बुंदेलखंड में महिलाएं भी आजमा रही हैं कुश्ती के दांव-पेंच, सैकड़ों सालों से चली आ रही है इस दंगल की परंपरा  

बुंदेलखंड के हमीरपुर में महिलाओं का भी अनोखा दंगल हर साल होता है. बुजुर्गों की मानें तो यह दंगल आजादी के पहले से आयोजित हो रहा है. यह बुंदेली परंपरा में महिलाओं की शौर्य गाथा का एक उदाहरण है. ये परंपरा सैंकड़ों सालों से चल रही है.

Dangal
gnttv.com
  • हमीरपुर,
  • 14 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 1:59 PM IST
  • आजादी के पहले से आयोजित हो रहा है दंगल 
  • इस साल भी आयोजन में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया

महिलाएं भी पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं, राष्ट्रमंडल खेलों में कई पदक लाकर उन्होंने यह साबित भी किया है. इसी का एक उदाहरण देखने को मिला है बुंदेलखंड में हमीरपुर जिले के लोदीपुर-निवादा गांव में जहा हर साल आयोजित होने वाला महिलाओं का दंगल लोगों का मन मोह लेता है. बुंदेलखंड के इस इलाके में ग्रामीण महिलाएं भी कुश्ती के दांव-पेंच आजमा रही हैं. 

कुश्ती के इस दंगल की प्राचीन परंपरा के तहत रविवार को महिलाओ के दंगल का आयोजन किया गया.  इसमें गांव की ग्रामीण महिलाओं ने भाग लेकर कुश्ती की. बता दें, ग्रामीण महिलाओं के इस दंगल में पुरुषों का प्रवेश वर्जित होता है. इसमें सिर्फ गांव की महिलाएं ही रहती हैं. ये महिलाएं रेफरी से लेकर ढोल बजाने तक सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती हैं. 

आजादी के पहले से आयोजित हो रहा है दंगल 

दरअसल, बुजुर्गों की मानें तो यह दंगल आजादी के पहले से आयोजित हो रहा है. ये बुंदेली परंपरा में महिलाओं की शौर्य गाथा का एक उदाहरण है. रक्षा बंधन के अगले दिन की शाम को निवादा गांव के पुराना बाजार मैदान में हर साल की तरह ही महिलाओं के दंगल का आयोजन किया गया. जिसमें गांव की महिलाओं ने अपने दांव-पेंच दिखाए. 

कजली मेला के उत्सव में आयोजित इस कार्यक्रम में पहले महिलाओं ने तालाब में कजली विसर्जन कीं. उसके बाद दंगल में इकट्ठा हो अपनी कला का प्रदर्शन किया. इस कुश्ती में कई महिलाओं ने हिस्सा लिया जैसे खुशबू पाल, गोरीबाई, रानी भुर्जी, केशर, कुसमा पाल, अनुसुइया पाल, निशा, विद्या आदि. 

क्यों शुरू हुई थी ये परंपरा?

गांव के सेवानिवृत्त अध्यापक जगदीश चन्द्र जोशी और सुरेश शुक्ल और प्रधान और प्रधान प्रतिनिधि नाथूराम ने बताया कि बुजुर्गों ने इस परंपरा की शुरुआत की कहानियां सुनी हैं. बताया जाता है कि गुलामी के दौर में अंग्रेजों के अत्याचारों का प्रतिकार करने एवं आत्मरक्षा के लिए महिलाओं को प्रशिक्षित करने की मंशा से इसकी शुरुआत हुई थी. जिसके बाद झांसी की रानी के बलिदान से प्रेरित होकर महिलाओं ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना शुरू किया. वहीं इस साल भी आयोजन में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. 

(नाहिद अंसारी की रिपोर्ट)
 


 
 

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