World Poetry Day 2022: अगर प्रेम में हैं तो अपने साथी को पढ़कर सुनाएं ये कविताएं और कह दें दिल की बात

कविता प्रेम को ही नहीं बल्कि किसी भी भाव को व्यक्त करने का बहुत अच्छा माध्यम है. और आज World Poetry Day के मौके पर हम आपके लिए लाए हैं कुछ महान कवियों की कविताएं, जो उन्होंने प्रेम पर लिखी हैं. अगर आप प्रेम में हैं तो इन कविताओं को अर्थ दे पायेंगे.

Representational Image
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 21 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 1:05 PM IST
  • आज है World Poetry Day
  • प्रेम को कविता से करें व्यक्त

कहते हैं कि जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि. इस कहावत के पीछे का कारण है कि कविता पर कोई बंधन नहीं होता है. कविता का कोई अंत नहीं होता है. जिन बातों को आप संवाद में न कह सकें उन्हें कविता में कहा जा सकता है. अक्सर लोग अपने प्रेम के इजहार के लिए कविता का सहारा लेते हैं.

कविता प्रेम को ही नहीं बल्कि किसी भी भाव को व्यक्त करने का बहुत अच्छा माध्यम है. और आज World Poetry Day के मौके पर हम आपके लिए लाए हैं कुछ महान कवियों की कविताएं, जो उन्होंने प्रेम पर लिखीं. अगर आप प्रेम में हैं तो इन कविताओं को अर्थ दे पायेंगे और अगर नहीं भी हैं तो आपको इन कविताओं से प्रेम हो जाएगा. 

1. प्यार वो बीज है - गुलज़ार

प्यार कभी इकतरफ़ा होता है; न होगा
दो रूहों के मिलन की जुड़वां पैदाईश है ये
प्यार अकेला नहीं जी सकता
जीता है तो दो लोगों में
मरता है तो दो मरते हैं

प्यार इक बहता दरिया है
झील नहीं कि जिसको किनारे बाँध के बैठे रहते हैं
सागर भी नहीं कि जिसका किनारा नहीं होता
बस दरिया है और बह जाता है.

दरिया जैसे चढ़ जाता है ढल जाता है
चढ़ना ढलना प्यार में वो सब होता है
पानी की आदत है उपर से नीचे की जानिब बहना
नीचे से फिर भाग के सूरत उपर उठना
बादल बन आकाश में बहना
कांपने लगता है जब तेज़ हवाएँ छेड़े
बूँद-बूँद बरस जाता है.

प्यार एक ज़िस्म के साज़ पर बजती गूँज नहीं है
न मन्दिर की आरती है न पूजा है
प्यार नफा है न लालच है
न कोई लाभ न हानि कोई
प्यार हेलान हैं न एहसान है.

न कोई जंग की जीत है ये
न ये हुनर है न ये इनाम है
न रिवाज कोई न रीत है ये
ये रहम नहीं ये दान नहीं
न बीज नहीं कोई जो बेच सकें.

खुशबू है मगर ये खुशबू की पहचान नहीं
दर्द, दिलासे, शक़, विश्वास, जुनूं,
और होशो हवास के इक अहसास के कोख से पैदा हुआ
इक रिश्ता है ये
यह सम्बन्ध है दुनियारों का,
दुरमाओं का, पहचानों का
पैदा होता है, बढ़ता है ये, बूढा होता नहीं
मिटटी में पले इक दर्द की ठंढी धूप तले
जड़ और तल की एक फसल
कटती है मगर ये फटती नहीं.

मट्टी और पानी और हवा कुछ रौशनी
और तारीकी को छोड़
जब बीज की आँख में झांकते हैं
तब पौधा गर्दन ऊँची करके
मुंह नाक नज़र दिखलाता है.

पौधे के पत्ते-पत्ते पर
कुछ प्रश्न भी है कुछ उत्तर भी
किस मिट्टी की कोख़ से हो तुम
किस मौसम ने पाला पोसा
औ' सूरज का छिड़काव किया.

किस सिम्त गयी साखें उसकी
कुछ पत्तों के चेहरे उपर हैं
आकाश के ज़ानिब तकते हैं
कुछ लटके हुए ग़मगीन मगर
शाखों के रगों से बहते हुए
पानी से जुड़े मट्टी के तले
एक बीज से आकर पूछते हैं.

हम तुम तो नहीं
पर पूछना है तुम हमसे हो या हम तुमसे
प्यार अगर वो बीज है तो
इक प्रश्न भी है इक उत्तर भी.

2. मैं तुझे फिर मिलूँगी - अमृता प्रीतम

मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं

या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी

या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूँगी
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूँगी

मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है

पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं

मैं तुझे फिर मिलूँगी!!

3. सारा जग बंजारा होता- गोपाल दास नीरज

सारा जग बंजारा होता... 
सारा जग बंजारा होता... 

प्यार अगर थामता न पथ में उंगली इस बीमार उमर की
हर पीड़ा वैश्या बन जाती, हर आंसू आवारा होता।

निरवंशी रहता उजियाला
गोद न भरती किसी किरन की,
और ज़िन्दगी लगती जैसे-
डोली कोई बिना दुल्हन की,
दुख से सब बस्ती कराहती, लपटों में हर फूल झुलसता
करुणा ने जाकर नफ़रत का आंगन गर न बुहारा होता।
प्यार अगर...

4. आदर्श प्रेम - हरिवंशराय बच्चन

प्यार किसी को करना लेकिन
कह कर उसे बताना क्या
अपने को अर्पण करना पर
और को अपनाना क्या

गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गा कर उसे सुनाना क्या
मन के कल्पित भावों से
औरों को भ्रम में लाना क्या

ले लेना सुगंध सुमनों की
तोड़ उन्हें मुरझाना क्या
प्रेम हार पहनाना लेकिन
प्रेम पाश फैलाना क्या

त्याग अंक में पले प्रेम शिशु
उनमें स्वार्थ बताना क्या
दे कर हृदय हृदय पाने की
आशा व्यर्थ लगाना क्या. 

(कविता साभार: कविता कोश)

 

Read more!

RECOMMENDED