भारत हो अमेरिका, दुनिया में कई परंपराएं हैं. हालांकि आधुनिकता के दौर में कई परंपराएं अपना वजूद खोने लगी हैं लेकिन आदिवासी समाज आज भी अपनी प्राचीन परंपराओं को अपनाए हुए है. आज में आदिवासी समाज की एक ऐसी परंपरा के बारे में बात करेंगे, जिसके महिलाओं धुएं से स्नान करती हैं.
पानी से अपने पूरे जीवन में सिर्फ एक बार शादी के दिन नहाती हैं. दरअसल, हजारों साल पुरानी इस परंपरा का आज भी पालन अफ्रीका महाद्वीप स्थित उत्तरी नामीबिया में रहने वाली हिम्बा जनजाति (Himba Tribe) की महिलाएं कर रही हैं. इस जनजाति की महिलाओं को पानी से नहाने की मनाही है. इसके बाबजूद इनके शरीर गंदे नहीं बल्कि साफ रहते. इसके लिए जनजाति महिलाएं एक खास तरह का स्नान करती हैं. वे धुएं से नहाती हैं.
पर्यावरण की करते हैं पूजा
हिम्बा एक अर्ध-खानाबदोश जनजाति है. उत्तरी नामीबिया में इनकी कुल आबादी लगभग 50 हजार है. इस जनजाति के लोग पर्यावरण की पूजा करते हैं इसलिए इनका पर्यावरण से एक विशेष रिश्ता है. हिम्बा जनजाति के लोग शिकार के अलावा अब कृषि और पशुपालन भी करने लगे हैं. हिम्बा लोग अपने लाल गेरू रंग की त्वचा और अनोखे आभूषणों के साथ-साथ अपनी गहरी सांस्कृतिक परंपराओं और मान्यताओं के लिए जाने जाते हैं.
कैसे धुएं से करतीं हैं स्नान
जैसा कि हमने आपको बताया है कि हिम्बा जनजाति की महिलाएं अपनी पूरी जिंदगी में सिर्फ एक बार अपनी शादी के दिन ही पानी से नहाती हैं.ये महिलाएं पानी की जगह अन्य प्राकृतिक तरीकों से अपने शरीर को साफ-सुथरा रखती है. दरअसल, हिम्बा जनजाति की महिलाएं और पुरुष खुद को रोगाणुओं और कीटाणुओं से मुक्त रखने के लिए धुएं का स्नान करते हैं.
महिलाएं खास जड़ी-बूटियों को पानी में उबालती हैं और उससे निकलने वाली भाप से अपने शरीर को साफ रखती हैं. इससे उनके शरीर से बदबू नहीं आती है. भाप से स्नान करने से पानी की बचत भी होती है. हिम्बा जनजाति की महिलाएं धूप से अपनी त्वचा को सुरक्षित रखने के लिए खास लोशन भी लगाती हैं. ये लोशन जानवरों की चर्बी और खास खनिज हेमाटाइट से बनता है.
मानी जाती हैं सबसे खूबसूरत
हिम्बा जनजाति में पानी की जगह धुएं से स्नान करने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है. रेगिस्तानी जलवायु में पानी की बचत के लिए यह परंपरा अत्यंत उपयोगी है. हिम्बा महिलाओं को अफ्रीका में सबसे खूबसूरत माना जाता है.
हिम्बा जनजाति में बच्चे की जन्म की तारीख उसके जन्म के बाद नहीं मानी जाती है बल्कि जिस दिन से महिलाएं बच्चे के बारे में सोचना शुरू कर देती हैं, उसी दिन से बच्चे का जन्म मान लिया जाता है. मां बनने के लिए जनजाति की महिलाओं को बच्चों से जुड़े गीत जरूर सुननी होती है.