यह शहर है मध्य प्रदेश का रायसेन, जहां आज भी किले की प्राचीर से चलाई गई तोप की आवाज के बाद रोजा खोला जाता है. 

सहरी और इफ्तारी की सूचना देने के लिए किले की पहाड़ी पर तोप चलाई जाती है. इसकी अनुमति जिला कलेक्टर देता है. तोप को चलाने के लिए बाकायदा जिला प्रशासन द्वारा एक माह का लाइसेंस जारी किया जाता है. यह परंपरा पिछले करीब 305 साल से निभाई जा रही है. यहां आज भी मुस्लिम समाज के लोग किले की पहाडी से चलने वाली तोप की आवाज सुनकर ही रोजे खोलते हैं. 

30 गांवों में सुनाई देती है आवाज
नवाबी शासन काल से यह परंपरा चली आ रही है. इस तोप की गूंज करीब 30 गांवों तक सुनाई देती है. रायसेन किले पर तोप कई सालों से एक ही परिवार चलाता आ रहा है. रमजान की समाप्ति पर ईद के बाद तोप की साफ-सफाई कर इसे सरकारी गोदाम में जमा कर दिया जाता है. तोप चलाने से पहले दोनों टाइम मार्कस वाली मस्जिद से सिग्नल मिलता है. 

सिग्नल के रूप में मस्जिद की मीनार पर लाल रंग बल्ब जलाया जाता है. उसके बाद किले की पहाड़ी से तोप चलाई जाती है. ऐसा बताया जाता है कि देश में राजस्थान में तोप चलाने की परंपरा है. उसके बाद देश में मध्य प्रदेश का रायसेन दूसरा ऐसा शहर है, जहां पर तोप चलाकर रमजान माह में सहरी और इफ्तारी की सूचना दी जाती है.

(राजेश कुमार की रिपोर्ट)

 

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