प्राइस टैग में ज्यादातर सामानों के दाम में लिखे 99 का क्या होता है मतलब?

किसी डिपार्टमेंटल स्टोर में कपड़ा खरीदने जाइए या किसी ई-कॉमर्स स्टोर, रेस्तरां या फिर मूवी थिएटर में वहां एक चीज सबसे कॉमन होती है. वहां हर चीज की कीमत 99 के साथ समाप्त होती है. आप और हम में से कई लोग इसको लेकर उत्सुक होते हैं कि ऐसा क्यों? आखिर 1 रुपये कम लिखकर बेचने वाले को भला क्या फायदा हो सकता है? तो आपको बता दें कि ये चीज किसी बचत से जुड़ी नहीं बल्कि इसके पीछे साइकोलॉजिकल स्ट्रेटजी छुपी होती है.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 10 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 11:57 PM IST
  • 1 रुपये कैश काउंटर वाले शख्स की जेब में जाता है
  • दुकानदारों को दो तरह से मिलता है फायदा

किसी डिपार्टमेंटल स्टोर में कपड़ा खरीदने जाइए या किसी ई-कॉमर्स स्टोर, रेस्तरां या फिर मूवी थिएटर में वहां एक चीज सबसे कॉमन होती है. वहां हर चीज की कीमत 99 के साथ समाप्त होती है. आप और हम में से कई लोग इसको लेकर उत्सुक होते हैं कि ऐसा क्यों? आखिर 1 रुपये कम लिखकर बेचने वाले को भला क्या फायदा हो सकता है? तो आपको बता दें कि ये चीज किसी बचत से जुड़ी नहीं बल्कि इसके पीछे साइकोलॉजिकल स्ट्रेटजी छुपी होती है. वैसे तो यह स्ट्रेटेजी हर कंपनी अपने प्रोडक्ट के लिए रखती है, लेकिन इसका इस्तेमाल सबसे अधिक सेल के दौरान किया जाता है.

...इसलिए ग्राहकों को 99 रुपये कम लगती है कीमत
दरअसल 99 लिखा होना एक थ्‍योरी पर आधारित है. वह कहते हैं, इंसान हमेशा लिखी हुई चीजों को दाईं से बाईं ओर पढ़ता है. इंसान के दिमाग में हमेशा पहला अंक ज्‍यादा याद रहता है, इसलिए दुकानदार अंत में 99 अंक का प्रयोग करते हैं ताकि उन्‍हें कीमत कम लगे. जब भी आप किसी प्रोडक्ट की कीमत 9 के फिगर में देखते हैं तो आपको वह कीमत कम लगती है जबकि असल में वह सिर्फ 1 रुपये कम होती है. मान लीजिए अगर किसी प्रोडक्ट की कीमत 499 रुपये है तो आपको यह कीमत एक नजर में 400 के करीब लगेगी ना कि 500. यही साइकोलॉजिकल प्राइसिंग स्ट्रेटेजी है और आप बड़ी आसानी से उस चीज को खरीद लेंगे जबकि असलियत में उसकी कीमत 500 रुपये होती है. 

दुकानदारों को दो तरह से मिलता है फायदा
दूसरा कारण यह भी है कि एक रुपये कम लिखकर विक्रेता का ही फायदा होता है. मान लीजिए किसी समान की कीमत 799 रुपये है, इसी तरह से हमने 1299 और 999 के दो और समान खरीदे. अब जब आप पेमेंट करने जाते हैं तो आमतौर पर लोग ये एक रुपया मांगने में हिचकिचाते हैं और दुकानदार या तो एक रुपया नहीं लौटाते या उसकी जगह पर आपको जबरदस्ती टॉफी पकड़ा देता है. कई लोग टॉफी लेते हैं तो कुछ छोड़ देते हैं. जान लीजिए इन दोनों ही चीजों में फायदा दुकानदार का ही होता है.

 मतलब अगर दुकान छोटी है तब तो ये पैसे दुकान मालिक की जेब में चले जाते हैं, वो भी बिना टैक्स के दायरे में आए. वहीं अगर ये खरीदारी आपने किसी बड़े शोरूम या स्टोर में की है तो वहां बचा हुआ 1 रुपये कैश काउंटर वाले शख्स की जेब में चला जाता है. आमतौर पर इन लोगों को सिर्फ बिल हुए पैसों का ही हिसाब देना होता है बाकी ऊपरी पैसे उनकी जेब में जाते हैं.

 

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